अजय सेतिया / केरल की सियासत कुछ नया होने के इंतजार में है | मेट्रो मैन ई श्रीधरन देश की कोई छोटी मोटी हस्ती नहीं | कांग्रेस , कम्युनिस्ट और भाजपा तीनों पार्टियां उन की काबिलियत का फायदा उठा चुकी हैं | कोलकाता में जब मेट्रो बनी थी तो वहां कम्युनिस्ट सरकार थी | कोच्ची में भारत का पहला जहाज एम वी रानी पद्दमिनी बना तो केरल में कांग्रेस सरकार थी | कोंकण रेलवे केंद्र में जनता और कांग्रेस सरकारों के समय बनाई गई | दिल्ली में मेट्रो भाजपा सरकार के समय बनाई और अभी अभी कोच्चि मेट्रो और पलारीवट्टोम रोड ओवरब्रिज केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने सलाहाकार बना कर पूरा करवाया | यानी उन की काबिलियत का लोहा सभी मानते हैं | इसी लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने पद्मश्री से अलंकृत किया था , तो मनमोहन सिंह ने पद्मभूषण से | देश के निर्माण में उन के योगदान को देश कभी नहीं भूल सकता | देश में उन का सम्मान अब्दुल कलाम के बराबर का है , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सही समय पर निगाह पड़ी होती तो 2017 में वह राष्ट्रपति पद के उपयुक्त उम्मींद्वार होते |
अगर ऐसा हो जाता तो देश में एक धारणा बनती कि भाजपा राष्ट्रपति पद को राजनीति से ऊपर उठ कर देखती है , क्योंकि मिजाईल मेन अब्दुल कलाम को भी भाजपा ने राष्ट्रपति बनाया था , लेकिन सोनिया गांधी ने उन की जगह पर प्रतिभा देवी सिंह को राष्ट्रपति बनवाया | खैर मोदी की निगाह उन तक नहीं गई , अब खुद उन की निगाह भाजपा पर गई है और उन्होंने भाजपा ज्वाईन कर केरल का मुख्यमंत्री बनने का सपना संजो लिया है | न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में ई श्रीधरन ने खुद यह महत्वाकांक्षा जाहिर की है | उन्होंने कहा-“ भाजपा को सत्ता में लाने के लक्ष्य के साथ राजनीतिक मैदान में प्रवेश कर रहा हूं, राज्य के हित के लिए काम करुंगा | केरल में भाजपा के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद संभालने के लिए तैयार हूं |” पर ऐसा सपना केरल भाजपा के नेता भी नहीं देख रहे | अपन ने कल जब लिखा था कि कुछ लोग इस बात पर हंस सकते हैं तो कुछ इसे कभी नहीं मानेंगे , लेकिन हर कोई इस बात पर जरुर सोच विचार रहा है कि क्या त्रिपुरा वाली स्थिति केरल में सम्भव है | तो साथ में यह भी लिखा था कि भाजपा ने त्रिपुरा में जितनी जोरदार जीत हासिल की थी , उस की तो कल्पना भाजपा के नेताओं ने भी नहीं की थी |
अब केरल के भाजपा नेता भी वैसी कल्पना नहीं कर रहे , जैसी कल्पना ई श्रीधरन ने की है | अपने कल के लेख पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए केरल के एक बड़े भाजपा नेता ने अपन को व्हाट्सएप पर मेसेज भेज कर कहा _” त्रिपुरा में मुस्लिम और ईसाई वोट बैंक नहीं है , जबकि केरल में यही दो सम्प्रदाय केरल का चुनावी नतीजा तय करते हैं | केरल में भाजपा का सत्ता में आना अत्यंत कठिन काम है |” अपन जानते है कि केरल में भाजपा पाँव जमाने लायक भी नहीं बनी है , 2016 में पहली बार भाजपा का एक विधायक विधानसभा में पहुंचा है | केरल में भाजपा से ज्यादा आरएसएस का काम है और भाजपा की जितनी भी ताकत है, वह संघ के आधार की वजह से ही है | तो संघ से जुड़े एक संस्थान के वरिष्ट अधिकारी ने भी अपने कल के लेख पर अपन को व्हाट्सएप पर भेजी प्रतिक्रिया में कहा है-“ केरल में बहुत मुश्किल है | इस्लामिक कट्टरपंथी वोटर लगभग 35 प्रतिशत हैं और ईसाई मिशनरी भी 30 प्रतिशत | बचे 35 प्रतिशत हिन्दुओं में से आधे से ज्यादा कम्युनिस्ट हैं |”
अपन दोनों तर्कों से सौ फीसदी सहमत हैं , अपन भी केरल की सियासत में कोई करिश्मा होने की कल्पना नहीं कर रहे | ईश्रीधरन देश के प्रति समर्पित इंजीनियर हैं , लेकिन भारत की धार्मिक , जातीय आधार पर बंटी सियासत को नहीं समझते | पर अपन अपनी पहली पंक्ति पर लौटते हैं , क्या केरल की सियासत कुछ नया होने के इंतजार में है | आखिर 2014 तक 66 साल की सियासत में किसी ने कल्पना की थी क्या कि भाजपा अपने बूते पर केंद्र में सत्ता में आ जाएगी | राजनीति के बड़े बड़े धुरंधर भी 2014 में हिन्दू लहर के बावजूद भाजपा को ज्यादा से ज्यादा 200 सीटें बता रहे थे | क्योंकि तब तक किसी ने कल्पना ही नहीं कि थी कि मुस्लिम वोटों के बिना कोई केंद्र में अपने बूते पर सत्ता में आ सकता है | अपन नहीं कहते कि केंद्र जैसा करिश्मा केरल में हो सकता है , लेकिन दुनिया की सियासत का असर केरल में हुआ तो बड़ी बात भी नहीं | यूरोप में मुस्लिम आतंकवाद के खिलाफ ईसाई उन के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है | मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून में पाकिस्तान , बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर सताए हुए ईसाईयों को भी भारत की नागरिकता का प्रावधान किया है | गृहमंत्री अमित शाह ने कल ही बंगाल में कहा है कि कोरोनावायरस का टीकाकरण होने के बाद सारे देश में नागरिकता संशोधन क़ानून लागू किया जाएगा | केरल के कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने एलान किया है केरल में यह क़ानून किसी भी हालत में लागू नहीं होने दिया जाएगा | तो क्या मोदी-शाह ईसाई-हिन्दू गठजोड़ की कोई रणनीति नहीं बना सकते |
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