कोनोपी से गांधी आउट , सुभाष इन

Publsihed: 21.Jan.2022, 17:53

अजय सेतिया / इंडिया गेट के मेहराब के नीचे, जहां शहीदों की याद में ज्योति प्रज्वलित है – उस के ठीक पूर्व में एक खाली कोनोपी यानि छतरी है | आज़ादी से पहले इसमें इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम  प्रतिमा लगाई गई थी | साठ के दशक में एक मुहिम चली कि ब्रिटिश मेमोरिय्ल्स को हटाया जाए , इस मुहिम के तहत इस छतरी में लगी जार्ज पंचम की प्रतिमा को हटा दिया गया | उस समय एक मुहिम यह भी चली थी कि जार्ज पंचम की जगह पर महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाई जाए | मुहिम का एक पहलू यह भी था कि छतरी को हटा कर वहां गांधी की विशालकाय प्रतिमा लगाई जाए , दूसरी मुहिम यह थी कि इसी छतरी के अंदर गांधी की प्रतिमा स्थापित की जाए | खैर प्रतिमा बनाई गई , वह बहुत बड़ी थी , अगर उसे छतरी की जगह पर ही लगाया जाता , तो छतरी को हटाना ही पड़ता | लेकिन तभी कांग्रेस के ही एक नेता ने मुहिम चला दी कि छतरी को हटा कर वहां सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा लगाई जानी चाहिए , न कि गांधी की | कांग्रेस सरकार बड़ी दुविधा में फंस गई क्योंकि उस समय तक सुभाष चन्द्र बोस को ले कर अनेक तथ्य अखबारों में छपने शुरू हो गए थे , जिन में कुछ तथ्य नेहरू और कांग्रेस के ख़िलाफ़ जा रहे थे | इन नए तरह की ख़बरों में यह भी कहा गया था कि नेहरू ने अंग्रेजों को वायदा किया था कि सुभाष चन्द्र बोस जब भी मिलेंगे , भारत सरकार उन्हें ब्रिटिश सरकार के हवाले करगी | अब यह बात कितनी सच थी, कितनी झूठ, यह कभी साफ़ नहीं हुआ । 
 
कांग्रेस सरकार सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा लगाना नहीं चाहती थी और विवाद शुरू हो गया था | एक सुझाव यह भी आया था कि दोनों की प्रतिमा लगाई जाए , लेकिन कांग्रेस इस के लिए भी तैयार नहीं हुई | नतीजतन गांधी की प्रतिमा लंबा समय तक कबाड़ में पड़ी रही , जिसे नरसिंह राव के शासन काल में संसद भवन परिसर के भीतर संसद के मुख्य गेट नबर एक के सामने लगाया गया | इस के बाद छतरी में ब्रिटिश सम्राट की जगह किसी की प्रतिमा लगाने के बारे में कभी किसी ने नहीं सोचा था | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती से दो दिन पहले 21 जनवरी 2022 को एक ट्विट के जरिए घोषणा की कि इंडिया गेट पर कोनोपी में सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा लगाई जाएगी | इस खबर ने देश के युवाओं में नया जोश भर दिया , है क्योंकि आज़ादी के 70 साल बाद आज़ादी की लड़ाई में सुभाष चन्द्र बोस की भूमिका को ले कर अनेक खुलासे हो चुके है , जिनसे पता चलता है कि सुभाष चन्द्र बोस के बलिदान गांधी से कहीं ज्यादा थे | इंडिया गेट पर सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा लगाए जाने पर सुभाष चन्द्र बोस के भतीजे चन्द्र कुमार बोस ने प्रधानमंत्री का आभार जताते हुए कहा कि सुभाष चन्द्र बोस आज़ादी के असली हीरो हैं | 
 
लेकिन इंडिया गेट पर सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा लगाए जाने की खबर के साथ ही एक नया विवाद भी खड़ा हो गया है | मोदी सरकार ने इंडिया गेट के नीचे प्रज्वलित अमर जवान ज्योति को वहां पास में ही बनाए गए वार मेमोरियल में शिफ्ट करने का एलान भी किया है | इस पर कांग्रेस के नेताओं ने कड़ा विरोध जाहिर किया है | उन का तर्क है कि अमर जवान  ज्योति 1971 के शहीदों की याद में स्थापित की गई थी | राहुल गांधी ने ट्विट किया  -“बहुत दुख की बात है कि हमारे वीर जवानों के लिए जो अमर ज्योति जलती थी, उसे आज बुझा दिया जाएगा | कुछ लोग देशप्रेम व बलिदान नहीं समझ सकते- कोई बात नहीं… हम अपने सैनिकों के लिए अमर जवान ज्योति एक बार फिर जलाएँगे!” लेकिन राहुल गांधी के इस ट्विट से उन के सामान्य ज्ञान पोल खुल गई , क्योंकि अमर जवान ज्योति की लौ बुझ नहीं रही है , बल्कि इसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक  में प्रज्वलित ज्योति में मिलाया जा रहा है , वह भी इस लिए क्योंकि बांग्लादेश युद्ध के बाद प्रज्वल्लित की गई जवान ज्योति के साथ इंडिया गेट पर उस युद्ध के शहीदों के नाम नहीं है , बल्कि 1914 से 1921 के बीच प्रथम विश्व युद्ध और एंग्लो अफगान युद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़ने वाले शहीदों के नाम हैं | शहीदों की लिस्ट में भारतीयों के अलावा  कुछ अंग्रेजों के नाम भी शामिल हैं , 1971 के शहीदों के नहीं | जबकि 1971 और इसके पहले और बाद के युद्धों के सभी भारतीय शहीदों के नाम राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में अंकित किए गए हैं , इसलिए अमर  जवान ज्योति का वहां शिफ्ट किया जाना ही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है |

 

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