अजय सेतिया / आरएसएस ने जब “ संघ को जानो” का तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा तो अपनी दो आशंकाएं थी | पहली आशंका थी कि आख़िरी दिन वामपंथी टाईप पत्रकार सवालों की ऐसी झड़ी लगा देंगे कि मोहन भागवत जवाब नहीं दे पाएंगे | दूसरी आशंका थी कि सवाल क्योंकि लिखित में पहले दिए जाने थे, इस लिए टेढ़े सवाल पहले ही काट दिए जाएंगे | आशंका के मुताबिक़ ही कोई ऐसा सवाल नहीं था , जो सर संघचालक मोहन भागवत से पूछा नहीं गया | पर कोई ऐसा जवाब नहीं था, जो मोहन भागवत ने दो-टूक नहीं दिया | अपनी पहली आशंका सही साबित हुई और दूसरी गलत | सभी टेढ़े मेढ़े सवालों की झड़ी लगी, पर संघ अधिकारियों ने किसी सवाल में कांट-छांट नहीं की |
अब सवालों की बानगी देखिए- (1) गुरूजी की “बंच आफ थाट” पर क्या कहना है, जिस में मुसलमानों को दुश्मन बताया गया है ? (2) सर संघ चालक का चुनाव क्यों नहीं होता ? (3) संघ किसी क़ानून के तहत रजिस्टर्ड क्यों नहीं है ? (4) संघ को पैसा कहाँ से आता है और उस का हिसाब किताब क्या है ? (5) जब संघ का भाजपा से कोई सीधा नाता नहीं , तो संगठन मंत्री संघ से क्यों भेजे जाते हैं ? (6) क्या संघ का प्रभाव भाजपा के निर्णयों को प्रभावित करता है ? (7) राम मंदिर पर संघ को क्या कहना है ? (8) कामन सिविल कोड पर क्या कहना है ? (9) कश्मीर, 370 और 35 ए पर संघ का क्या विचार है ? (10) जनसंख्या नियन्त्रण पर संघ की क्या राय है ? (11) हिन्दू त्यौहारों से होने वाले वायु प्रदूषण पर संघ की क्या राय है ? (12) धर्म परिवर्तन और गौरक्षा पर संघ की क्या राय है ? (13) समलैंगिकता पर संघ के क्या विचार हैं ? (14) जातिवाद , अंतरजातीय विवाह और आरक्षण पर संघ के क्या विचार हैं ? (15) एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले और सरकार के क़ानून संशोधन पर संघ की क्या राय है ? (16) संघ में क्या सब जातियों को प्रतिनिधित्व मिलता है या ब्राह्मणवाद हावी है ? (17) संघ में “सूचना के बाद सोचना बंद” जैसी तानाशाही क्यों है ? (18) चुनाव में नोटा पर संघ की क्या राय है ? अब इन से ज्यादा टेढ़े सवाल और क्या हो सकते थे |
मोहन भागवत ने इन सभी सवालों के बेबाकी से जवाब तो दिए ही | संघ को पुरातनपन्थी और रुढीवादी कहने वालों को संघ का उदारवादी और विकासशील चेहरा उजागर कर हैरत में डाल दिया | टेढा सवाल यह था कि रामजन्म भूमि पर अब संघ की राय क्या हा ? गलियारों में चर्चा रही है कि मोदी ने इस पर कुछ नहीं किया | इस लिए संघ नाराज है | मोहन भागवत ने राम जन्मभूमि मंदिर जल्द बनवाने की मांग तो उठाई , पर दूसरे पक्ष की सहमती को सौहार्द के लिए जरूरी भी बताया | यानि संघ अब टकराव नहीं चाहता | गुरूजी के भाषणों का संकलन “बंच आफ थाट” अब तक संघ की आलोचना का सब से बड़ा आधार रहा है | इस पुस्तिका को संघ विरोधियों ने बाईबल की तरह पेश किया | सवाल किए जाते रहे कि क्या संघ ने इस से किनारा कर लिया है | पहली बार सरसंघ चालक ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि संघ ने गुरूजी के सभी विवादास्पद भाषणों को खारिज कर दिया है | उन्होंने मुसलमानों को भी हिन्दू संस्कृति का हिस्सा माना और उन्हें हिन्दू के बजाए भारतीय शब्द पर कोई आपत्ति भी नहीं | अपन मानते हैं कि मोहन भागवत संघ का सर्व स्वीकार्य नया प्रोग्रेसिव रूप लेकर सामने आए हैं | तीनों दिन के प्रोग्राम बंदेमातरम से शुरू हुए और जन गन मन पर सम्पन्न हुए | उन्होंने भारतीय संविधान पर निष्ठा जताई | इसलिए सरसंघ चालक ने चुनौती देकर सब को बुलाने और सार्वजनिक बहस की चुनौती दी |
