लोकतंत्र का गला तो विपक्ष दबा रहा था

Publsihed: 21.Sep.2020, 18:34

अजय सेतिया / कृषि सम्बन्धी बिलों को ले कर घमासान अभी जारी है , हालांकि बिल दोनों सदनों में पास हो चुके हैं | बिल पास हो जाने के बाद सरकार के बचाव का मोर्चा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को सम्भालना पड़ा क्योंकि अनुभव , खासकर कृषि मंत्रालय के अनुभव में बाकी सारे मंत्री अनाडी हैं | शनिवार और रविवार को राजनाथ सिंह के लाइम लाईट में आने से राजनीतिक हलकों में सुगबुगाहट भी तेज हुई | सोमवार को हिन्दी के एक बड़े अखबार में कृषि बिलों के पक्ष में राजनाथ सिंह के लेख ने राजनीतिक सुगबुगाहट को और तेज किया , नतीजतन नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने भी सोमवार को बिलों के पक्ष में बयान देते हुए विपक्ष पर हमला किया |

मोदी ने बिहार की चुनावी रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारे देश में अब तक उपज बिक्री की जो व्यवस्था चली आ रही थी, जो कानून थे, उसने किसानों के हाथ-पांव बांधे हुए थे | इन कानूनों की आड़ में देश में ऐसे ताकतवर गिरोह पैदा हो गए थे, जो किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे | आखिर ये कब तक चलता रहता ? अब देश अंदाजा लगा सकता है कि अचानक कुछ लोगों को जो दिक्कत होनी शुरू हुई है, वो क्यों हो रही है | मोदी का यह बयान एकजुट विपक्ष के खिलाफ है , उन का इशारा किसानी के नाम पर करोड़ों की कमाई करने वाले राजनीतिक घरानों की ओर है , किसी का नाम लेने की उन की आदत नहीं , इस लिए उन्होंने बादल परिवार और पवार परिवार का नाम नहीं लिया , लेकिन सोशल मीडिया पर इन दोनों परिवारों पर आरोप लग रहे हैं कि को-आपरेटिव सोसाइटियों और गोदामों के नाम पर वे हजारों किसानों की मेहनत पर हाथ साफ़ करते रहे हैं |

मोदी के शरद पवार और प्रकाश सिंह बादल के साथ घनिष्ट सम्बन्ध रहे हैं , लेकिन महाराष्ट्र में पवार के गच्चा देने से सम्बन्धों में कडवाहट पैदा हुई है | प्रकाश सिंह बादल के तो वह सार्वजनिक तौर पर पाँव छूते रहे हैं , लेकिन उन की पुत्रवधू हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा मंजूर करते उन्होंने एक मिनट नहीं लगाया | इस का बड़ा कारण यह है कि 2017 में पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश भाजपा अकालियों से सम्बन्ध तोड़ कर अकेले चुनाव लड़ना चाहती थी , 2014 में हरियाणा में चौटाला से सम्बन्ध तोड़ कर अकेले चुनाव लड़ने का भाजपा को फायदा हुआ था | लेकिन मोदी दबाव में आ गए और उन्होंने फैसला अरुण जेटली पर छोड़ दिया , पार्टी में असहमति के बावजूद मोदी की इच्छा का सम्मान करते हुए जेटली ने फैसला गठबंधन बनाए रखने का दिया था | भाजपा को इस का खामियाजा भुगतना पड़ा और उस के सिर्फ 3 विधायक बन पाए |

बादल परिवार से सम्बन्ध नहीं तोड़ने के मुद्दे पर ही नवजोत सिंह सिद्धू भाजपा छोड़ गए थे , अब जब कि जनवरी 2022 में फिर चुनाव होने वाले हैं , तो मोदी 2017 की गलती सुधारने के मूड में हैं , हालाकि हरसिमरत कौर ने अपने इस्तीफे में मोदी सरकार की बेहद तारीफ़ की है | पंजाब का ऊंट किस करवट बैठता है यह अमरेन्द्र सिंह की रणनीति पर भी निर्भर रहेगा , जिन्होंने कृषि बिल के खिलाफ किसानों को भडकाने वाली हमलावर भूमिका बना कर बादल परिवार को भाजपा से रिश्ते तोड़ने को मजबूर कर दिया | यह इस पर भी निर्भर रहेगा कि अब किसानों का कितना फायदा होगा या नहीं होगा , फिलहाल तो इस पर परस्पर विरोधी दावे हैं और पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले चार फसलें आना बाकी हैं | लेकिन एक बात सच है कि अगर किसानों ने मंडियों से बाहर फसल बेचनी शुरू कर दी , या कांट्रेक्ट फार्मिंग शुरू कर दी तो परम्परागत आढत व्यवस्था धराशाही हो जाएगी | आढतियों की दुकानें बंद हो जाएँगी और बाज़ार सूने हो जाएंगे |

खैर राज्यसभा में बहुमत न होते हुए भी भाजपा ने जिस तरह बिल पास करवा लिया , उस पर लोकतंत्र पर खतरा मंडराने की बड़ी बड़ी बातें की जा रही हैं | राज्यसभा परिपक्व और अनुभवी लोगों का सदन माना जाता है , जहां लोकसभा में चुनाव लड़ने की आयु 25 साल है , वही राज्यसभा में 30  साल है | राज्यसभा में ऐसा सीन कभी देखने को नहीं मिला, जैसा रविवार को देखने को मिला | तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ' ब्रायन और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह समेत 8 सदस्यों ने राज्यसभा को तमाशा बना दिया , उन्होंने उप सभापति पर हमला किया और मार्शल का गला दबा दिया | लोकतंत्र के मंदिर में लोकतंत्र का गला तो विपक्ष दबा रहा था | सोमवार को जब चेयरमेन ने इन आठों सदस्यों को निलम्बित किया तो उन्होंने बाहर निकलने से इनकार कर दिया ,उपसभापति हरिवंश राय पर आरोप है कि उन्होंने हंगामा इस लिए किया क्योंकि बिल को सलेक्ट कमेटी में भेजने के विपक्षी सदस्यों के प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं करवाई , जबकि सदन का नियम 71 कहता है कि विपक्ष सिर्फ मांग कर सकता है , जब तक मंत्री सहमत नहीं हो बिल कमेटी को नहीं भेजा जाता | 

 

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