सुशांत राजपूत : कौन जीता, कौन हारा

Publsihed: 19.Aug.2020, 18:54

अजय सेतिया / यह जीत असल में नीतीश कुमार की है , उन्होंने मुम्बई में हुई घटना की पटना में ऍफ़आईआर दर्ज करवा कर महाराष्ट्र सरकार को चुनौती दी थी | बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियों की शिवसेना के साथ पुरानी दुश्मनी है , क्योंकि शिवसेना मुम्बई में गैर मराठियों को बराबर का अधिकार देने का विरोध करती रही है | जब वह सत्ता में नहीं होती तो यह विरोध हिंसा की हद तक होता रहा है | शिवसेना की इस हिंसा का शिकार सब से ज्यादा बिहारी होते रहे हैं , इस लिए शिवसेना का विरोध बिहार के राजनीतिक दलों की मजबूरी रहा है |

अब जब कि शिवसेना सत्ता में है , और वह भी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर के सत्ता में आई है  , तो बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की पटना में ऍफ़आईआर दर्ज करवा कर नीतीश कुमार ने युवा बिहारी वोटरों का दिल जीत लिया था | अब जबकि सुप्रीमकोर्ट ने पटना में दर्ज ऍफ़आईआर को सही ठहराटे हुए केस सीबीआई को सौंप दिया है तो नीतीश कुमार ने बिहारी अस्मिता के नाम पर अपने वोट पक्के कर लिए हैं  | खासकर युवाओं और ठाकुर-राजपूत बिरादरी के वोट अब नीतीश कुमार की मुठ्ठी में आ गए हैं , क्योंकि फ़िल्मी हीरो सुशांत बिहारी होने के कारण बिहार के चहेते तो थे ही , राजपूत होने के कारण राजपूत बिरादरी भी नीतीश कुमार की एहसानमंद हो गई है |

नीतीश कुमार के इस बड़े राजनीतिक दाव से उन की घोर विरोधी लालू यादव की पार्टी को सूझ ही नहीं रहा कि वह इस मामले में क्या रूख अपनाए , क्योंकि बिहार सुप्रीमकोर्ट में केस हार भी जाता , तो भी नीतीश कुमार अपना फर्ज निभा चुके थे | अब सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद लालू यादव का कुनबा चुनावों से पहले ही पहले दौर की राजनीतिक जंग हार चुका है | राष्ट्रीय जनता दल के स्वाभाविक साझेदार कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस खुल्लम खुल्ला मुम्बई पुलिस और उद्धव ठाकरे के साथ खड़े थे |

सीबीआई जांच में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बड़ी मुश्किल में फंस सकते हैं , क्योंकि उन के बेटे आदित्य ठाकरे के बारे में कहा जा रहा है कि वह 9 जून की उस डीनर पार्टी में शामिल थे , जिस में सुशांत राजपूत की सक्रेटरी दिशा सालियान ने कथित तौर पर आत्महत्या की थी और पुलिस ने केस को रफा-दफा कर दिया था | महाराष्ट्र पुलिस की मंशा सुशांत सिंह राजपूत के मामले को भी रफा दफा करने की थी , इसी लिए उस ने ऍफ़आईआर ही दर्ज नहीं की थी | महाराष्ट्र सरकार और पुलिस से यहीं पर गलती हो गई , क्योंकि अगर वह ऍफ़आईआर दर्ज कर लेती तो नीतीश कुमार बिहार में ऍफ़आईआर दर्ज नहीं कर सकते थे | आत्महत्या के लिए उकसाने या हत्या की साजिश में शामिल बताई जा रही रिया चक्रवर्ती की आख़िरी कोशिश बिहार की ऍफ़आईआर को मुम्बई में ट्रांसफर करवाने की थी , इसी लिए वह सुप्रीमकोर्ट गई थी |

दिव्या भारती 1993 , सिल्क स्मिता 1996 ,कुनाल सिंह 2008, जिया खान 2013 ,दिशा गांगुली 2015 , प्रत्युषा बेनर्जी बालिका क्धू 2016 और सुशांत सिंह राजपूत 2020 सभी अपने घर में पंखे से लटकते मिले | लेकिन इन में से ज्यादातर के बारे में कहा गया कि ये आत्महत्याएं नहीं , बल्कि हत्याएं थी | श्री देवी की रहस्यमई मौत पर भी अभी सुगबुगाहट है | सुशांत सिंह राजपूत के मामले में सब से बड़ा एंगल उभर कर सामने आया है , वह यह है कि बालीवुड पर हावी कुछ परिवार किसी बाहरी हीरो या हीरोईन का एक हद से ज्यादा बढना बर्दाश्त नहीं करते , उन्हें रास्ते से हटा देते हैं | और सुशांत सिंह बहुत तेजी से बॉलीवुड सितारों के अग्रिम पंक्ति में खड़े होने के नजदीक थे। |

इन मठाधीशों का ड्रग माफियायों, स्मगलरों और पेशेवर हत्यारों के साथ गठजोड़ रहता है , वे या तो हत्या करवा देते हैं , या ऐसे हालात पैदा करते हैं कि बन्दा खुद ही आत्महत्या कर ले | ऐसे ही हालातों से गुजरी कंगना रानावत को भी श्रेय जाता है कि उस ने सुशील सिंह राजपूत के मामले में आवाज इतनी बुलंद की कि बाद में सीबीआई जांच का आन्दोलन खड़ा हो गया | यह प्रो मोदी मीडिया की भी बड़ी जीत है , जिस ने सीबीआई जांच का आन्दोलन खड़ा कर दिया था | इस के साथ ही यह एंटी-मोदी मीडिया की हार भी है , जो महाराष्ट्र सरकार और मुम्बई पुलिस के साथ खड़ा था | हालांकि यह देखना बाकी है कि सीबीआई कितनी तह तक जाती है , जाती भी है या बीच में दम तोड़ देती है |

 

 

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