प्रेस की आज़ादी बनाम पुलिस की आज़ादी

Publsihed: 20.Oct.2020, 21:12

अजय सेतिया / अप्रेल में यह शुरुआत कांग्रेस ने की थी | जब उसने रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के संस्थापक अर्नब गोस्वामी  के खिलाफ अपने शासन वाले सभी राज्यों में इस लिए ऍफ़आईआर दर्ज करवा दी थी , क्योंकि उन्होंने पालघर में दो साधुओं की हत्या के मामले की सीबीआई जांच के लिए आवाज उठाई थी | अभी भी आशंका यही है कि साधुओं की हत्या ईसाई मिशनरियों के इशारे पर हुई है | महाराष्ट्र में क्योंकि कांग्रेस सरकार में हिस्सेदार है , इसलिए कांग्रेस के इशारे पर उद्धव ठाकरे सरकार ने केन्द्रीय एजेंसी से जांच करवाने से इनकार कर दिया | अगर ऐसा हुआ तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा | फिर सोनिया गांधी तो क्या , कोई भी ईसाई मिशनरियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी जांच और कार्रवाई को नहीं रोक पाएगा |

साधुओं की ह्त्या पर रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के संस्थापक अर्नब गोस्वामी ने सोनिया गांधी से सवाल पूछा कि उन्होंने साधुओं की हत्या पर निंदा का एक शब्द तक क्यों नहीं बोला | उन का सवाल था कि अगर दो ईसाई मिशनरियों की हत्या हुई होती , तो क्या फिर वह चुप रहती | बस फिर क्या था कांग्रेस शासित राज्यों में अर्नब के खिलाफ सैकड़ों एफआईआर दर्ज करा दी गई | इसे क्या सत्ता का दुरूपयोग नहीं कहेंगे , और वह भी मीडिया की आवाज दबाने के लिए , जो लोकतंत्र का चौथा खम्भा है | अर्णब गोस्वामी ने राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया , लेकिन कोर्ट ने उन्हें इतनी भर ही राहत दी कि सभी ऍफ़आईआर मुम्बई ट्रांसफर हो गई और उन्हें आदेश दिया गया कि वह पुलिस को जांच में सहयोग दें |

बात तो यह ही गलत थी कि सुप्रीमकोर्ट ने एक पत्रकार के सवाल पूछने पर ऍफ़आईआर को खारिज करने के आदेश नहीं दिए , यहीं से प्रेस की स्वतन्त्रता पर हमले की शुरुआत हुई | जो आगे चल कर मुम्बई के पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह ने सोनिया गांधी के प्रति स्वामी भक्ति दिखाते हुए अर्नब गोस्वामी से दिन भर फालतू की इन्टेरोगेशन करवाई | तब से अब तक किसी न किसी बहाने रिपब्लिक चेनल के आधा दर्जन पत्रकारों का पुलिस इन्टेरोगेशन हो चुका है | आखिर एक पत्रकार की टिप्पणी और सवाल पूछने पर किस बात की इन्टेरोगेशन | यही सवाल अपन ने उस समय राष्ट्रपति भवन के फोरफ्रंट पर 2002 में पूछा था , जब वह गोधरा दंगों के मुद्दे पर राष्ट्रपति से मुलाक़ात कर के निकली थीं | अपन ने पूछा था कि तीर्थयात्रा से लौट रहे हिन्दू तीर्थयात्रियों को गोधरा में ज़िंदा जलाए जाने की उन्होंने निंदा क्यों नहीं की | तब तक सोनिया गांधी का इस बाबत कोई बयान नहीं आया था , लेकिन उन्होंने कहा –“ मैंने निंदा की है |” शायद सोनिया गांधी के दिमाग में तब यह नहीं आया होगा कि किसी कांग्रेस शासित राज्य में यह सवाल पूछने पर ऍफ़आईआर दर्ज करवाई जा सकती है |

खैर अर्नब के खिलाफ दुसरे राज्यों में ऍफ़आईआर दर्ज करवाने की परम्परा को आगे बढाते हुए जब सुशांत सिंह राजपूत के मामले में बिहार में ऍफ़आईआर दर्ज हुई और मुख्यमंत्री ने सीबीआई को जांच सौंप दी तो कांग्रेस ने इसे मेन्यूल के खिलाफ बताया , लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने उसी ऍफ़आईआर के आधार पर ही सीबीआई को जांच सौंपी | मुम्बई के पुलिस कमिश्नर परम वीर सिंह शायद तब से हीनभावना का शिकार हैं , जब से पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह सांसद बने है | सांसद बनने की लालसा में ही वह प्रेस की स्वतन्त्रता की परवाह किए बिना अर्नब गोस्वामी के खिलाफ व्यक्तिगत दुश्मन जैसा व्यवहार कर रहे हैं , उन्हें लगता है कि ऐसा करने से सोनिया गांधी उन पर मेहरबान हो जाएँगी | उन्हें किसी सुरक्षित सीट से टिकट देकर सांसद बनवा देंगी | इसलिए अब वह टीआरपी के मुद्दे पर अर्नब को नामजद कर रहे हैं , जबकि चैनलों की टीआरपी रेटिंग मानिटर करने वाली एजेंसी “बार्क” ने टीआरपी को मेनुप्लेट करने की एक ऍफ़आईआर किसी अन्य चेनल के खिलाफ दर्ज करवाई थी |

मुम्बई के पुलिस कमिश्नर को लगता है कि यह मामला तो उन के हाथ में है , वह अर्नब गोस्वामी को नामजद कर देंगे | लेकिन सुशांत सिंह राजपूत केस की तरह अब यह टीआरपी वाला मामला भी उन के हाथ से खिसकने लगा है क्योंकि उसी तरकीब को अपनाते हुए टीआरपी में गडबडी की एक शिकायत लखनऊ में दर्ज करवा कर योगी आदित्य नाथ ने यह मामला भी सीबीआई को सौंप दिया है | रिपब्ल‍िक टीवी ने सीबीआई जांच की मांग की थी , परमवीर सिंह या उद्धव सरकार तो ऐसा कभी नहीं होने देते | पर योगी सरकार को भी टीआरपी रेटिंग की जांच करवाने का पूरा हक है क्योंकि टीआरपी के आधार पर ही तो राज्य सरकारें भी विज्ञापन देती हैं |

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