अजय सेतिया / प्रियंका गांधी का जुलाई 2019 का बयान किस नियत से फिर से उछाला गया है , और किस ने उछाला है | जब यह खबर पहले सोशल मीडिया और फिर औपचारिक मीडिया पर आई कि प्रियंका गांधी भी अपने भाई की तरह यही चाहती है कि अब कांग्रेस का नेतृत्व नेहरु परिवार से इतर कोई सम्भाले , तो सवाल पैदा हुआ कि जब सोनिया , राहुल और प्रियंका तीनों यह चाहते हैं , तो फिर रोका किस ने है | सवाल यह भी खड़ा होता है कि राहुल गांधी ने जून 2019 में जब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था तो उन्होंने इस्तीफा देने से पहले खुद ही किसी को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त क्यों नहीं किया | जैसे राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को उपाध्यक्ष बना कर पार्टी सन्गठन का काम सौंपा था , वैसे ही राहुल गांधी किसी मनमोहन सिंह जैसे को ही अध्यक्ष बना देते , कुछ और नहीं तो कम से कम यह छवि तो बनती कि परिवार से बाहर अध्यक्ष बना |
वैसे भी कांग्रेस तो नियुक्तियों वाली पार्टी है , सन्गठन में चुनाव से तो कांग्रेस का दूर तक तक कुछ लेना देना नहीं है | यह सिलसिला गांधी के समय से चला आ रहा है , जब सुभाष चन्द्र बोस को चुने जाने के बाद इस्तीफा करवा दिया गया था , और चुने जाने के बाद भी सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया गया था | गुरूवार को लोकसभा टीवी पर इसी मुद्दे की बहस में हिस्सा लेने का मौक़ा मिला , तो अपने साथ शहजाद पूनावाला और संजय झा थे , दोनों कांग्रेस के बेबाक प्रवक्ता और उभरते हुए सितारे रहे हैं , लेकिन अब दोनों कांग्रेस से बाहर हैं |
शहजाद पूनावाला यह मानने को तैयार नहीं कि वास्तव में नेहरु परिवार की तिकड़ी अध्यक्ष पद छोड़ना चाहती है | उन का कहना है कि जो कांग्रेसी मोदी पर लोकतंत्र के खात्में का आरोप लगा रहे हैं , खुद उन की कांग्रेस में कोई लोकतंत्र नहीं है, त्रिमूर्ती त्याग का सिर्फ नाटक करती है | वह खुल कर कहते हैं कि असल में प्रियंका का यह बयान इस आशंका के कारण उछाला गया है कि कहीं राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष ना बना दिए जाएं , यानी वे भाई बहन में टकराव देखते हैं | हो सकता है यह बात सही हो , क्योंकि राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले रणदीप सुरजेवाला ने इस खबर का तुरंत खंडन किया कि प्रियंका गांधी परिवार से इत्तर पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने के पक्ष में हैं | उन्होंने कहा कि प्रियंका गांधी का यह 2019 का बयान शरारतन छपवाया गया है | अगर यह बयान शरारतन छपवाया गया है , और सही नहीं है , तो क्या सही यह है कि त्रिमूर्ति परिवार से बाहर अध्यक्ष नहीं बनाए जाने पर सहमत है |
संजय झा उतने मुहं फट नहीं हैं , जितने शहजाद पूनावाला हैं | फिर भी वह यह तो कबूल करते हैं कि कांग्रेस में अंदरूनी लोकतंत्र नहीं है | वह कहते हैं कि एक साल तक परिवार से इतर किसी नाम पर सहमती क्यों नहीं बनाई जा सकी | यह बात सही है कि अगर राहुल गांधी , प्रियंका गांधी और उन की मां सोनिया गांधी सचमुच कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने को तैयार हैं तो सोनिया गांधी ने कार्यकारी अध्यक्ष का पद कबूल ही क्यों किया | अपन को शहजाद पूनावाला की बात सही लगती है कि परिवार त्याग का नाटक करता है | राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया ने जरुर अध्यक्ष पद ठुकरा कर त्याग किया था , लेकिन उस का असली रूप अपन ने 14 मार्च 1998 में देखा था , जब जब सोनिया समर्थक गैंग ने चुने हुए कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को 24 अकबर रोड के बाथरूम में बंद कर के दस जनपथ से सोनिया गांधी को बुला कर अध्यक्ष पद पर बिठा दिया था | कांग्रेस की ठाकुर ब्राह्मण लाबी ने यह साजिश सोनिया गांधी की सहमती से रची थी |
नेहरु परिवार के वारिसों इंदिरा गांधी, राजीव गांधी , सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने पार्टी में गुटबाजी को इतना बढावा दिया कि आज एक दुसरे से नफरत करने वाले गुलामनबी आज़ाद , अहमद पटेल, अशोक गहलोत , कमल नाथ , दिग्विजय सिंह , वीरभद्र सिंह , पृथ्वीराज चौहान , हरीश रावत किसी नाम पर सहमत ही नहीं होते , वे सिर्फ सोनिया , राहुल और प्रियंका के नाम पर ही सहमत होते हैं | यह बात तीनों को पता है , इसी लिए तो एक साल से सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष हैं |
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