राजनीति के पैराशूट कितने दिन

Publsihed: 31.Jul.2021, 23:55

अजय सेतिया / अपने 'मन की बात' में एक सांसद ने राजनीति को अलविदा कह दिया | उन्होंने फेसबुक पर लिखा-“ मैं राजनीति से सन्यास ले रहा हूँ | मैं राजनीति में सिर्फ समाज सेवा के लिए आया था , पर अब मैने अपनी राह बदलने का फैसला किया है | लोगों की सेवा करने के लिए राजनीति में रहने की जरूरत नहीं है | राजनीति से अलग होकर भी अपने इस उद्देश्य को पूरा कर सकता हूँ | मेरे इस फैसले को 'वो' समझ जाएंगे | मैं हमेशा एक टीम का खिलाड़ी रहा हूं | हमेशा एक टीम को सपोर्ट किया है- मोहनबागान | एक ही पार्टी का समर्थन किया है- भाजपा | यह ट्विट भाजपा के आसनसोल से सांसद बाबुल सुप्रियो  का है, जिन्हें हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाया गया है | मंत्रिमंडल से हटाए गए बाबुल सुप्रियो का यह कदम भाजपा के लिए बड़ा संदेश है , अगर वह समझे |

अलबत्ता भाजपा ही नहीं , सभी राजनीतिक दलों के लिए संदेश है | समाज की किसी फिल्ड में काम कर के शोहरत हासिल करने वालों को सिर्फ चुनाव जीतने के लिए पार्टी का टिकट देना सभी राजनीतिक दलों की आदत बन गई है | ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं , जहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और बरसों तक पार्टी के लिए काम करने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर के किसी अभिनेता अभिनेत्री को टिकट दे दिया जाता है | या आईएएस , आईपीएस या खिलाड़ी को टिकट दे दिया जाता है | नेहरू के जमाने में भी कांग्रेस ऐसा करती थी , लेकिन उस समय के किसी अन्य फिल्ड के लोग फिर राजनीति में रच बस कर पार्टी के माध्यम से समाज सेवा में जुट जाते थे | इंदिरा गांधी के जमाने में भी कांग्रेस ने ऐसा किया | राजीव गांधी ने तो 1984 में अपने बाल सखा अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद में हेमवती नंदन बहुगुणा से भिडा दिया था |

हालांकि अमिताभ बच्चन समेत ज्यादातर बाद में राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में विफल साबित हुए | राजेश खन्ना , गोबिन्दा , धर्मेन्द्र , विनोद खन्ना , राज बब्बर , प्रिया दत्त , रामायण सीरियल में सीता के रूप में शोहरत हासिल करने वाली दीपिका चिकलिया , रामायण सीरियल के रावण अरविन्द त्रिवेदी | सब मौसमी राजनीतिज्ञ साबित हुए | हालांकि कुछ गैर राजनीतिज्ञ राजनीति में टिके भी रहे और मृत्यु प्रयन्त राजनीति के माध्यम से समाज की सेवा करते रहे | जैसे तमिलनाडू में एमजीआर , आंध्रा में एनटी रामाराव , सुनील दत्त आदि | जया प्रदा, शत्रुघ्न सिन्हा, जया बच्चन और हेमा मालिनी लम्बे समय तक राजनीति में अपनी अहमियत बनाए रखने में सफल रहे | फ़िल्मी अभिनेताओं की राजनीतिक विफलता का खामियाजा उन्हें चुनने वाले वोटरों को भुगतना पड़ता है | जिस का ताज़ा उदाहरण गुरदासपुर से मौजूदा भाजपा सांसद सनी दयोल हैं , जो भाजपा के लिए मुसीबत बन गए हैं , क्योंकि वे यदा कदा ही गुरदासपुर जाते हैं |

ऐसे अनुभवों के कारण वोटर अब पेराशूटरों को हराने भी लगे हैं | उर्मिला मातोंडकर मुम्बई से कांग्रेस टिकट पर हार गई और केन्द्रीय मंत्री होने के बावजूद बाबुल सुप्रियो आसनसोल की टालीगंज से विधानसभा चुनाव हार गए | पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की टिकट पर लडे क्रिकेटर अशोक डिंडा, अभिनेत्री पायल सरकार, अभिनेता यश दासगुप्ता और पूर्व आईपीएस भारती घोष सहित कई दिग्गज चुनाव हार गए हैं | पूर्व आईपीएस अजय कुमार झारखंड में हारे | हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी से दादरी से कुश्ती की खिलाड़ी बबीता फोगाट और बरौदा से योगेश्वर दत्त ने चुनाव लड़ा था | वे दोनों ही हार गए | बाबुल सुप्रियो ताज़ा उदाहरण है , जिस ने मंत्री पद से हटाए जाने के बाद राजनीति से तौबा कर ली | ऐसा ही उदाहरण पहले शतुघ्न सिन्हा भी दे चुके हैं , जो मंत्री नहीं बनाए जाने के कारण नाराज हो कर भाजपा छोड़ गए थे | बाबुल सुप्रियो के बाद भी इस समय मोदी मंत्रिमंडल में कम से कम ऐसे एक दर्जन मंत्री हैं जिन का राजनीति से कोई वास्ता नहीं है | वे भी भाजपा के किसी काम नहीं आएँगे क्योंकि उन्होंने भी बाद में बाबुल सुप्रियो ही बनना है |

 

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