दलित आन्दोलन के पीछे की शक्तियाँ 

Publsihed: 24.May.2017, 22:49

पांच मई 2017 ,सहारनपुर का शब्बीरपुर गांव | दलित-ठाकुर संघर्ष, एक व्यक्ति की मौत | नौ  मई 2017 , दलितों की पुलिस से झड़प, 9 जगह हिंसा | इक्कीस मई 2017 दिल्ली के जंतर मंतर पर  दलितों का प्रदर्शन | तेईस मई 2017, दलित आन्दोलन में मायावती कूदी , एक व्यक्ति की मौत | चौबीस मई 2017 मायावती के शब्बीरपुर दौरे का असर , एक और मौत |  दलितों और ठाकुरों के बीच झगडे की शुरुआत डीजे को लेकर हुई थी | मामूली तनातनी ने उग्र रूप धारण कर लिया था | जमकर पथराव हुआ | एक युवक की पत्थर लगने से मौत हो गई | फिर गोलीबारी हुई | और आखिर में 60 दलितों के घर जला दिए गए | दलितों ने महापंचायत बुलाकर घटना पर विरोध जताया | तभी हिंसा फिर भड़क उठी | यह 9 मई की बात थी | भीड़ ने पुलिस गाड़ी और नाके को आग के हवाले कर दिया | इसी बीच 16 मई को अलीगढ़ के लोधा थाना क्षेत्र में दलितों-ठाकुरों में जातीय संघर्ष हुआ | वजह थी पानी के निकास के लिए नाली बनाना | केशोपुर जाफरी के दलित परिवारों ने मुसलमान बनने का ऐलान कर दिया | इक्कीस मई को जंतर-मंतर पर भी हिन्दू धर्म निशाने पर था | अनेक युवकों ने सर मुंडवाए और कलाई पर बंधा कलेवा उतार फैंका | जो हिन्दू धार्मिक आयोजनों के वक्त पहनाया जाता है | यंहा मुसलमान नहीं, अलबत्ता बोद्ध बनने की चेतावनी दी | योगी आदित्य नाथ जन्म जाति से ठाकुर हैं | वह अपने नाम के साथ जाति सूचक शब्द नहीं लगाते | नाथ सम्प्रदाय से जुड़ कर आदित्य नाथ हो गए | पर वह हैं तो ठाकुर | जैसे मायावती के राज में दलित शेर थे | कई बेगुनाहों को एससी-एसटी एक्ट लगा कर फंसाया गया था | तो हो सकता अब कुछ कुछ जगह पर ठाकुर शेर बने बैठे हों | ठाकुर के सीएम होने की वजह से पुलिस भी उब से डरती हो | उन की दबंगई के चलते दलितों का जीना हराम हुआ हो | ठाकुर पुराने तेवर दिखा रहे हों , जो लोकतंत्र के खिलाफ हैं | जो सविधान में मिले बराबरी के हक़ के खिलाफ हैं | तो योगी आदित्य नाथ को अपने वही तेवर उन ठाकुरों पर भी दिखाने होंगे | जो लखनऊ के मजनुओं को दिखाए थे | अवैध बुचडखानों पर दिखाए थे | पर यह मामला इतना सीधा भी नहीं लगता | दो -तीन बातें गौर करने वाली हैं | जंतर-मंतर पर विदेशी मीडिया की भरमार थी | गौरी चमड़ी वाले वीडियो रिकार्डिंग कर रहे थे | अपन को ज़रा आशंका है | न तो यह गाँव स्तर की लड़ाई लगती है | न ठाकुरों-दलितों का संघर्ष लगता है | न चुनावों में मात खाई जाटव-दलित जाति की राजनीतिक खुन्नस लगती है | अचानक भीम सेना का उभर आना कोई मामूली बात नहीं लगती | यह चन्द्र शेखर आज़ाद उर्फ़ चंदू कौन है ? दिल्ली में इतनी बड़ी रैली के लिए फंडिंग कौन कर रहा है ? गुजरात में यह दलित चेहरा जिग्नेश मेवानी अचानक कहाँ से उभरा | इधर दिल्ली में सर मुंडाए जा रहे थे | उधर हार्दिक पटेल भी सर मुंडा कर न्याय यात्रा पर निकला | दोनों घटनाओं में एकरूपता | अब आप इन घटनाओं को रोहित वेमूला से जोड़ कर देखें | आंध्र प्रदेश का वह युवक फर्जी दलित था | लेकिन दलित के नाम पर सारे देश में आन्दोलन खडा हुआ | | कहा गया , मोदी सरकार में अभिव्यक्ति की आज़ादी खत्म हो गयी | असहिष्णयुता का माहौल बन गया है | लोकतंत्र खतरे में है | विश्वविद्यालयों को आन्दोलन का केंद्र बनाया गया | 60-65 साल से अवार्ड ले रहे वामपंथियों ने अवार्ड वापसी का आन्दोलन खडा किया | जाने-माने वामपंथी आन्दोलन में कूदे | तो देखा देखी राहुल गांधी भी कूद गए थे | यूपी हारने के बाद अब फिर वही आन्दोलन | गुजरात में चुनाव से पहले वही आन्दोलन | जिस तरह जेएनयूं में कश्मीर की आजादी  के नारे लगे | जिस तरह बस्तर की आज़ादी के तार जेएनयूं और दिल्ली विश्व विद्ध्यालय से जुड़े | उसी तरह सहारनपुर के तार विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों से जुड़ रहे हैं | दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं रतन लाल |  मायावती की आलोचना के बहाने उन ने जो लिखा ,उसे पढ़िए | वह किस तरह आग लगा रहे हैं | या आग में घी डाल रहे हैं | वह लिखते हैं -"देश भर में हर जगह दलितों के पीठ पर डंडे पड़ रहे हैं , भेदभाव हो रहा है, दमन हो रहा है, आरक्षण की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, निजीकरण से आरक्षण को ख़त्म किया जा रहा है | और आप ‘सर्वसमाज’ और ‘भाईचारा’ बी बात कर  बिल्ली से दही की रखवाली के लिए कह रही हैं |" अब आप खुद ही किसी नतीजे पर पहुंचिए | नक्सलवादियों-आतंकवादियों के समर्थक बुद्धिजीवियों की जातिवादी  सक्रियता को समझिए | विदेशी मीडिया की सक्रियता को समझिए | 

 

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