जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून क्यों जरूरी

Publsihed: 01.Dec.2021, 18:46

अजय सेतिया / कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब बड़ा सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार अपने एजेंडे के बाकी काम करने की हिम्मत जुटा पाएगी | भाजपा का हिन्दू वोट बैंक यह मान कर चल रहा था कि राम मंदिर बनने का रास्ता साफ़ होने , कश्मीर से 370 हटने और पडौसी देशों से सताए गए हिन्दुओं को भारत की नागरिकता में ढील दिए जाने के बाद अब मोदी का अगला कदम जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून बनाने का होगा | लेकिन कृषि कानूनों में मात खाने के बाद अब उन्हें लगता है कि मोदी जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे | सच यह है कि संघ परिवार से जुड़े किसान संघ ने सार्वजनिक तौर पर कृषि कानूनों का विरोध किया था | संघ परिवार के अनेक लोग यह भी मानने हैं कि कृषि कानूनों के मुद्दे पर मात खाने का खामियाजा उतर प्रदेश के चुनावों में तो भुगतना ही पड़ेगा , परिवार के जनसंख्या क़ानून जैसे बाकी बचे एजेंडे को भी पूरा करने में दिक्कत आएगी |

किसान के आन्दोलन ने मोदी के दुबारा चुनाव जीतने से बनी हवा को नुक्सान पहुंचाया है | अब वह जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून बनाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाएंगे | जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून को संघ परिवार इस लिए जरूरी मानता है क्योंकि कोई पालिसी न होने के कारण मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है और हिन्दुओं की आबादी घट रही है | हिन्दुओं की तुलना में मुसलमानों में प्रजनन दर यानि टी आर ऍफ़ ज्यादा है | अगर अपन 1948 को आधार न भी बनाएं तो आप इस आंकड़े से अंदाजा लगा सकते हैं कि 1991 में मुस्लिम आबादी 10 प्रतिशत थी , जो 2001 में बढ़ कर 13 प्रतिशत , 2011 में 14.2 प्रतिशत और 2021 में 18 प्रतिशत हो चुकी है | मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर हिन्दुओं की वृद्धि दर की तुलना में 10 प्रतिशत से भी ज्यादा है | खासकर पांच राज्यों में मुस्लिम आबादी चुनावी परिणामों को प्रभावित करती है , ये हैं बंगाल , जहां मुस्लिम आबादी 27 प्रतिशत है | उत्तर प्रदेश , जहां मुस्लिम 19 प्रतिशत हैं | बिहार में 16 प्रतिशत और जम्मू कश्मीर में 68 प्रतिशत मुस्लिम हैं |  

इस लिए हिन्दुओं की यह चिंता निराधार नहीं है कि  एक और मुस्लिम देश की मांग उठ सकती है | हिन्दुओं की इस चिंता के कारण संघ परिवार देश में एक जैसी जनसंख्या पालिसी बनाने के लिए जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून को वक्त की सब से बड़ी जरूरत मानता है | लेकिन चुनाव की दृष्टि से विपक्षी दलों के लिए मुस्लिम वोट बैंक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं , बंगाल में ममता बनर्जी की जीत के पीछे यही एक बड़ा कारण माना जाता है | इसलिए विपक्षी दल उसी तरह ही जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून का विरोध कर रहे हैं , जैसे उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून का किया था | ब्यूरोक्रेसी भी उन का साथ दे रही है , अब मोदी को जनसंख्या क़ानून बनाने से रोकने के लिए ब्यूरोक्रेसी ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की ताज़ा रिपोर्ट को आधार बनाया है , जिस के मुताबिक़ भारत में जनसंख्या बढ़ने की दर स्थिर हो गई है या निगेटिव हो गई है | मोदी विरोधी मीडिया इस सर्वेक्षण को हवा दे रहा है ताकि जनसंख्या क़ानून को बेमतलब बताया जा सके |

इस सर्वेक्षण के मुताबिक भारत के ग्रामीण इलाकों में प्रजनन दर 2.1 प्रतिशत है और शहरी इलाकों में यह दर 1.6 प्रतिशत  है , जबकि 1951 में भारत में प्रजनन दर 6 प्रतिशत थी , यानि प्रत्येक महिला औसतन 6 बच्चों को जन्म देती थी , जबकि अब दो बच्चों को जन्म देती है | लेकिन इस तथ्य को छुपाया जा रहा है कि मुस्लिम आबादी बढने वाले दो राज्यों यूपी और बिहार में प्रजनन दर यानि टीएफआर दो से ज्यादा है | बिहार में तीन प्रतिशत और यूपी में 2.4 प्रतिशत है , वैसे मेघालय में भी 2.9 प्रतिशत है | इसलिए जैसे कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने 25 नवंबर को ग्वालियर में कहा कि भारत को अगर भारत रहना है तो भारत को हिन्दू होना ही पड़ेगा , और उस के लिए स्वाभाविक है कि देश की एक जनसंख्या पालिसी होनी चाहिए जो बिना धार्मिक भेदभाव के सभी पर लागू हो |

 

 

 

                                                                                         

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