राज्यपाल के विवेकाधिकार की भी इतिश्री

Publsihed: 19.May.2018, 08:59

अजय सेतिया / यह तो तय था कि सुप्रीमकोर्ट राज्यपाल की ओर से येद्दुरप्पा को दिए गए न्योते के निर्णय को रद्द नहीं करेगी । जिस दिन ऐसा होने लगेगा ,उस दिन सुप्रीमकोर्ट संविधान से भी ऊपर हो जाएगी । राज्यपाल के निर्णयो की समीक्षा हो सकती है , उसे गलत या ठीक ठहराया जा सकता है , उस में बदलाव किया जा सकता है, लेकिन रद्द नहीं किया जा सकता । अत: सुप्रीमकोर्ट ने ब्रुहस्पतिवार को येद्दुरप्पा का शपथग्रहण होने दिया , लेकिन बहुमत साबित करने की समय सीमा 15 दिन से घटा कर आने वाले 30 घंटे कर दी । शपथग्रहण को 24 घंटे तो बीत ही चुके थे । 
राज्यपाल ने अपने विवेक से येद्दरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दिया था । उन के विवेक पर सुप्रीमकोर्ट को इस लिए शक पैदा हुआ क्योंकि सामने वाली पार्टी यानी कांग्रेस और जनता दल (एस) के पास तो आंकडो में बहुमत दिख रहा था , जबकि येद्दुरप्पा के कागज कोरे थे । उन्होने कागज पर भी राज्यपाल को लिख कर यह नहीं बताया था कि वह बाकी के सात विधायक कहाँ  से लाएंगे । त्रिशंकु नतीजों पर सुप्रीमकोर्ट ने पहले जरूर तीन वरीयताओं का क्रम तय किया था, जिस में चुनाव बाद के गठबंधन को तीसरे क्रम पर रखा गया था । पहले नम्बर पर चुनाव पूर्व गठबंधन और दूसरे नम्बर पर सबसे बड़ा दल था । लेकिन जब चुनाव बाद के गठबंधन से स्पष्ट बहुमत बन जाए तो अलग परिस्थिति पैदा होती है, जैसे कि गोवा, मेघालय, मणिपुर और कर्नाटक में पैदा हुई । पहले तीनो राज्यो के राज्यपालो ने चुनाव बाद के गठबंधन से स्पष्ट बहुमत के आंकडे देख कर न्योता दिया था । लेकिन कर्नाटक के राज्यपाल ने चुनाव बाद के गथबंधन के आंकडो की उपेक्षा कर दी थी ।
अब इस मुद्दे पर सुप्रीमकोर्ट ने अगस्त में सुनवाई करने का फैसला किया है । अब भविष्य में यह भी तय हो जाएगा कि जब एक तरफ गठबंधन का बहुमत स्पष्ट हो, तो सब से बड़े दल को सरकार बनाने का मौका नहीं मिलेगा । ऐसी उम्मींद करनी चाहिए कि अगस्त में सुनवाई के बाद त्रिशंकु विधांनसभा आने पर राज्यपाल के लिए " गाईड लाईन"  तैयार हो जाएगी । जब त्रिशंकु विधानसभा आएगी तो राज्यपाल गोवा, मेघालय, मणिपुर और कर्नाटक की तरह अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकेगा । गाईडलाईन में यह भी जुड जाएगा कि दो दलो का भले ही चुनावो के बाद गठबंधन हुआ हो, लेकिन अगर उन के विधायको की संख्या बहुमत बन जाता हो, तो सब से बडे दल को न्योते का अधिकार नहीं होगा । विवेकाधिकार के गलत इस्तेमाल के कारण राज्यपालो को संविधान में मिला यह अधिकार छिन जाएगा ।  दुरुपयोग का इतिहास देखते हुए राज्यपाल का विवेक सीमित करना गलत नहीं होगा, विवेक लोकतंत्र के दायरे में ही होना चाहिए । 
अगर शनिवार को येद्दुरप्पा सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए तो यह मामला भी राज्यपाल के विवेकाधिकार के दुरुपयोग वाले पुराने मामलो में शामिल हो जाएगा । वैसे सुप्रीमकोर्ट से भाजपा को एक राहत मिली है कि विश्वासमत से पहले स्पीकर के चुनाव की अग्नि परिक्षा से नहीं गुजरना पडेगा । सुप्रीमकोर्ट ने प्रोटेम स्पीकर को ही विश्वासमत करवाने की जिम्मेदारी सौंपी है । यानी स्पीकर का चुनाव पहले नहीं होगा । भाजपा विधायक के जी बोपय्या प्रोटेम स्पीकर बनाए गए हैं , जिस पर एतराज करते हुए कांग्रेस सुप्रीमकोर्ट चली गई । विधान के अनुसार सीनियर विधायको का पैनल बनता है । उस में से सरकार एक को चुनती है और राज्यपाल को भेज देती है । राज्यपाल उसे नियुक्त करता है और शपथ दिलाता है । तीन सदस्यों का प्रोटेम पैनल भी साथ बनता है । लोकसभा में वरिष्ठतम सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाने की परंपरा है, लेकिन यह कानून में नहीं लिखा है । विधानसभाओ में कई जगह इस परम्परा का पालन नहीं होता । जैसे झारखण्ड में कई सीनियर को दरकिनार कर कांग्रेस ने 2005 में नए विधायक बालमुचू को प्रोटेम स्पीकर बना दिया था । 2008 में  के जी बोपय्या ही कर्नाटक के प्रोटेम स्पीकर थे । 2012 में उत्त्राखंड में कांग्रेस ने जूनियर शैलेंद्र मोहन सिंघल को प्रोटेम स्पीकर बनाया, जबकि भाजपा के हरबंस कपूर सीनीयर मोस्ट थे । इस लिए अब कांग्रेस की इस आलोचना का कोई मतलब नहीं है कि सिनियर की अनदेखी कर जुनियर को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया है । 
वैसे प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति भी राज्यपाल करता है, पर वह अपने विवेक से नहीं , अलबता सरकार की सिफारिश पर ही करता है । वैसे राज्यपालो की ओर से विवेकाधिकार दुरुपयोगो की लम्बी फैहरिशत है, पर विवेकाधिकार के दुरुपयोग किए जाने के कुछ उदाहरण तो हमेशा याद रहते हैं । आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रामलाल ठाकुर ने मनमानी से एनटी रामाराव को बहुमत के बावजूद बर्खास्त कर के अपना भी राजनीतिक कैरियर खत्म कर लिया था । यूपी के गवर्नर रामेश भंडारी ने बहुमत के बावजूद कल्याणसिंह को बर्खास्त कर के और बूटासिंह ने बहुमत के बावजूद  बिहार में नितीश कुमार को शपथ न दिला कर सुप्रीमकोर्ट की फटकार सुनी । इन सभी को अपने पदो से हाथ धोना पडा था । पहली यूपीए सरकार के समय हंसराज भारद्वाज जब कर्नाटक के राज्यपाल थे तो उन्होने भाजपा के यदुरप्पा के साथ और तीसरे मोर्चे की केंद्र सरकार के समय गुजरात के राज्यपाल कृष्णपाल सिंह ने भाजपा के सुरेश महेता की सरकारो को असंवैधानिक ढंग से बर्खास्त किया था । 
 

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