कम्युनिस्टों की पहुंच अमेरिकी आयोग तक

Publsihed: 29.Apr.2020, 19:01

अजय सेतिया / मोदी सरकार अमेरिका के साथ दोस्ती का कितना भी दावा करे , वह भारतीय हितों की रक्षा करने में हर बार नाकाम साबित होती है , क्योंकि भारत के कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों ने दुनिया भर में इतने पाँव जमा रखे हैं कि वे हर मौके का भारत के खिलाफ इस्तेमाल करते हैं | अब जब कि ऐसा लग रहा था कि कोरोना वायरस को ले कर भारत अमेरिका और रूस भी चीन के खिलाफ मिल कर खड़े हो सकते हैं , तो अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भारत के खिलाफ रिपोर्ट दे दी है | हैरानी यह है कि यह रिपोर्ट नागरिकता संशोधन कानून को ले कर है | जिस के खिलाफ भारत में सब से ज्यादा विरोध कम्युनिस्टों ने किया था , इस की शुरूआत जेएनयूं से हुई थी , जो बाद में जामिया मिल्लिया में पहुंचा और फिर सारे देश में |

हालांकि यह पहले भी कई बार उजागर हो चुका है कि अमेरिकी एजेंसियां भारत में कम्युनिस्टों से जुड़े एनजीओ को फंड देते हैं , जी विकास के हर मुद्दे पर आन्दोलन कर के विकास के कार्यों में बाधा पहुंचाते हैं | भारत में घोर अमेरिका विरोधी रूख अपनाते हुए वे अमेरिकी फंड देने वाली एजेंसियों के चहेते बने हुए हैं | मोदी ने सत्ता में आने के बाद ऐसे अनेक एनजीओ की विदेशी फंडिंग पर रोक लगाई है , इस के बावजूद उन के तार आपस में जुड़े हुए हैं | हम तो सिर्फ यह समझते थे कि कम्युनिस्ट अनपढ़ मुस्लिम जमात को बेवकूफ बना कर उन्हें सरकार के खिलाफ भडकाते हैं , लेकिन वे तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली पढ़े लिखों की अमेरिकी संस्था को भी मूर्ख बनाने में कामयाब हो गए |

अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने 28 अप्रैल को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2020 में भारत को अल्पसंख्यकों के हितों पर कुठाराघात करने का गुनाहगार बताया है | आयोग ने ट्रंप प्रशासन के विदेश विभाग से भारत समेत 14 देशों को खास चिंता वाले देशों  के रूप में नामित करने की सिफारिश की हैं | आयोग का कहना है  कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की दशा में बड़ी गिरावट आयी और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गये | इसका आधार  नागरिकता संशोधन कानून बताया गया है और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा के मामलों का हवाला दिया गया है |

हालांकि आयोग के 9 सदस्यों में से तीन सदस्यों ने रिपोर्ट से सहमति प्रकट नहीं की है | आयोग के दो सदस्यों गैरी एल बाउर व  तेंजिन दोरजी अपनी असहमति प्रकट करते हुए दो टूक शब्दों में विरोध प्रकट किया कि भारत को चीन व उतरी कोरिया जैसे देशों के जमात में नहीं रखा जा सकता | तीसरे सदस्य ने भी भारत पर अपनी निजी राय रखी है | अमेरिका का अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग  म्यांमार, चीन, एरिट्रिया, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, तजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान  जैसे 9 देशों को दिसंबर, 2019 में खास चिंता वाले देशों में शामिल कर चुका है | अब ताजा रिपोर्ट में  इन 9 देशों के अलावा  भारत  नाईजीरिया, रूस, सीरिया और वियतनाम को भी इसी सूचि में शामिल करने की अनुशंसा की है |

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने धार्मिक आजादी के नाम पर रखी गयी तथाकथित रिपोर्ट को सिरे से नकारते हुए आयोग पर पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने का आरोप लगाया | उन्होंने कहा कि भारत को आईना दिखाने का इस आयोग के पास कोई अधिकार ही नहीं  है | भारत के खिलाफ की गई टिप्पणियों को खारिज करते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा अमेरिकी आयोग के  पूर्वाग्रह वाले और पक्षपातपूर्ण बयान नए नहीं हैं |

भारत ने आतंकी पाकिस्तान को संरक्षण देने, कश्मीर, पंजाब, पूर्वोतर आदि आतंक के मामले के साथ मुम्बई आतंकी हमले में उस की खलनायकी भूमिका को भी नजरांदाज करके भी अमेरिका से दोस्ती की नई इबादत लिखने की पहल की , इस आयोग के नापाक मंशा से लगता है अमेरिका को दोस्त की नहीं अपितु  पाकिस्तान जैसे विश्वासघाती प्यादे ही पसंद है |
भारत को धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में कटघरे रखने पर स्वाभाविक है कि मोदी सरकार के घोर विरोधी नेता इसे मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती की सौगात बता कर तंज कस रहे हैं | हालांकि अमेरिका का विदेश मंत्रालय आयोग की रिपोर्ट को मानता है या नहीं यह अभी स्पष्ट भी नहीं है | लेकिन सच तो यह है कि भारत को इस सूची में शामिल करवाने के पीछे वे सभी ताकतें हैं जिन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून को धार्मिक भेदभाव वाला बता कर सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी हुई है |

 

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