संघ और भाजपा का कोर वर्कर खफा था युद्धविराम से

Publsihed: 18.Jun.2018, 23:40

अजय सेतिया / अपन ने शनिवार को लिखा था युद्धविराम का फैसला गलत था | आतंकवादियों ने युद्धविराम को माना ही नहीं था | पाकिस्तान ने भी युद्धविराम को नहीं माना | आतंकियों ने हिंसा और हत्या की वारदातें जारी रखीं | एक सम्पादक की हत्या की | तो एक सैनिक का अपहरण कर के हत्या की | दोनों मुसलमान थे | न पाकिस्तान की मुस्लिम सेना के लिए रमजान का कोई मतलब था | न कश्मीर के मुस्लिम आतंकवादियों को | मोदी सरकार ही रोज़ेदार हुई पडी थी | आतंकवादियों के हाथों मरने वाले दोनों मुस्लिमों ने रोजा रखा हुआ था | फिर भी आतंकियों ने उन्हें मारा | न मुसलमान होने का लिहाज किया, न रोज़ेदार होने का | पाक सेना के हमलों में भी चार सैनिक शहीद हुए | कुल मिला कर यह है युद्धविराम की कमाई | उलटे मोदी का वोटर युद्धविराम के फैसले के कारण मोदी से खफा हुआ है | उन ने सोशल मीडिया में युद्धविराम की जम कर आलोचना की | अभिनव ठाकुर नाम के एक मोदी समर्थक ने लिखा -“ मैंने यह सोच कर मोदी को वोट दिया था कि वह आतंकवादियों का सफाया कर देंगे | पर उन्होंने तो आतंकवादियों के साथ युद्धविराम कर दिया |” एक और समर्थक आदित्य गौड़ ने लिखा –“ मोदी सेना पर पत्थर फैंकने वालों की रिहाई नहीं रोक सके | अब युद्धविराम कर के आतंकियों को भी खुला छोड़ रहे हैं |” एक अन्य समर्थक सरिता वर्मा ने लिखा-“ मुस्लिम तुष्टिकरण का विरोध करने वाले आतंकवादियों के तुष्टिकरण पर आ गए | युद्धविराम आतंकवादियों का तुष्टिकरण ही तो है | “ षणमुगम नाम के एक दक्षिण भारतीय भाजपा समर्थक ने तो युद्धविराम पर कटाक्ष करते हुए पेलेटगन की याद भी ताज़ा की | उन ने लिखा – “आतंकवादियों के लिए रमजान तो कुर्बानी का महीना है | वे युद्धविराम से नहीं नहीं सुधरेंगे | वे युद्धविराम के समय लामबंद होंगे और पत्थरबाजों की फ़ौज भी तैयार करेंगे | जो उन के लिए ढाल बन कर खड़े होंगे | मोदी सरकार ने पहले पेलेटगन का इस्तेमाल बंद किया | फिर पत्थरबाजों को रिहा किया | और अब युद्धविराम | ये सब चुनाव में किए गए आतंकियों के सफाए के वायदे के विपरीत हैं |” इस तरह के दर्जनों ट्विट तो अपन ने खुद देखे |

युद्धविराम को जब किसी ने माना ही नहीं था | तो उसे बीच में ही वापस ले लेना चाहिए था | पर मोदी ने महबूबा को दिया वचन निभाया | उन के इस वचन के कारण सेना आतंकियों के सामने लाचार बनी रही | इस का सबूत इतवार को राजनाथ सिंह ने खुद दिया | जब उन ने युद्धविराम खत्म करने का एलान किया | राजनाथ सिंह ने एक साथ सात ट्विट किए थे | पर अपन कुछ का ही जिक्र करते हैं | उन का पहला ट्विट सुबह 11.05 पर आया था-“ भारत सरकार ने 17 मई को फैसला लिया था कि रमजान के महीने में सुरक्षा बल हमलावर आपरेशन नहीं चलाएगे | यह फैसला जम्मू कश्मीर के शान्ति चाहने वाले लोगों के हित में लिया गया था | ताकि वे शान्ति के वातावरण में रमजान मना सकें |” एक और ट्विट –“ फैसले की कश्मीर समेत सारे देश में सराहना की गई | इस से आम नागरिक को राहत मिली |” एक अन्य ट्विट देखिए –“ सरकार सुरक्षा बलों की प्रशंसा करती है कि उन ने फैसले का उस की भावना के अनुरूप पालन किया | और उकसावे के बावजूद सयंम बनाए रखा |” वह आगे लिखते हैं –“ उम्मींद की जाती थी कि इस कदम की सफलता के लिए हर कोई सहयोग करेगा | जहां सुरक्षा बालों ने भड़काने वाली कार्रवाईयों के बावजूद सयंम बनाए रखा | वहीं आतंकवादियों ने आम नागरिकों और सुरक्षा बलों पर हमले जारी रखे | नतीजतन कई मौतें हुई | “ युद्धविराम खत्म करने वाला ट्विट –“ सुरक्षा बालों से कहा गया कि पहले की तरह जरुरी कार्रवाई शुरू करें | ताकि आतंकवादी हिंसा फैलाने और हत्याएं करने में कामयाब न हो सकें |”

