एक साथ चुनाव के लिए विधि आयोग की कसरत बेकार हुई

Publsihed: 30.Aug.2018, 20:41

अजय सेतिया / विधि आयोग की रिपोर्ट से नरेंद्र मोदी को जरुर झटका लगा होगा | अपन शुरू से कहते रहे हैं कि मौजूदा संविधान के रहते लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ सम्भव नहीं | अब वही बात ला कमिशन ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में कही है | विधि आयोग ने उन पेचीदगियों का जिक्र किया है | क़ानून का थोड़ा बहुत जानकार भी इन पेचीदगियों को आसानी से समझ सकता था | अनुभवी राजनीतिज्ञों के लिए यह समझना मुश्किल नहीं था | अटल बिहारी वाजपेयी भी एक साथ चुनाव के पैरवीकार थे | पर उन्हें पता था कि आधा दर्जन से ज्यादा संविधान संशोधन करने पड़ेंगे | इस लिए वाजपेयी ने राजनीतिक दलों में आम सहमति की कोशिश शुरू की थी | वाजपेयी ने आम सहमति के लिए तब के उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत को जिम्मेदारी दी थी | पहले राजनीतिक दलों में आम सहमति हो, तो फिर कानूनी मसलों पर विचार विमर्श किया जा सकता है | पर मोदी ने यह जानते हुए भी कि आम सहमति सम्भव नहीं , विधि आयोग को काम पर लगा दिया | दर्जनों सेमीनार कर डाले, जिन पर करोड़ों रूपए खर्च हुए |

लोकतंत्र आमसहमति से ही चलता है | इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा कर लोकतंत्र को बिना आम सहमति बनाए हांकने की कोशिश की थी | लोकसभा का कार्यकाल पांच साल से बढ़ा कर छह साल तक क्र डाला था | बाकी राजनीतिक दलों से पूछा तक नहीं | तो क्या हुआ आखिर में , सत्ता बदली और कार्यकाल घट कर फिर पांच साल हो गया | इस घटना ने साबित किया था कि लोकसभा में बहुमत होने भर से लोकतंत्र नहीं चलता | जैसे लोकसभा आम सहमती के बिना नहीं चलती | वैसे ही लोकतंत्र में हर आवाज महत्वपूर्ण होती है | शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी पर सुप्रीमकोर्ट का एक वाक्य लोकतंत्र का बीज मन्त्र है | कोर्ट ने कहा है कि विरोध लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है | विरोध को दरकिनार कर के आप लोकतंत्र को डंडे से नहीं हांक सकते |

भैरोंसिंह शेखावत एक साथ चुनाव के जोरदार पैरवीकार थे | उन ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को मनाने में जी-जान की बाजी लगा दी थी | पर उन्हें सफलता नहीं मिली | इस की वजह खासकर क्षेत्रीय दलों का विरोध था | एक साथ चुनाव से क्षेत्रीय दलों की भूमिका बहुत सीमित हो जाएगी , जिस से लोकतंत्र को नुकसान होगा | लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव से राष्ट्रीय दलों का महत्व बढ़ जाएगा | राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में व्यक्तिवाद हावी हो जाएगा | पूरे देश का चुनाव व्यक्ति विशेष को सामने रख कर लडा जाएगा | जिस से राजनीतिक दलों का महत्व खत्म हो जाएगा | अमेरिकी लोकतंत्र जैसा स्वरूप बन जाएगा | जहां राष्ट्रपति चुने जाने के बाद तीन साल के लिए वह तानाशाह बन जाता है | सीनेट का कोई महत्व नहीं रहता | मंत्रीमंडल के सदस्यों का जनप्रतिनिधि होना जरुरी नहीं होता | वे जनता के प्रति जवाबदेय नहीं होते | क्या हमें तानाशाही के बीज बोने वाला ऐसा कुरूतियों भरा लोकतंत्र मंजूर होगा |

इंदिरा गांधी के समय कांग्रेस एक साथ चुनाव के लिए सहमत हो सकती थी | क्योंकि कांग्रेस के पास राष्ट्रीय स्तर पर चुनावों को प्रभावित करने वाला केन्द्रीय नेतृत्व था | जिस का तब विरोधी दलों के पास कोई तोड़ नहीं था | भाजपा आज इसी लिए एक साथ चुनाव की पैरवी कर रही है क्योंकि उस के पास देश भर में स्वीकार्य नरेंद्र मोदी जैसा चेहरा है | अब अगर भाजपा में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव लोकसभा के साथ करवाने की बात हो रही है | तो वह सिर्फ इस लिए हो रही है, ताकि इन विधानसभाओं के चुनावों में भी मोदी के नाम का फायदा उठाया जाए | हर समझदार राजनीतिज्ञों इन पेचीदगियों को विधि आयोग की रिपोर्ट से पहले ही जानता था | यह भी कि एक साथ चुनाव से लोकतंत्र भ्रष्टाचार के दल दल में फंस सकता है | जैसे लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल फिक्स करना होगा | कोई मध्यावधि चुनाव नहीं होगा | सदन में बहुमत न रहे, तो खरीद फरोख्त से सरकारें चलती रहेंगी | मुख्यमंत्री और मंत्री पद की बोली लगेगी | राज्यपाल लाचार हो जाएंगे | बात वहीं पर आकर अटक गई है, जो अपन लिखते रहे हैं | मोदी चाहें तो 2019 में लोकसभा के साथ बाढ़ राज्यों के चुनाव एक साथ करवाने में दिक्कत नहीं | पर यह एक साथ चुनाव की स्थाई व्यवस्था नहीं होगी | जैसा कि अपन ने पहले भी लिखा था 12 राज्यों के व्चुनाव साथ हो सकते हैं | ये हैं –आंध्रप्रदेश, तेलंगाना , उड़ीसा, नागालैंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ ,महाराष्ट्र, हरियाणा ,झारखंड, जम्मू कश्मीर आदि |  

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