राजस्थान के नतीजों ने एनडीए में मचा दी खलबली 

Publsihed: 01.Feb.2018, 21:54

अजय सेतिया / अपन को पहले से अंदेशा था कि पहली फरवरी का दिन महत्वपूर्ण होगा | पर वह बजट के कारण नहीं होगा | बजट के किसानो की दशा सुधारने वाले क़दमों के कारण नहीं | न ही बजट के स्वास्थ्य और शिक्षा के दो सेक्टरों में बदलाव के कारण | अलबत्ता राजस्थान के तीन उपचुनावों के नतीजों के कारण | राजस्थान की दो लोकसभा सीटों पर उप चुनाव हुए थे | दोनों के नतीजे पहली फरवरी को आने थे | कोई हफ्ता भर पहले अपनी अशोक गहलोत से बात हुई थी | वह तीनों सीटें जीतने का दावा कर रहे थे | राजस्थान से ही कांग्रेस के सासंद नरेंद्र बुडानिया से भी बात हुई तो उन ने भी तीनों सीटें जीतने का दावा किया था | अपने पास राजस्थान से ग्राउंड रिपोर्ट भी मिलती जुलती थी | वसुंधरा राजे की शैली से तो भाजपा के वर्कर चार साल से खफा थे ही | साढे तीन साल से केंद्र की मोदी सरकार ने भी उन्हें निराश किया था | भाजपा के वर्कर मन से काम नहीं कर रहे थे | जिन जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं | वहां वहां के भाजपा वर्कर दुगने खफा हैं | अरुण जेटली जब लोकसभा में बजट भाषण पढ़ रहे थे | तब राजस्थान के नतीजे आने शुरू हो गए थे | भाजपा दोनों लोकसभा सीटें हार गईं | मांडलगढ़ की विधानसभा सीट भी हार गई | इसे सिर्फ वसुंधरा राजे के खिलाफ आक्रोश मानना सही आकलन नहीं होगा | अजमेर में भाजपा को परिवारवाद से ऊपर उठ कर टिकट देना चाहिए था | शायद वह सीट बच जाती | यह जाट सीट नहीं है, सांवर लाल जाट की बात और थी | उन के बेटे को टिकट नहीं देना चाहिए था | कांग्रेस ने अजमेर के मिजाज को भाजपा से बेहतर समझा | भाजपा सहानुभूति की लहर पर सवार हो कर सीट बचाना चाहती थी | कांग्रेस ने 40 साल बाद ब्राह्मण को टिकट दे कर राजनीतिक चाल चली | अपनी इस राजनीतिक चाल से भाजपा के 40 हजार ब्राह्मण वोटों को झपट लिया | सचिन पायलट की वजह से गुजर कांग्रेस की तरफ चले गए | राजपूत वैसे भी जाट को वोट नहीं देते, ऊपर से पद्मावत ने राजपूतों को नाराज किया | अलवर में भाजपा का उम्मीदवार बढ़िया था |  जसवंत सिंह यादव से बढ़िया उम्मीन्द्वार नहीं हो सकता था | पर पिछली बार का सांसद भाजपा की जड़ों में मट्ठा डाल गया था | उस का भाजपा से कुछ लेना देना नहीं था | न ही वह राजस्थान के थे , वह रोहतक में रहते थे | बाबा रामदेव ने टिकट दिला दिया था | वह तीन साल तक एक बार भी भाजपा कार्यकर्ताओं और जनता से नहीं मिले | ऊपर से मोदी और वसुंधरा सरकार के खिलाफ जो गुस्सा है, सो है | मांडलगढ़ की सीट भी भाजपा बुरी तरह हारी | कांग्रेस का बागी उम्मीन्द्वार खडा होने के बावजूद 13 हजार वोट से हार गई | कांग्रेस के बागी को 40 हजार वोट मिले | अगर वह खडा नहीं होता | तो भाजपा 50-55 हजार वोट से विधानसभा सीट हारती | भाजपा अब तक लोकसभा की चार सीटें उप चुनावों में हार चुकी हैं | मध्यप्रदेश की झाबुआ और पजाब की गुरदासपुर सीटें पहले ही हार चुकी थी | अब राजस्थान की अजमेर और अलवर भी हार गई | लोकसभा के आम चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हुआ था | राजस्थान की सभी 25 सीटें भाजपा को मिली थी | और जो मोदी ने सोचा नहीं था, वह शाम होते होते हो गया | जब न्यूज चेनेल अरुण जेटली के बजट की तारीफ़ के पुल बाँध रहे थे | तभी चन्द्र बाबू नायडू ने एनडीए में खलबली मचा दी | वह वक्त का इंतजार कर रहे थे | उन्हें भनक थी कि अमित शाह चुपके चुपके जगन मोहन रेड्डी से बात कर रहे हैं | जो आंध्र प्रदेश में उन के मुख्य प्रतिद्वीन्दी हैं | उन ने रामविलास पासवान, उद्धव ठाकरे और प्रकाश बादल से फोन पर बात की | वह एनडीए की मीटिंग बुलाने वाले हैं | उद्धव ठाकरे तो 2019 का चुनाव एनडीए के साथ न लड़ने का एलान भी कर चुके हैं | वैसे तो समझने वाले एक महीना पहले ही समझ चुके थे कि एनडीए में बवाल होने वाला है | गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद ही चंद्रबाबू ने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे | उन ने कांग्रेस के साथ मिल कर राज्यसभा में तीन तलाक बिल रोक दिया था | मोदी में राजनीतिक समझ होती या वह अपने सहयोगियों से सलाह लेते | तो चंद्रबाबू को दिल्ली बुला कर समझाते-बुझाते | वाजपेयी के जमाने में सहयोगियों से मेल मुलाकातें होती रहती थीं | जैसे अपन को याद है वेंकैया नायडू के जिम्मे चंद्रबाबू थे | प्रमोद महाजन के जिम्मे बाल ठाकरे थे | रविशंकर के जिम्मे जय ललिता थी | अरुण जेटली और राजनाथ सिंह के जिम्मे प्रकाश सिंह बादल थे | पर मोदी ने तो साढे तीन साल में एनडीए की एक मीटिंग भी नहीं बुलाई | न किसी भाजपा नेता को सम्पर्क बनाए रखने का जिम्मा दिया | तीन तलाक पर झटका खाने के बाद भी मोदी ने कुछ नहीं किया | चंद्रबाबू ने अभी तीन दिन पहले मोदी पर ताना मारा था | जब उन ने कहा था कि साढे तीन साल में एनडीए की एक भी मीटिंग नहीं हुई | मीटिंग तो दूर की बात , कभी बुला कर एक कप चाय भी नहीं पिलाया | वैसे एनडीए के चेयरमैन अभी भी अटल बिहारी वाजपेयी हैं | उन के संसद भवन में अलाट कमरे में अब लाल कृष्ण आडवानी बैठते हैं | जो एनडीए के संयोजक हैं | वह भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में हैं, जिसे भाजपा के नेता मूकदर्शक मंडल कहते हैं | सब को मूक बना दिए जाने के कारण एनडीए वैसे ही बिखरने के कगार पर है , जैसे 2004 के चुनाव से पहले बिखरा था |

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