गिलगित-बाल्टिस्तान पर चीन की नजर

Publsihed: 22.Aug.2020, 19:36

अजय सेतिया / नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद ज्यादातर भारतीय पाकिस्तान और चीन के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर को वापस लेने की हसरत पाले हुए हैं | 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा लेने के बाद से नया घटनाक्रम यह हुआ कि लद्दाख और जम्मू कश्मीर को अलग अलग केंद्र शाषित क्षेत्र और राज्य बना दिया गया | उस में भी महत्वपूर्ण यह हुआ है कि पाकिस्तान और चीन के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान को भारत ने केंद्र शाषित लद्दाख का हिस्सा बताया है , और पाकिस्तान के कब्जे वाले मुज्जफराबाद , मीरपुर को जम्मू कश्मीर का हिस्सा बताया है | भारत पहले भी पाक अधिकृत कश्मीर को भारत का हिस्सा बताता ही रहा है और इस सम्बन्ध में नरसिंह राव के शाषणकाल में इसे पाक के कब्जे से मुक्त करवाने के लिए संसद ने एक प्रस्ताव भी पास किया था | हालांकि इसे हासिल करने के कभी प्रयास नहीं किए गए , न अभी किए जा रहे हैं , लेकिन नरेंद्र मोदी की दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते भारतीयों की आशा बंधी है |

1947-48 में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के 45 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर लिया था | लेकिन 1963 में अपने कब्जे वाले कश्मीर के 45 प्रतिशत हिस्से में से 15 प्रतिशत हिस्सा तोहफे में चीन को सौंप दिया था | यह गिलगित-बाल्टिस्तान का शक्स्ग्म घाटी का वह इलाका है , जो भारत की  चीन , अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सीमा बनाता | यह इलाका चीन के कब्जे में आ जाने के बाद अब अगर भारत पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान पर कब्जा भी करता है , तो भी सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर का 15 प्रतिशत इलाका यानी 72,971 किमी चीन के कब्जे में रहेगा | मोदी के कश्मीर पर लिए गए एतिहासिक फैसले के बाद चीन और पाकिस्तान दोनों बेचैन हैं , चीन ने लद्दाख में घुसपैठ की कोशिश की है , तो पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान में सैनिकों की तादाद बढा दी है |

गिलगित-बाल्टिस्तान में अभी भी भारत में विलय और पाकिस्तान से आज़ादी की आग बुझी नहीं है , अनेक गिल्गीती लोग दुनिया के अनेक देशों में राजनीतिक शरण ले कर गिलगित बाल्टीस्तान की मुक्ति का आन्दोलन चला रहे हैं | लद्दाख का यह इलाका सामरिक दृष्टी से भारत के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है | उधर अपनी सीपेक योजना को सफल बनाने के लिए चीन की नजर भी सम्पूर्ण गिलगित-बाल्टिस्तान पर टिकी है | अब जब कि पाकिस्तान आर्थिक रूप से कंगाली की हालत में है और चीन से भीख मांग रहा है , तो चीन ने कर्ज के बदले पूरा गिलगित-बाल्टिस्तान मांग लिया है |

हुआ यह है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान को कर्ज उतारने का नोटिस दे दिया था | सऊदी का कर्ज उतारने के लिए पाकिस्तान ने चीन से एक बिलियन डॉलर का कर्ज लिया था, लेकिन अब सऊदी ने अपने बाकी बचे 2 बिलियन डॉलर भी मांग लिए हैं । पाकिस्‍तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी नया कर्ज मांगने के लिए तीन दिन से चीन में हैं ,  लेकिन वहां उसे बड़ा झटका लगा है , ड्रैगन ने उसे अपना असली रंग दिखा दिया है। चीनी अधिकारियों ने पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से स्पष्ट रूप से कहा है कि वे पाकिस्तान को दिए गए किसी भी कर्ज के बदले गिलगित-बाल्टिस्तान का हिस्सा चाहते हैं । यह चीन की पुरानी चाल है कि वह दुनिया के देशों को पहले सस्‍ते कर्ज के जाल में फंसाता है और फिर उसकी जमीन पर कब्‍जा करता है।

चीन अपनी सीपेक योजना के तरह करीब 60 अरब डॉलर का निवेश करके पाकिस्तान से चीन तक सड़क और रेलवे लिंक बना रहा है। इसके जरिए पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से चीन के शिनजियांग प्रांत को जोड़ा जाएगा । अगर गिलगित-बाल्टिस्तान का  पूरा इलाका चीन के नियन्त्रण में आ जाता है तो चीन की सड़क और रेलवे लिंक योजना में कोई अडचन नहीं रहेगी | हालांकि यह विवादित इलाका है , क्योंकि भारत ने गिलगित-बाल्टिस्तान पर अपना दावा कभी भी नहीं छोड़ा , अलबत्ता भारत ने चीन की ग्वादर लिक योजना का भी यह कहते हुए विरोध किया है कि यह लिंक रोड भारतीय इलाके में से गुजरती है | अगर भुखमरी के दबाव में आ कर पाकिस्तान 1963 की तरह गिलगित-बाल्टिस्तान का बाकी बचा हिस्सा भी चीन को सौंप देता है तो भारत के लिए सामरिक दृष्टी से मुश्किल खडी होगी | 

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