अदालतों से सीधे प्रसारण से फायदा क्या है

Publsihed: 24.Aug.2018, 23:03

अजय सेतिया / संसद की तरह क्या अदालतों की कार्यवाही का भी लाईव टेलीकास्ट होना चाहिए | तो इस से होगा क्या | क्या जज फैसला करते समय यह सोचेंगे कि जिन लोगों ने सुनवाई देखी है उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी | क्या लाईव टेलीकास्ट से जज का फैसला प्रभावित होगा | संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण बड़े सोच विचार के साथ हुआ था | विचार यह था कि वोटरों को यह पता चले कि उन का सांसद कुछ करता भी है या नहीं | फिर अगले चुनाव में उसी के अनुसार वह अपना निर्णय ले सकें | अगर सीधे प्रसारण में अपने सांसद की कार्यवाही से संतुष्ट हों तो उसे दुबारा चुनें | नहीं तो उस का ढक्कन गोल कर दें | जब संसद की कार्यवाही का प्रसारण शुरू हुआ तो सासंद डरे सहमे रहते थे | लोकसभा स्पीकर हल्ला कर रहे सांसदों को खूब डराया करते थे कि वोटर उनको देख रहे हैं | कुछ दिन तक सांसद इस डर से सहमे हुए बैठे भी रहे | पर आदतें कहाँ बदलती हैं , ऊपर से सदन में दल के नेता का आदेश भी मानना पड़ता है | नेता का आदेश हल्ला करने का हो तो उसे हल्ला करना ही पड़ता है | नहीं तो वोटर तो बाद में सजा देगा , नेता पहले ही टिकट काट कर दे देगा |

अब मोदी सरकार का इरादा अदालतों की कार्यवाही का भी लाईव टेलीकास्ट करवाने का है | इस पर सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई हो रही है | मोदी सरकार की ओर से अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कोर्ट में पूरी प्लानिंग दाखिल की | जिस में पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर चीफ जस्टिस की कोर्ट से प्रसारण शुरू करने का सुझाव है | जिसमें संवैधानिक मुद्दे और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे शामिल किए जाएं | वैवाहिक विवाद, नाबालिगों से जुड़े मामले, राष्ट्रीय सुरक्षा और सांप्रदायिक सौहार्द से जुड़े मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग न हो | लाइव स्ट्रीमिंग के लिए एक मीडिया रूम बनाया जा सकता है | जिसे याचिकाकर्ता , पत्रकार और वकील इस्तेमाल कर सकें | इससे कोर्टरूम की भीड़-भाड़ कम होगी | अटार्नी जनरल ने कहा कि कोर्ट गाइडलाइन फ्रेम करे, फिर सरकार फंड रिलीज करेगी | सरकार का इरादा भांप कर अदालत का रूख भी सीधे प्रसारण को हरी झंडी देने का है | लाइव टेलीकास्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट एक कदम बढ़ा है | कोर्ट ने कहा कि अदालती कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग से पारदर्शिता बढ़ेगी | ये ओपन कोर्ट का सही सिद्धांत होगा | पर अदालत अयोद्ध्या , आरक्षण , हलाला , 35 ए जैसे मुद्दों के लाईव टेलीकास्ट से डर भी रही है | वकीलों की टिप्पणियों से ही देश में दंगे हो सकते हैं |

जब सुनवाई हो रही थी तो जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ये तकनीक के दिन हैं | हमें पॉजीटिव सोचना चाहिए | देखना चाहिए कि दुनिया कहां जा रही है | कोर्ट में जो सुनवाई होती है वेबसाइट उसे कुछ देर बाद ही बताती है | इसमें कोर्ट की टिप्पणी भी होती है | साफ है कि तकनीक उपलब्ध है | हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए |  हम खुली अदालत को लागू कर रहे हैं | चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि अयोध्या और आरक्षण जैसे मुद्दों की लाइव स्ट्रीमिंग नहीं होगी | राष्ट्रीय महत्व के बाकी मामलों में लाइव स्ट्रीमिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है |

पर कुछ वकील सरकार और अदालत के फैसले से खफा हैं | यह बात भी अदालत में जाहिर हुई | एक वकील ने कहा कि कोर्ट की टिप्पणियों की गलत व्याख्या करने का खतरा बढ़ जाएगा | वहीं एक वकील ने कहा कि इससे याचिकाकर्ता को पता चल जाएगा कि कैसे कुछ सेकिंडों में उसका केस खारिज हुआ | यानि वकीलों को खतरा है कि उन के क्लाईंट जान जाएंगे कि उन का वकील कितना फिस्सडी साबित हुआ | और यह भी पता चल जाएगा कि जज केसों को लेकर कितने गम्भीर होते हैं | इस पर जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि केस को पढ़ने में जज कितना वक्त लेते हैं | ये देखने कोई उनके घर नहीं जाता | पर जैसा डर सांसदों को अपने वोटरों पर गलत इम्प्रेशन का है | वैसा डर अदालतों के जजों और वकीलों में नहीं हो सकता | कोई न तो जज को हटा सकता है , न वकील को | हाँ अगर कोलिजिय्म अपने अधिकार में कटौती करने को तैयार हो | ऐसा हो कि जजों की पदोन्नति की कमान जनता को दे दी जाए | कोलिजिय्म की बजाए जनता वोट दे कर जज की पदोन्नति का फैसला करे, तो लाईव टेलीकास्ट का फायदा है | जज फैसलों में घपलेबाजी नहीं करेंगे | पर अगर लाईव टेलीकास्ट का उन की सेहत पर कोई असर ही नहीं होना , तो क्या फायदा |

 

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