दिल्ली के चिपको आन्दोलन ने किया गद्दगद्द

Publsihed: 25.Jun.2018, 20:30

अजय सेतिया / तीन जगह से एक जैसी ख़बरों ने मन मोह लिया | अहमदाबाद, दिल्ली और देहरादून की हैं ये तीनों ख़बरें | तीनों जगहों पर वृक्ष काटने के खिलाफ जनता उठ खडी हुई है | इसे पर्यावरण के प्रति नरेंद्र मोदी के भाषणों का असर कहें या स्वयस्फूर्त जागृति | जनजागृति तो हुई है, मोदी चाहें तो शश्रेय ले लें | फिर उन्हें अपनी ही परियोजनाओं से हाथ धोना पडेगा | तीनों जगह लोग वृक्षों से चिपक कर आन्दोलन चला रहे हैं | उत्तराखंड में तो एक मंत्री का महिलाओं ने बुरी तरह घेराव किया | दिल्ली के सरोजनी नगर में बाकायदा लोग पेड़ों से चिपक गए | एक किशोर लडकी कूद कर वृक्ष पर चढ़ गई  | इस लडकी के आन्दोलन को देख अपन को गौरा देवी की याद आ गई | उत्तराखंड के जिस चिपको आन्दोलन का श्रेय सुंदर लाल बहुगुणा को मिलता है , असल में वह गौरा देवी का सफल आन्दोलन था | वह उत्तराखंड के चमौली जिले में रैनी गाँव की रहने वाली थी | रैनी में 2400 वृक्षों को काटा जाना था | यह बात 1973 की है | वन विभाग और ठेकेदार वृक्ष काटने की रणनीति बना रहे थे | गौरा देवी ने गाँव की महिलाओं को इक्कठा कर के वृक्ष बचाने का बीड़ा उठाया | रेणी गांव की 27 महिलाओं इक्कठी हुई और उन्होंने प्राणों की बाजी लगाकर सरकारी कोशिशों को नाकाम कर दिया | वन विभाग और ठेकेदारों को भागना पडा |

वनों पर ग्रामीणों के परम्परागत अधिकार की यह नई दिशा और नई सोच थी | जिसने चिपको आन्दोलन को जन्म दिया | जो एक दशक के अन्दर पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया । गौरादेवी के दिखाए रास्ते पर चल कर सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट ने इसे बड़ा आन्दोलन बनाया | इसी आन्दोलन ने पर्यावरण को राष्ट्रीय चिंता का विषय बना दिया था | केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय का गठन हुआ | 1980 का वन संरक्षण अधिनियम चिपको आन्दोलन का ही नतीजा था | हिमालयी जंगलों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी गई । बाद में यह आन्दोलन बिहार, राजस्थान ,हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक तक में फैला | अब चार दशक बाद फिर से तीन प्रदेशों की जनता गुस्से से भरी है | उत्तराखंड का मामला तो सिर्फ दो पेड़ों का बता रहे हैं | बात इसी बीते इतवार की है | उत्तराखंड के मंत्री धन सिंह रावत थलीसैंन  के पास चोपड़ा खंडखिल मार्ग का शिलान्यास करने गए थे | वही पास ही उन के ननिहाल का गाँव है | जहां कोई सडक मार्ग नहीं है ,धनसिंह अपने मामा से मिलने पैदल चल पड़े | उत्तराखंड के सैंकड़ों गाँवों में अभी भी सडक मार्ग नहीं है | भाजपा का एक आध वर्कर और सिर्फ तीन पुलिस वाले धनसिंह रावत के साथ थे | रास्ते में ही सौ के करीब लोगों ने उन का घेराव कर लिया | घेराव का नेतृत्व महिलाएं ही कर रही थीं | असल में हुआ यह था कि जिस सडक का उन ने शिलान्यास किया , उस के निर्माण में कुछ पेड़ों को काटे जाने की खबर थी | इसी से गाँव की महिलाएं भड़की हुई थीं | यह वृक्षों से प्रेम की गद्द गद्द कर देने वाली घटना है |

दूसरी घटना मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट बुलेट ट्रेन के रास्ते में आने वाले वृक्षों की है | जो मुंबई-अहमदाबाद के बीच चलनी है | रास्ते के निर्माण में वृक्षों की बली होनी है | इसी बीते गुरूवार को सूरत के किसानों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है | हालांकि मामला अधिगृहित की जाने वाली जमीनों की कीमत का भी है | पर फच्चर वृक्षों के कटान का है | तीसरा मामला देश की राजधानी दिल्ली का है | जहां के लोग सडक पर हुई मौत पर भी नहीं रुकते | वृक्षों के कटान की खबर सुन कर वे घरों से निकल आए हैं | इतवार को कोई 1500 लोग सडक पर उतर आए | दिल्ली में शुरू हुए चिपको आन्दोलन ने सचमुच गद्दगद्द कर दिया है | आदेश के मुताबिक़ अकेले सरोजिनी नगर से 11 हजार पेड़ कटेंगे | मामला हाई कोर्ट पहुंच गया है | फिलहाल तो कोर्ट ने 4 जुलाई तक रोक लगाई है | कोर्ट ने कहा है कि सडक बनाने के लिए तो पेड़ कट सकते हैं | पर आवास बनाने के लिए पेड़ों का काटना दिल्ली नहीं झेल सकती |

 

 

 

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