अजय सेतिया/ मोदी सत्ता में आए तो रसोई गैस राशन कार्ड पर मिलती थी , उस का भी प्रति परिवार कोटा तय था |मनमोहन सिंह सब्सिडी वाले घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 414 रुपए छोड़ गए थे , तब भी सरकार प्रति सिलेंडर 827 रूपए की सब्सिडी दे रही थी | यानी बिना सब्सिडी के सिलेंडर उस समय 1241 रुपए का था | मोदी ने पहले तो कीमतें घटाई और कोटा खत्म किया | फिर सम्पन्न उपभोक्ताओं को सब्सिडी छोड़ने को कहा | मोदी के कहने पर एक करोड़ से ज्यादा उपभोक्ताओं ने रसोई गैस पर सब्सिडी छोड़ दी थी | इस बीच मोदी राज में रसोई गैस की कीमतों में काफी कटौती हो चुकी है | दिल्ली में इस समय सब्सिडी वाला सिलेंडर 563 रुपए का और बिना सब्सिडी के 858 रुपए में मिल रहा है | लेकिन मोदी के आने के बाद अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें घटने के बावजूद भारत में पेट्रोल और डीजल में आग लगी हुई है | राजस्थान के गंगानगर में पेट्रोल पम्पों ने कीमत दिखाना ही बंद कर दिया है , क्योंकि पम्पों के मीटर में दहाई के आंकड़े का ही प्रावधान था , लेकिन पेट्रोल ने सौ रूपए का आंकडा छू लिया है |
आप को मजेदार बात बताएं , नेपाल भारत से पेट्रोल और डीजल लेता है , लेकिन नेपाल में पेट्रोल-डीजल सस्ता है क्योंकि वहां टेक्स कम है | नेपाल में पेट्रोल 70 रुपए लीटर मिल रहा है | नतीजा यह है कि नेपाल बार्डर से बड़े पैमाने पर पेट्रोल तस्करी की खबरें आती रहती हैं | भारत में केंद्र और राज्य सरकारें शराब और पेट्रोलियम पदार्थों को अपनी कमाई का मुख्य स्रोत बनाए हुए है | इस लिए राज्य सरकारें इन दोनों को जीएसटी के दायरे में लाने को राजी नहीं हुई , अब जब आक्रोश बढा है तो निर्मला सीतारमण ने एक बार फिर जीएसटी कोंसिल से अपील की है कि वह पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाएं ताकि पेट्रोल-डीजल सस्ता भी हो और देश में एक जैसे दाम भी हों |
अपन घरेलू टैक्सों की बात करेंगें , पर पहले अतर्राष्ट्रीय बाज़ार को समझ लेते हैं | याद होगा कि एक साल पहले महामारी के समय अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें नकारात्मक हो गई थी , क्योंकि दुनिया में कहीं मांग ही नहीं थी , लेकिन अब जब महामारी का असर कम हुआ है , तो मांग बढ़ गई है और कीमतों में भी उछाल आ रहा है | इस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लगभग 60 डालर प्रति बैरल की कीमत है , जबकि पिछले साल अप्रेल में 20 डालर प्रति बैरल हो गया था | भारत अपनी जरूरतों का 80 प्रतिशत तेल आयात करता है | ओपेक देश पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति नहीं बढाना चाहते , आपूर्ति बढ़ेगी तो कीमतें घटेंगी , जबकि रूस मौजूदा आपूर्ति बढाना चाहता है ताकि कीमतें घटें | अगले महीने जब ओपेक और रूस की बैठक होगी , तो पता चलेगा कि तेल की कीमतें कहाँ खडी होती हैं |
लेकिन असल सवाल दूसरा है , क्या भारत में पेट्रोलियम पदार्थों के दाम अंतर्राष्ट्रीय मार्केट पर ही निर्भर रहेंगे या मोदी सरकार और राज्य सरकारें भी कुछ कर सकती है | हाँ , कर सकती है | पहले अपन समझ लें कि भारत में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें इतनी ज्यादा क्यों हैं | तो अपन शुरू से शुरू करते हैं , अतर्राष्ट्रीय बाजार की मौजूदा कीमत को आधार बनाएं तो पेट्रोल 28 रूपए प्रति लीटर बैठता है , आयात कर के यह 31 रुपए 82 पैसे का बैठता है , 28 पैसे प्रति लीटर घरेलू भाडा लगा कर 32.10 रूपए बनता है | अगर इस पर सौ प्रतिशत भी टेक्स लगा दिए जाएं , तो उपभोक्ता को 64 रूपए प्रति लीटर में मिलना चाहिए , लेकिन दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 90 रूपए प्रति लीटर है | इस का कारण है केंद्र और राज्य सरकारों के मनमाने टेक्स |
केंद्र सरकार 32.90 रूपए एक्साईज ड्यूटी लेती है , राज्य सरकारें अलग अलग दर पर कहीं 20 रुपए तो कहीं 30 रूपए वैट ले रही है | जैसे दिल्ली में 20.61 रूपए वैट है | और डीलर को 3.68 रूपए प्रतिलीटर कमिशन मिलता है , इस तरह यह 90 रुपए लीटर हो गया | जहां तीस रुपए वैट है , वहां सौ रुपए का हो गया | कुल मिला कर भारत में 260 प्रतिशत टैक्स है | तो क्या इतने टैक्स लगने चाहिए ? अब अपन बाकी देशों से तुलना कर लें , जर्मनी और इटली में कुल टैक्स 65 प्रतिशत है , ब्रिटेन में 62 प्रतिशत , जापान में 45 प्रतिशत और अमेरिका में तो सिर्फ 20 प्रतिशत है | तो क्या केंद्र सरकार को एक्साईज ड्यूटी और राज्य सरकारों को वैट नहीं घटाना चाहिए , दोनों टैक्स कम से कम आधे होने चाहिए , ताकि उपभोक्ता को पेट्रोल 90 रुपए से घट कर 65-66 रुपए लीटर मिल सके |
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