राजनाथ सिंह के इन ट्विट से दो तीन बातें साफ़ होती हैं | पहली बात तो यह साफ़ होती है कि सुरक्षा बालों को उकसावे के बावजूद सयंम बरतने को कहा गया था | इसी लिए बीएसऍफ़ के जवानों ने 9 जून को जवाबी कार्रवाई नहीं की थी | जब आतंकवादियों की समर्थक भीड़ ने उन्हें घेर लिया था | देश की जनता ने टीवी चेनलों पर वह वीडियो देखा है | जिस में सैंकड़ों लोग बीएसऍफ़ का वाहन घेर कर पत्थराव कर रहे थे | चारों तरफ से घिर गए सुरक्षा कर्मी बामुश्किल जान बचा कर निकले | सयंम बरतने के इस निर्देश से गांधी की वह बात याद आ गई | जिस में कहा जाता है कि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दें | अपनी सेना को कोई सरकार इस तरह के कायराना निर्देश नहीं दे सकती | पर महबूबा मुफ्ती के दबाव में मोदी सरकार ने दिए | इस लिए राजनाथ सिंह ने सुरक्षा बलों की तारीफ़ की | दूसरी बात यह साबित हुई कि युद्धविराम के फैसले में राजनाथ सिंह शामिल नहीं थे | उन का पहले ही ट्विट में सफाई देने वाला लहजा था | जिस में उन ने कहा कि युद्धविराम सरकार का फैसला था | अब सवाल पैदा होता है कि क्या देश भर में इस फैसले की सराहना हुई थी | जैसा कि राजनाथ सिंह ने दावा किया है | अपन ने शुरू में ही मोदी के वोटरों के ही गुस्से का इजहार किया है | अपन मोदी विरोधियों की बात नहीं करते | जो मोदी के हर फैसले और हर बात का विरोध करते हैं | पहली बार मोदी समर्थकों ने युद्धविराम पर सोशल मीडिया में अपनी भड़ास निकाली | और सुरक्षा बलों ने भी खून का घूंट पी कर युद्धविराम लागू किया। सयंम उन का अपना नहीं था । उन पर लादा हुआ था । जैसे ही वे युद्धविराम की कसम से आज़ाद हुए। उनने फौरन भड़ास निकाली। बांदीपुरा में चार आतंकी मार डाले । यह वही बांदीपुरा है जहाँ पत्थरबाजों ने बीएसएफ को घेरा था ।

पर बात संघ और भाजपा के कोर वोटर की । कश्मीर और रामजन्मभूमि भाजपा वोटरों के भावनात्मक मुद्दे हैं | इन मुद्दों पर भाजपा का वोटर अपने ही नेताओं को माफ़ नहीं करेंगे | अगर देश ने फैसले की सराहना की होती | तो फिर युद्धविराम बढाया क्यों नहीं | महबूबा मुफ्ती चाहती थी युद्धविराम बढाया जाए | मोदी ने उन के मन की बात पर ही तो युद्धविराम किया था | महबूबा मुफ्ती ने गृहमंत्रालय में भी अपने सेल बना रखे हैं | वह गृह मंत्रालय से ही युद्धविराम के पक्ष में मुहिम चलाए हुए थी | पर 9 जून की वारदात ने गृह मंत्रालय के उन अफसरों को कमजोर किया | अपनी खबर है कि संघ पहले दिन से ही आतंकियों से युद्धविराम के खिलाफ था | इसी लिए मोदी ने फैसला राजनाथ सिंह पर छोड़ा | राजनाथ सिंह से कहा गया कि संघ से भी सलाह कर लें | चुनाव नजदीक आ गए हैं , तो मोदी अब संघ की अनदेखी भी नहीं कर सकते | राजनाथ सिंह ने परिवार के सदस्यों को बुला कर फीड बैक लिया | राजनाथ सिंह के घर पर हुई बैठक में संघ के दो बड़े अधिकारी मौजूद थे | सरसंघ कार्यवाह भैय्या जी जोशी और सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल जी | यह संघ की चिंता को दर्शाता है | वरना मझौले कद के अधिकारी भी भेजे जा सकते थे | बैठक में भाजपा के जिम्मेदार नेता भी थे | इस बैठक में स्पष्ट राय थी कि युद्धविराम का फैसला ही गलत था | तो अब इसे बढाने का क्या मतलब | सन्देश साफ़ था , मोदी अपने मन की सुना करें , किसी महबूबा मुफ्ती के मन की नहीं | 

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