आतंकियों के निशाने पर अब कश्मीरी मुसलमान 

Publsihed: 24.Jun.2017, 06:05

हर शुक्रवार कश्मीर घाटी के लिए मौत का पैगाम लाता है | जुमे की नमाज पर लोग मस्जिद में जुटते है | मस्जिद से निकलते ही कोई न कोई भारत विरोधी वारदात जरुर होती है | सेना पर पथराव तो मामूली बात है | कई बार बम विस्फोट और गोलीबारी | हत्याएं भी जरुर होती हैं | शुक्रवार की इन घटनाओं ने इस्लाम का सिर शर्म से झुका दिया है | इस शुक्रवार की घटना से बहुत सी बातें साफ़ हो गई | श्रीनगर की जामिया मस्जिद के बाहर एक डीएसपी की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई |  डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित मस्जिद के बाहर सुरक्षा ड्यूटी पर था | आतंकी उसकी हत्या कर सर्विस रिवॉल्वर भी ले गए | मस्जिद के अंदर जब  नमाज अदा हो रही थी | ठीक उसी समय उन पर हमला कर हुआ | डीएसपी यूनिफॉर्म में नहीं थे |  जब घरवालों ने फोन किया , तब पुलिस पहचान पाई कि वह डीएसपी हैं | डीएसपी ने शायद आत्मरक्षा में गोली भी चलाई | तीन लोग घायल हुए हैं | जम्मू कश्मीर पुलिस ने ट्वीट किया है कि फ़र्ज़ निभाते हुए एक और अफसर ने अपनी जान क़ुर्बान की | पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया है कि उनकी मौत एक त्रासदी है | उनने कहा डीएसपी पंडित को मारने वाले  अपने पापों के लिए नरक की आग में जलेंगे | इस बार की वारदात और बाकी वारदातों में थोड़ा फर्क है | आतंकियों ने डीएसपी को मारने के लिए कुछ नौजवान भेजे थे | ठीक उसी तरह जैसे मुठभेड़ों में आंतकियों को बचाने के लिए भीड़ जुटती है | हाल ही की कुछ घटनाओं और इस घटना से कुछ चीजें साफ़ हुई | अब भारत के वफादार कश्मीरी मुसलमान आतंकियों के निशाने पर  है | भले ही वह पुलिस में हो, या सेना में | यह पुलिस और सेना में भर्ती कश्मीरियों को चेतावनी है | उन्हें चेतावनी है कि वे भारतीय नौकरी छोड़ दें | अन्यथा जैसे कश्मीरी पंडितों से घाटी खाली करवाई गई, वैसा ही उन के साथ होगा | जम्मू कश्मीर के पांच जिले मुस्लिम कट्टरपंथ का शिकार हो चुके हैं | अब यह मानने में संकोच नहीं होना चाहिए | यह हाल ही के सालों की नीतियों का नतीजा नहीं है | इन हालातों की बुनियाद तो 1984 से 1989 के बीच में रखी गई थी | जब राजीव गांधी  प्रधानमंत्री और जगमोहन  राज्यपाल थे | इन्हीं पांच सालों में जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पनपा और फला फूला | फारूक अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया | क्योंकि वह केंद्र के इशारे पर नहीं चलते थे | राजीव गांधी ने उन्हीं के जीजा जीएम शाह को मुख्मंत्री बनाया | इधर मुख्यमंत्री पद से हटे फारुक खार खाए थे, उधर पाकिस्तान ने भी अच्छा मौक़ा समझा | उसी समय घाटी को कश्मीरी पंडितों से खाली कराने की साजिश रची गई | आतंकवाद की शुरूआत कर दी | तब राजीव गांधी ने फारूक से समझौता कर उन्हें दुबारा मुख्यमंत्री बनाया | पर इस राजनीतिक खेल ने कश्मीर में आतंकवाद के बीज बौ दिए थे | फिर 1987 के  चुनाव ने आग में घी का काम किया  | जब पूरी तरह फर्जी चुनाव करवा कर फारूक अब्दुला को मुख्यमंत्री बनवाया गया | वीपी सिंह के पीएम बनाने के बाद तो पाकिस्तान का आपरेशन और तेज हो गया | वीपी सिंह ने हालात संभालने के लिए जगमोहन को भेजा | पर वह फेल हो कर पांच महीने में लौट आए | इन्हीं पांच महीनों में घाटी कश्मीरी पंडितों से खाली हो गई | तब भी पाकिस्तानी आतंकियों ने मस्जिदों का इस्तेमाल किया था | मस्जिदों के लाऊड स्पीकरों से कश्मीरी पंडितों को फरमान जारी किए गए | अब फिर मस्जिदों का इस्तेमाल हो रहा है | कभी सेना के खिलाफ | तो कभी कश्मीरी मुस्लिम पुलिस अफसरों के खिलाफ | एक बात साफ़ है | अब लड़ाई न तो कश्मीर की स्वायतता की है | न कश्मीर में जनमत संग्रह की है | अब लड़ाई घाटी को उन सब से मुक्त  करवाने की है , जो भारत के साथ हैं | यह डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को श्रध्दांजलि देने वाले उमर अब्दुल्ला भी समझ लें | महबूबा मुफ्ती भी समझ लें , जो बार बार बातचीत कु दुहाई दे कर उन की पैरवी करते हैं | उमर अब्दुल्ला और महबूबा भी अगर भारत के साथ है, तो वे भी उन के निशाने पर हैं 

आपकी प्रतिक्रिया