पाकिस्तान और यूक्रेन के संकट

Publsihed: 23.Feb.2022, 07:06

अजय सेतिया / यूक्रेन की मौजूदा स्थिति को आप यहाँ से सोचना शुरू करिए कि 1947 में भारत एक विशाल देश था | उस समय सोवियत संघ भी एक विशाल देश था | हालांकि भारत में ब्रिटिश राज से पहले अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग राजाओं का शासन था | लेकिन भारत सदियों से एक सांस्कृतिक देश रहा था | ब्रिटिश राज के खिलाफ सारे देश ने एकजुट हो कर आज़ादी की जंग लडी और 15 अगस्त 1947 को दो अलग देशों के रूप में मान्यता पा ली | उधर 1917 में साम्यावादी क्रांतिकारियों ने रूस के जार सम्राट आलेक्सान्द्र करेंस्की का तख्ता पलट कर विजय हासिल कर ली | तभी गृह युद्ध शुरू हो गया , क्योंकि कई राज्यों ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था | खैर गृह युद्ध बोल्शेविकों की लालसेना विजयी रही और 1922 में सब को मिला कर सोवियत संघ नाम से नया देश बना लिया गया |  लेकिन कम्युनिस्टों की तानाशाही के कारण 1991 आते आते यह प्रयोग विफल हो गया | सोवियत संघ टूट गया और उस का हिस्सा बने सभी 15 देश स्वतंत्र हो गए | बाकी बचा देश फिर से रूस बन गया |

इधर अब भारत को देखिए | 1947 में अंग्रेज क्रांतिकारियों से डर कर भारत के दो टुकड़े कर के भाग गए | भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में पूर्व के कुछ राज घरानों ने खुद को अलग देश घोषित किया | भारत ने उन सभी से बातचीत कर के उन्हें प्रिवीपर्स देते हुए अपने साथ मिला लिया | हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर  के विलय में भारत को थोड़ी मशक्त करनी पड़ी थी | उधर सिंध और बलूचिस्तान पाकितान में विलय को तैयार नहीं थे | बलूचिस्तान पर तो पाकिस्तान ने धोखे से कब्जा किया , जहां अभी भी आज़ादी की जंग जारी है | इस बीच पाकिस्तान टूट कर बांग्लादेश बना | बांग्लादेश और बलूचिस्तान की कहानी काफी हद तक यूक्रेन की मौजूदा स्थिति से मेल खाती है |

सोवियत संघ से अलग हुए यूक्रेन के दो प्रांत दोनेत्सक और लुहांस्क अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं | इन दोनों प्रान्तों को मिला कर डोनबॉस कहते हैं | वे खुद को डोनबास आज़ाद देश घोषित कर चुके हैं | रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी 21 फरवरी को उसे अलग देश की मान्यता दे दी | इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रतिबन्ध लगा दिए हैं | लेकिन राष्ट्रपति बिडेन ने लुगांस्क और डोनेट्स्क के खिलाफ प्रतिबंध लगाए हैं | जबकि रूस पर तुरंत प्रतिबंध नहीं लगाए हैं | अमेरिका और नाटो देशों ने कहा है कि रूस ने मिंस्क समझौता ख़त्म कर दिया है | दोनेत्सक और लुहांस्क से पहले यूक्रेन के क्रीमिया प्रांत ने भी आज़ादी की लड़ाई छेडी थी | तब भी रूस ने उस का साथ दिया और हथिया लिया था | लेकिन बाद में रूस इस बात के लिए मान गया था कि क्रीमिया को यूक्रेन के अंदर ही स्वायत्तता मिले | इस संबंध में 2014 में मिन्सक समझौता हुआ था |

अब रूस दोनेत्सक और लुहांस्क प्रान्तों का साथ दे रहा है | ठीक उसी तरह , जैसे पूर्वी पाकिस्तान की आज़ादी की लड़ाई में भारत ने साथ दिया था | जैसे भारतीय सेना ने मुक्ती वाहिनी का साथ दिया था | वैसे ही उन दोनों प्रान्तों को यूक्रेन से मुक्त करवाने के लिए रूसी सेना यूक्रेन की सीमा पर तैनात है | यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद से हस्तक्षेप की अपील की है | भारत समेत कई अन्य देशों ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गुहार लगाई है | यूएनएससी की बैठक में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने भारत का पक्ष रखा | भारत ने रूसी सेना की सीमा पर तैनाती का यह कहते हुए विरोध किया कि यह मुद्दा राजनयिक बातचीत से हल किया जा सकता है | लेकिन क्या ऐसा संभव है | अगर हम अलग अलग संस्कृतियों की आज़ादी के हिमायती नहीं हैं , तो हमे चुप रहना चाहिए | हम ने जिस तरह बांग्लादेश को मुक्त करवाया | उसी तरह तो रूस डोनबॉस को मुक्त करवाने में भूमिका निभा रहा है | अलबत्ता हमें तो बलूचों का साथ देना चाहिए , जो पाकिस्तान से मुक्त होने के लिए 70 साल से अपना खून बहा रहे हैं |

 

 

 

 

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