लोकतंत्र को कमजोर करने वाला चौथा खम्भा 

Publsihed: 28.Mar.2017, 23:07

 विजुअल मीडिया का एक वर्ग खुद को सुपर सुप्रीम कोर्ट समझने लगा है | करीब एक दशक पहले शरद यादव ने संसद को सावधान किया था | सोमनाथ चटर्जी तब लोकसभा स्पीकर थे | मनमोहन सिंह की लुंज पुंज सरकार थी |  एक चेनल के एडिटर-एंकर की ओर से रोज रात 9 बजे सांसदों को गालियाँ दी जा रही थीं | शरद यादव ने संसद को आगाह किया था-" इसे रोकना होगा, वह रोज रात नों बजे सांसदों का अपमान करता है |"  पर सोमनाथ चटर्जी ने इस पर गौर नहीं किया |  वह अनार्की फैलाने वाली कौम से ताल्लुक रखते थे | पर बाद में चटर्जी ने सांसदों को खरीदने वाली कांग्रेस सरकार बचाई | अनार्की फैलाने वाली कौम ने उन्हें निकाल बाहर किया | वह सोमनाथ चटर्जी का लोकसभा में आख़िरी कार्यकाल हो गया | सोमनाथ चटर्जी  कम अधिनायकवादी नहीं थे | उन ने जिद्द कर के लोकसभा के दस सांसदों को बर्खास्त करवाया था | मसला यह था कि एक वामपंथी पत्रकार ने भाजपा के सांसदों को जाल में फंसा कर विजुअल बनाया था | उस विजुअल को मोटी रकम ले कर एक चेनल को बेच दिया था | साजिश कर के बनाए गए विजुअल को स्टिंग कहा गया | जब कि पत्रकार ने खुद रिश्वत दी थी, या देने की कोशिश की थी | सांसदों को संसद में पूछने के लिए कुछ सवाल दिए गए थे | खुद को प्रभावित बता कर सवाल के बदले सांसदों को कुछ पैसे दी गए | कुछ सांसदों ने यहाँ तक कहा था कि "इस की कोई जरूरत नहीं |" एक सांसद ने तो कहा था -"यह मेरी दिलचस्पी का विषय है, कुछ और भी सवाल  हो तो लाना |" उस सांसद ने पैसे लेने से इनकार किया था | उस ने कहा था कि चुनाव के समय मदद करना | पर सोमनाथ चटर्जी ने जल्दबाजी में पवन बंसल कमेटी बनाई | कमेटी ने सोमनाथ चटर्जी की जिद्द के अनुसार काम किया | उन दस सांसदों को अपना पक्ष भी नहीं रखने दिया | विजुअल टेप पर सवाल जवाब नहीं हुए | सांसदों के वकीलों को पक्ष नहीं रखने दिया | किसी सांसद ने सवाल पूछने के बदले रिश्वत नहीं माँगी थी | उन्हें जबरदस्ती पैसे दी गए थे | वह साजिश थी |  वह पीट पत्रकारिता थी | अनैतिक पत्रकारिता थी |  जांच कमेटी ने सांसदों को उन साजिशकर्ताओं से सवाल नहीं पूछने दिए | इन दस सांसदों में बसपा और कांग्रेस का भी एक एक सांसद था | सोमनाथ चटर्जी की जिद्द के आगे सोनिया गांधी भी कुछ नहीं कर सकी | बाद में सोनिया गांधी ने एक बर्खास्त सांसद से कहा था -"सारी स्पीकर अड़े हुए थे |" वह विजुअल मीडिया की दादागिरी थी | जिस में सच-झूठ की जांच नहीं हो पाई | विजुअल मीडिया की और से संसदीय प्रणाली पर वह पहला हमला था | अब यह हमला रोजमर्रा की बात हो गई | शिवसेना सांसद रविन्द्र गायकवाड की ताज़ा घटना को देखी | यह लोकतंत्र को कमजोर करने वाली विजुअल मीडिया की ताज़ा दादागिरी है | कुछ चैनलों के एंकर जज बन गए हैं | सांसदों के खिलाफ बोलना उन के लिए फैशन बन गया है | रविन्द्र गायकवाड सांसद के नाते पुणे से दिल्ली आए थे | वह सांसद के नाते ड्यूटी पर थे | उन्होंने शिकायत पुस्तिका माँगी थी | यह उन का अधिकार था | यह हर किसी का अधिकार है | अलबत्ता उन से बदसलूकी हुई | पर एयर इंडिया की नौकरशाही ने मीडिया से मिलीभगत कर उल्टी कहानी बना दी |  कहानी एयर क्लास टिकट की बना दी |  एयर इंडिया ने उन्हें एग्जीक्यूटिव क्लास का टिकट दिया था | जबकि विमान में एग्जीक्यूटिव क्लास थी ही नहीं | यह कोई पहली बार नहीं हुआ था | दिल्ली पुणे की उस फ्लाईट में कभी एग्जीक्यूटिव क्लास नहीं दी जाती | फिर एग्जीक्यूटिव क्लास की टिकट  कैसे दी जा रही थी |  अगर विमान में एग्जीक्यूटिव क्लास नहीं थी | तो टिकट रद्द कर के दूसरी क्लास की क्यों नहीं दी गई | एग्जीक्यूटिव क्लास की टिकट पर दूसरी सीट कैसे अलाट हुई | यही वह अहम् सवाल था-जो रविन्द्र गायकवाड ने पूछा था | यह उन का अधिकार था | अलबतता हर किसी का अधिकार है | क्या विजुअल मीडिया को यह सवाल एयर इंडिया से नहीं पूछना था | हर उस बन्दे को यह पूछने का हक है, जिसने एग्जीक्यूटिव क्लास का टिकट खरीदा हो | एयर लाईन को न सिर्फ जवाब देना होगा | बल्कि असुविधा के लिए माफी भी मांगनी होगी | पर एयर इंडिया के अधिकारी  गायकवाड से कह रहे थे -"आप सांसद हैं, आप को ऐसे नहीं करना चाहिए |" रिटायरमेंट के बाद भी किसी नौजवान की नौकरी खा रहे मनेजर सुकुमार ने भी सांसद पर दादागिरी की | सरकारी एयर इंडिया को क्या अधिकार है कि वह सांसद को यात्रा न करने दे | यह सांसद के विशेषधिकार का हनन है | गायकवाड ने विशेषधिकार का नोटिस दे भी दिया है | नौकरशाही खुद को देश का मालिक समझती है | वह नौकरशाही जिले की हो, सचिवालय की हो, या एयर इंडिया की | जबकि लोकतंत्र में चुने हुए नुमाईंदे बॉस होते हैं | मीडिया का रोल लोकतंत्र को मज़बूत करने वाला होना चाहिए | पर मीडिया की ब्यूरोक्रेसी, नौकरशाही से सान्थ्गान्थ हो गई है | वह सांसदों के विशेषाधिकारों को नहीं मानती | वह विजुअल मीडिया में सांसदों को गुंडा कहने लगी है | यह पत्रकारिता का घमंड है, जो लोकतन्त्र के लिए चुनौती बनता जा रहा है | यह नया विजुअल चौथा खम्भा लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है | प्रिंट मीडिया आज भी मर्यादित है, आज भी सयंमित भाषा का इस्तेमाल करता है | आज भी बलेंस बना कर चलता है | एक पक्षीय रिपोर्टिंग नहीं होती | क्या वक्त आ गया है, जब विजुअल मीडिया की भाषा तय की जाए | जब विजुअल मीडिया को प्रेस कौंसिल के दायरे में लाया जाए | बेलगाम चौथा खम्भा लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक होगा | 

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