यह सब वामपंथियों की करतूत थी 

Publsihed: 30.Sep.2020, 20:01

अजय सेतिया / वामपंथियों की यह थ्योरी भी धराशाही हो गई कि संघ भाजपा ने उस ढाँचे को तोड़ने की साजिश रची थी , जिसे वे बाबरी मस्जिद कहते थे | उन के फर्जी इतिहासकारों की यह थ्योरी पिछले साल 9 नवम्बर को धराशाही हो गई थी कि न तो वह रामजन्मभूमि है और न ही वहां कोई जन्मभूमि मंदिर था | खुदाई में मिले साक्ष्यों के बाद सुप्रीमकोर्ट ने इन फर्जी वामपंथी इतिहासकारों को सुनने से भी इनकार कर दिया था | जबकि वे 1947 से ही मुसलमानों को गुमराह कर के उन के दिलो दिमाग में हिन्दुओं के खिलाफ नफरत के बीज बौ रहे थे | ऐसे दर्जनों नाम जहन में आते हैं जो अयोध्या आन्दोलन के समय से ही भाजपा , संघ , विहिप, बजरंग दल और साधू संतों के खिलाफ नफरत की मुहीम चला रहे थे | संसद में तब उन की संख्या 60 से ज्यादा थी , अब संसद से वामपंथ की विदाई हो चुकी है , केरल से एक सांसद जीता है , बंगाल और त्रिपुरा में सूपड़ा साफ़ हो गया और चार सांसद तमिलनाडू में द्रमुक से गठबंधन के कारण जीते हैं |

तब वामपंथियों का फिल्मकारों  , विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों  , इतिहासकारों , नौकरशाहों, साहित्यकारों और अखबारों के दफ्तरों में दबदबा था | उन में से कुछ अभी भी सक्रिय हैं | लेकिन अब मोटे तौर पर हिन्दू विरोधी मानसिकता वाले वामपंथियों का प्रभाव फिल्म जगत और पत्रकारिता को छोड़ कर सिर्फ कुछ विश्वविद्यालयों तक ही सिकुड़ गया है | वामपंथी इतिहासकारों ने पहले तीस साल तक यह बात फैलाई कि राम जन्म भूमि का कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है | मीडिया में बैठे उन के पत्रकार साथी इसी बात को बार बार लिखते रहे , जबकि दूसरे निष्पक्ष किस्म के इतिहासकारों का एक शब्द भी छापने को तैयार नहीं थे, बी;लकी उन्हें गलत ठहराते थे | मीडिया कभी अपने गिरेबान में झांकेगा तो पाएगा कि अयोध्या आन्दोलन के समय उस ने कितनी झूठी पत्रकारिता की | बाबरी ढांचा टूटा तो वामपंथियों के वे सारे टोले हिन्दुओं को ही हिन्दुओं के खिलाफ खडा करने में जुट गए | मीडिया के कुछ लोगों ने साजिश रचे जाने की झूठी गवाहियां तक अदालतों में दी और अनगिनत लेख और किताबें लिखी | अपनी ही बात को अंतिम सत्य बताने के लिए देश भर में सेमीनार किए गए | पिछले साल तक वामपंथी पत्रकार 6 दिसम्बर को कुछ कुछ न कुछ ऐसा करते रहे हैं कि भ्रम बना रहे |

लखनऊ की अदालत ने कितनी बार लाल कृष्ण आडवानी और अन्यों को साजिश के मुकद्दमे से बाहर किया , लेकिन सत्ता और ब्यूरोक्रेसी में अपनी पहुंच के चलते वे इस मुकद्दमें को बार बार जीवित करते रहे | वे थके अभी भी नहीं हैं , क्योंकि अब भी किसी न किसी रास्ते हाईकोर्ट जाने का रास्ता खुलवाएंगे | सीबीआई ने ढांचा तोड़ने की ऐसी बेबुनियाद चार्जशीट बनाई थी कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी साजिश में शामिल थे | वामपंथी पत्रकारों की सूचना के आधार पर सीबीआई ने चार्जशीट में कहा कि पांच दिसंबर 1992 को अयोध्या मे विनय कटियार के घर पर हुई गोपनीय बैठक में ढांचे को गिराने का निर्णय लिया गया था | यही मीडिया आडवाणी के छह दिसंबर को कहे गए शब्दों का गलत अर्थ निकाल कर पेश कर रहा था | आडवानी ने कहा था, "आज कारसेवा का आखिरी दिन है | कारसेवक आज आखिरी बार कारसेवा करेंगे |" इस का यह मतलब कतई नहीं था कि आज ढांचा तोड़ दिया जाएगा , अलबत्ता कार सेवा तो अब शुरू होगी , जब मंदिर निर्माण शुरू होगा |

आडवानी पर झूठ लिखा गया कि जब उन्हें पता चला कि केन्द्रीय बल फैजाबाद से अयोध्या आ रहा है तब उन्होंने हिन्दू भीड़ को  राष्ट्रीय राजमार्ग रोकने को कहा था | यह भी सरासर झूठ था कि आडवाणी ने कल्याण सिंह को फोन पर कहा था कि वे विवादित ढांचा गिराए जाने तक अपना इस्तीफा न दें | सीबीआई की सारी चार्जशीट अखबारी खबरों पर आधारित थी , जिन्हें वामपंथी पत्रकार प्लांट कर रहे थे , 30 सितम्बर को अपना फैसला सुनाते हुए अदालत ने अखबारी खबरों को सबूत मानने से इनकार कर दिया | यहाँ तक कि पेश किए गए वीडियो भी टेम्पर किए हुए साबित हुए | आप याद करिए कि 2010 के फैसले से पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वामपंथी इतिहासकारों से जब उन के लिखे लेखों के सबूत मांगे थे तो वे मिमिआने लगे थे |

कितनी आधारहीन बातें लिखीं और बताई गई कि आडवाणी ने राम कथा कुंज के मंच से चिल्लाकर कहा था कि "जो कार सेवक शहीद होने आए हैं, उन्हें शहीद होने दिया जाए |" सीबीआई ऐसी कोई वीडियो भी पेश नहीं कर सकी , जिस में आडवाणी ने यह कहा था कि, “मंदिर बनाना है, मंदिर बनाकर जाएंगे. हिंदू राष्ट्र बनाएंगे | सच यह है कि बाबरी ढांचा टूटने तक वामपंथी मुसलमानों को गुमराह करते रहे कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद नहीं बनीं, और ढांचा टूटने के बाद सीबीआई को गुमराह करते रहे कि भाजपा-संघ ने ढांचा तोड़ने की साजिश रची थी |

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