भाजपा वर्कर समझेगा , तो समझाएगा

Publsihed: 25.Sep.2020, 19:16

अजय सेतिया / प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चिंतित हैं कि उन की भाजपा कार्यकर्ताओं की फ़ौज सोशल मीडिया पर विरोधियों के सामने पिछड़ रही है | कृषि सुधार बिलों को ले कर भाजपा के कार्यकर्ता विरोधियों के मुकाबले बहुत कमजोर पड़े हैं | वह भी इस के बावजूद कि उन तीन में से दो विधेयक लाने का वादा तो कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में ही किया था | भाजपा का सोशल मीडिया आईटी सेल और मीडिया विभाग बिलों के विश्लेष्ण जनता के सामने नहीं रख सके | इस लिए शुक्रवार को मोदी ने खुद देश भर के भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ वर्चुयल बैठक कर के किसानों को क़ानून समझाने की गुहार लगाई , लेकिन वे तो ऐसा तब कर पाएंगे जब वे खुद क़ानून के नुक्तों को समझ लें, और खुद भी इन कानूनों को ले कर आश्वस्त हो जाएं | सच यह है कि विपक्ष ने इतने सवाल खड़े कर दिए हैं कि भाजपा के कार्यकर्ता खुद क़ानूनों के किसानों के पक्ष में होने को ले कर आश्वस्त नहीं हैं | भाजपा का शहरी कार्यकर्ता अनाज मंडियों की बर्बादी को लेकर आशंकित है , और उन्हीं पर उन के घर-परिवार का अर्थतन्त्र टिका है |

शायद अब नेतृत्व को समझ आएगा कि पार्टी मुख्यालय और प्रदेशों में काम कर रहे विभिन्न सेलों की क्या भूमिका होती है | अमित शाह ने पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद दो-चार को छोड़ कर सारे विभाग , सेल , मोर्चे भंग कर दिए थे, जिन का फिर से गठन नहीं किया गया | किसान मोर्चा हाल ही तक काम चलाऊ काम कर रहा था , वह भी अब मृत प्राय है | जेपी नड्डा को अध्यक्ष का पद भार सम्भाले एक साल हो चुका है , वह अपनी सशक्त टीम और विभागों , सेलों और मोर्चों का पुनर्गठन कर सकते थे | सोनिया गांधी ने कार्यकारी अध्यक्ष होने के बावजूद कांग्रेस संगठन की ओवरहालिंग कर दी | खैर मोदी की चिंता सिर्फ कृषि से सम्बन्धित कानूनों को लेकर नहीं है , श्रम को ले कर बने कानूनों को ले कर भी है , श्रम कानूनों के खिलाफ विपक्ष ने अभी मोर्चा नहीं खोला है , लेकिन वह मोर्चा भी जल्द खुलेगा | इस लिए मोदी ने शुक्रवार को पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ वर्चुयल बैठक में कृषि के साथ श्रम कानूनों को ले कर भी जनता की भ्रांतियां दूर करने की बात कही |

 मोदी सरकार इसे एक बड़ी उपलब्धि बता रही है कि उस ने 44 श्रम कानूनों को रद्द कर के सिर्फ चार श्रम कानूनों में समाहित कर के उलझाव खत्म किया है | लेकिन संसद सत्र के आख़िरी दिन 23 सितम्बर ऐक्टू , एटक, सीटू , इंटक , एच.एम.एस, .आई.यू.टी.यू .सी , यू.टी.यू.सी , सेवा , एल.पी.एफ  और अन्य संगठनों ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया | मोदी और भाजपा के लिए संतोष की बात यह है कि इस विरोध प्रदर्शन में राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने हिस्सा नहीं लिया जो आज की तारीख में देश का सब से बड़ा श्रमिक संगठन है | लेकिन इन वामपंथी टाईप मजदूर संगठनों का कहना है कि मोदी सरकार ने 44 महत्वपूर्ण श्रम कानूनों को रद्द करके श्रमिकों के अधिकारों को छीनने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है | उन का कहना है कि मोदी ने कोरोनाकाल का फायदा उठा कर मानसून सत्र इस तरह सूत्रबद्ध किया कि श्रमिकों और किसानों से जुड़े महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा ही ना हो | देश में यह धारणा बनाने में विपक्ष कामयाब होता दिख रहा है कि व्यापक विरोध के बावजूद मोदी सरकार तमाम मजदूर व किसान विरोधी क़ानून बना रही है, जो सरकार के मज़दूर-विरोधी और कॉरपोरेट-समर्थक रुख को दर्शाता है | जब कि मोदी सरकार का कहना है कि उसने श्रम प्रोटाकाल में श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा करते हुए फेक्ट्री मालिकों को “छापे राज” से मुक्ति दिलाने वाले कदम उठाए हैं, जिस से उत्पादन और व्यापार का माहौल बनेगा |

सरकार ने नए नियमों में 300 से कम कर्मचारियों वाली औद्ध्योगिक इकाईयों को बिना सरकार की इजाजत के कर्मचारियों की छंटनी का अधिकार दे दिया है , पहले यह अधिकार सिर्फ 100 तक कर्मचारियों वाली फेक्टरियों को था | सरकार कहती है कि ज्यादा जरूरत होने के बावजूद फेक्ट्री मालिक सौ से ज्यादा कर्मचारी नहीं रखते थे , इस लिए अब रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे | लेकिन इस का दूसरा पहलू यह है कि मंदी झेल रही 300 तक कर्मचारी वाली फेक्ट्रियां छटनी अभियान चला कर उस से कई गुना ज्यादा बेरोजगार पैदा कर देंगी | इस तरह की अनेक उलझने हैं , जिन्हें अगर भाजपा का वर्कर समझेगा नहीं तो समझाएगा कैसे और इस बीच मोदी सरकार की किसान, मजदूर , रोजगार विरोधी छवि बड़ी तेजी बन रही है | इस लिए संगठन के सारे छेद तुरंत भरने की जरूरत है |

 

 

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