भले ही किसी भी गैर भाजपाई दल ने उन की चुनौती स्वीकार नहीं की और यह संघ समर्थकों और कुछ कुछ न्यूट्रल लोगों का मंच बन कर रह गया | पर तीनों दिन मीडिया का आकर्षण बना रहा | मोहन भागवत ने संघ के बारे में फ़ैली सभी आशंकाओं को दूर किया | जैसे सरसंघ चालक भले ही नियुक्त होता है | पर संघ में कमांडिंग अधिकारी सरसंघ कार्यवाह होता है, जिस का हर तीन साल बाद चुनाव होता है | उन्होंने माना कि संघ जब बना रजिस्टर्ड नहीं हुआ , पर संघ व्यक्तिगत लोगों का संगठन है, जो क़ानून सम्मत है | संघ चंदा नहीं लेता, उसने सरकार को अपना संविधान दिया हुआ है और खातों का क़ानून सम्मत आडिट होता है | संघ का भाजपा से रिश्ता नहीं तो संगठन मंत्री संघ से क्यों जाते हैं, यह टेढा सवाल था | और सवाल प्रस्तुत करने वाले ने यह भी कहा कि भाजपा के संगठनमंत्री रामलाल जी भी सामने बैठे हुए हैं | हंसी के फव्वारों में मोहन भागवत ने कहा कि किसी अन्य दल ने संगठन मंत्री मांगे नहीं, वे मांगेंगे तो विचार करेंगे | पर उन्होंने साफ़ किया कि संघ भाजपा को बिन माँगी सलाह नहीं देता, इसलिए उस के निर्णय प्रभावित करने का सवाल ही नहीं | कामंन सिविल कोड का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि यह सिर्फ मुसलमान नहीं हिन्दुओं को भी प्रभावित करेगा | कश्मीर के तीन टूकड़े करने को उन्होंने प्रशासनिक मामला बता कर टाल दिया पर 370 और 35 ए के खिलाफ स्पष्ट मत रखा | संघ में “सूचना के बाद सोचना बंद” सब से तीखा सवाल था | जिस पर उन्होंने सफाई दी कि सूचना लम्बे विचार विमर्श के बाद दी जाती है, इस लिए उस के बाद सोचने की जरूरत नहीं होती |
हिन्दू त्यौहांरों पर पटाखों से वायु प्रदूषण पर उन की टिप्पणी रूढीवादी हिन्दुओं को चौंकाने वाली थी | उन ने कहा कि इस पर बात होनी चाहिए, पर सभी समुदाओं के त्यौहारों पर होने वाले वायु प्रदूष्ण पर बात हो | समलैंगिकता पर भी उन्होंने हिन्दुओं के रूढीवादी विचारों से अलग नए विचार रखे | उन्होंने कहा कि इस वर्ग को भी समाज में स्थान मिलना चाहिए | गौरक्षा पर जरुर सरसंघ चालक ने मोदी से अलग राय प्रकट की | जिस पर जम कर तालियाँ बजी | पर उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि हिन्दुओं को गाय पाल कर गाय की रक्षा खुद करनी चाहिए | जातिवाद पर तो सरसंघ चालक ने सभी भ्रांतियां दूर कर दी | भागवत ने अंतरजातीय विवाह का समर्थन किया | उन ने बताया कि महाराष्ट्र के पहले अंतरजातीय विवाह पर सरसंघ चालक ने बधाई भेजी थी | संघ पर से ब्राह्मणवाद की पकड तीखा सवाल और कटाक्ष भी था | उन का ईमानदार जवाब था कि ब्राह्मणवाद की पकड धीरे धीरे ढीली पड रही है, आने वाले दिनों में और बदलाव दिखेंगे | आरक्षण का स्पष्ट शब्दों में समर्थन किया , एससी-एसटी क़ानून का समर्थन करते हुए उस का दुरूपयोग न हो, यह भी साथ कहा | उन ने कहा कि अगर सभी धर्म ईश्वर का मार्ग दिखाते हैं, तो फिर धर्म परिवर्तन की जरूरत ही क्यों है | जनसंख्या नियन्त्रण पर उन का वही जवाब था , जिस की उम्मींद थी –“ जो ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं, पहले उन पर नियन्त्रण हो |” चुनावों में नोटा पर प्रश्नचिंह लगाते हुए उन्होंने महाभारत में यादवों की भूमिका तय करने के लिए बुलाई मीटिंग का हवाला दिया | जिस में श्री कृष्ण ने कहा था कि उपलब्ध में से सर्वश्रेष्ठ को चुनना चाहिए |
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