अमरेन्द्र ही रोक सकते हैं सोनिया की साज़िश

Publsihed: 21.Oct.2021, 11:27

अजय सेतिया / दूसरी बार कांग्रेस छोड़ने वाले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने राजनीति में कई उतार चढाव देखे हैं | पहली बार जब उन्होंने आपरेशन ब्ल्यू स्टार के खिलाफ 1984 में कांग्रेस छोडी थी | तो चौदह साल के बनवास के बाद 1998 में बेआबरू से हो कर कांग्रेस में लौटे थे | पहली बार इंदिरा गांधी के कहने पर राजीव गांधी अपने बाल सखा को राजनीति में लाए थे | दूसरी बार राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी उन्हें 1998 में कांग्रेस में वापस लाई | वह दोनों बार कांग्रेस में तब शामिल हुए , जब कांग्रेस खुद संकट में थी | चलिए अपन आप को शुरू से बताते हैं | राजीव गांधी और अमरेन्द्र सिंह दून स्कूल में पढ़ते थे | दोनों में दोस्ती हुई | दोस्ती इतनी गहरी हुई कि कभी राजीव गांधी पटियाला के महल में छुट्टियां मनाते थे | तो कभी अमरेन्द्र सिंह प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के घर पर छुट्टियां मनाते थे | जहां राजीव गांधी की मां इंदिरा गांधी अपने पति फिरोज गांधी ( घैंडी ) से अनबनी के चलते अपने पिता नेहरू के साथ रहती थीं | स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अमरेन्द्र सिंह सेना में भर्ती होने के लिए दून की रक्षा अकादमी में चले गए | जबकि राजीव गांधी पायलट बनने की ट्रेनिंग लेने लंदन चले गए | 
    
1975 में इमरजेंसी लगा कर इंदिरा गांधी ने देश के लोकतंत्र को चुनौती दी थी | 1977 का चुनाव इंदिरा गांधी के लिए चुनौती बन गया था | खासकर पंजाब में कांग्रेस को उम्मीन्द्वार ढूँढने मुश्किल थे | तब इंदिरा गांधी ने राजीव से कहा कि वह अमरेन्द्र सिंह को पटियाला में गुरचरन सिंह टोहरा के मुकाबले लड़ने के लिए राजी करे | राजीव ने कहा और अमरेन्द्र सिंह मान गए , लेकिन टोहरा से बुरी तरह हारे | हालांकि 1980 के उपचुनाव में कांग्रेस टिकट पर लोकसभा पहुंच गए | पर इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी जैसी ही गलती फिर कर दी | उन्होंने खालिस्तान आन्दोलन के नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले को कुचलने के लिए स्वर्ण मंदिर में सेना भेज दी | आपरेशन ब्ल्यू स्टार में भिंडरावाला तो मारा गया लेकिन स्वर्ण मंदिर पर हमले ने सिख जनमानस को अंदर तक हिला दिया था | अमरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस और लोकसभा दोनों से इस्तीफा दे दिया | वह अकाली दल में शामिल हो गए | जहां टोहरा और बादल के आगे उन की कुछ नहीं चली तो उन्होंने अकाली दल से अलग हो कर 1991 में अलग पंथक पार्टी बनाई | यहाँ से अमरेन्द्र सिंह की राजनीति के बुरे दिन शुरू हुए | अपने खुद के विधानसभा क्षेत्र से उन्हें सिर्फ 856 वोट मिले थे | उधर 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई | सोनिया गांधी 1998 में राजनीति में पर्दापर्ण करती है तो अमरेन्द्र सिंह को बुलाती है | इस तरह 14 साल बाद अमरेन्द्र सिंह की कांग्रेस में वापसी होती है | लेकिन इस बार राहुल गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की गोपनीय साजिश रची | तो उसी सोनिया गांधी ने अमरेन्द्र से “ सौरी “ कह कर खुद ही उनके बाहर जाने के रास्ते खोल दिए | 
 
अब वह दूसरी बार कांग्रेस छोड़ रहे हैं और दूसरी बार ही अपनी पार्टी बना रहे हैं | उन्होंने मंगलवार को ऐलान किया है कि वह नई पार्टी बनाएंगे | साथ ही उन्‍होंने यह भी कहा कि अगर किसान आंदोलन का समाधान उनके हित में हो जाता है तो वह भाजपा के साथ गठबंधन करेंगे | अपन तब से ऐसा ही होने की उम्मींद बनाए हुए थे | जब से अमरेन्द्र सिंह की अमित शाह से मुलाक़ात हुई थी |  जहां तक अपन पंजाब की राजनीति को समझते हैं अमरेन्द्र सिंह इस बार सफल हो सकते हैं | शर्त यह है कि मोदी किसानों के मुद्दे पर अमरेन्द्र सिंह की सलाह मान लें | भाजपा का अकाली दल से गठबंधन टूट चुका है | बादल परिवार की मनोपली के खिलाफ अकाली दल में फूट पड चुकी है | दलित ईसाई को मुख्यमंत्री बनाए जाने के कारण जाट सिख कांग्रेस से खफा है | ईसाईयों की ओर से बड़े पैमाने पर सिखों को ईसाई बनाए जाने की मुहीम से अकाल तख्त भी खफा है | दलित हिन्दुओं के भी बड़े पैमाने पर हो रहे  धर्म परिवर्तन से पंजाब के हिन्दू भी बेहद खफा हैं | जबकि सोनिया गांधी ने ईसाई को मुख्यमंत्री बना कर धर्म परिवर्तन को हवा दी है | सिख और हिन्दू दोनों ही अमरेन्द्र सिंह के पीछे खड़े हो सकते हैं | क्योंकि अमरेन्द्र सिंह ही हैं जो सोनिया गांधी की गहरी साजिश को पंजाब में रोक सकते हैं |

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