“पेड़ न्यूज” का मामला तो नहीं

Publsihed: 18.Aug.2020, 13:16

अजय सेतिया / सवाल पैदा होता है कि अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल में फेसबुक के खिलाफ यह खबर किस ने छपवाई थी , जिस में कहा गया था कि शिकायत के बावजूद फेसबुक ने भारत में साम्प्रदायिक नफरत फैलाने वाली पोस्ट नहीं हटाई | राहुल गांधी और उन के समर्थक मीडिया बंधुओं की ओर से 48 घंटे के अंदर जिस तरह वाल स्ट्रीट जर्नल का प्रचार किया गया , उस से शक पैदा होता है कि यह खबर प्रायोजित थी | इस खबर के प्रायोजित होने का पुख्ता सबूत तो कांग्रेस सांसद शशी थरूर ने दिया , जो आईटी मंत्रालय की संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं , उन्होंने फेसबुक को नोटिस जारी कर दिया | इसी समिति के भाजपाई सदस्य निशिकांत दूबे ने थरूर पर आरोप लगाया कि वह बिना संसदीय समिति में चर्चा किए किसी को नोटिस कैसे दे सकते हैं , वह संसदीय समिति के नहीं , अलबत्ता राहुल गांधी के एजेंडे पर काम कर रहे हैं | इस मुद्दे पर शशी थरूर ने भी निशिकांत दूबे को चुनौती दे दी है , तो तय है कि आईटी की संसदीय समिति राजनीतिक घमासान का केंद्र बनने वाली है |

शिकायत लोकसभा स्पीकर को पहुंच चुकी है और मजेदार बात यह है कि शशी थरूर , निशिकांत दूबे और महुआ मोईत्रा का यह राजनीतिक घमासान ट्विटर पर चल रहा है | नरेंद्र मोदी की ओर से 2014 के चुनाव में फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम आदि सोशल मीडिया इस्तेमाल करने से प्रभावित और भयभीत राहुल गांधी 2019 के चुनाव में मोदी से भी बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की योजना बनाई थी | जिस के लिए राहुल गांधी ने 2017 में ब्रिटेन की कैंब्रिज एनालिटिका कम्पनी का सहारा लिया था , जो फेसबुक के डाटा से प्रचार करती | यह मामला लीक हो गया था , जिस कारण कैंब्रिज एनालिटिका को अपनी इलेक्शन कम्पेन यूनिट ही बंद करनी पड़ी थी | राहुल गांधी फेसबुक का इस्तेमाल करने के लिए सौदा करते हुए रंगे हाथों पकड़े गए थे |

राहुल गांधी का खुद का फेसबुक में अपने नाम से पेज है , जिसे वह दिन में कई बार अपडेट करते हैं | जिस टी.राजा की पोस्ट को आधार बना कर वाल स्ट्रीट जर्नल ने खबर लिखी , उसे पढ़ कर कोई भी समझ सकता है कि भारत के एक शहर हैदराबाद के दो राजनीतिज्ञों टी.राजा और असुद्दुदीन ओवैसी की साम्प्रदायिक नोंक झोंक में वाल स्ट्रीट जर्नल जैसे अमेरिकी बड़े अखबार की कोई दिलचस्पी नहीं हो सकती | यह हैदराबाद स्तर के किसी अखबार की दिलचस्पी का विषय जरुर हो सकता है | स्वाभाविक है कि वाल स्ट्रीट जर्नल में खबर छपवाने की भूमिका दिल्ली में लिखी गई थी , वे कौन लोग हो सकते हैं , यह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है | अब यह जांच का विषय हो सकता है कि क्या वाल स्ट्रीट जर्नल ने यह खबर छापने के लिए किसी तरह का कोई सौदा किया था क्या ? भारत में चुनाव आयोग यह खुलासा कर चुका है कि अखबार किस तरह पेड़ न्यूज छापते हैं |

सोशल मीडिया पर बेहद कमजोर पड रहे और आए दिन हंसी का पात्र बन रहे राहुल गांधी ने सोशल मीडिया के सब से बड़े स्रोत फेसबुक पर हमला बोला है , वाल स्ट्रीट जर्नल हमले का मोहरा बना है | वरना टी. राजा की पोस्ट इतनी बड़ी बात नहीं थी कि उसे आधार बना कर राहुल गांधी भाजपा , आरएसएस और मोदी पर प्रहार कर सकते | राहुल गांधी की बात में उस समय थोड़ा वजन आ जाता है , जब वह वाल स्ट्रीट जर्नल में छपी खबर का हवाला देते हैं | वाल स्ट्रीट जर्नल और फेसबुक दोनों अमेरिकी ग्रुप हैं , उन की आपसी आर्थिक रंजिश भी होगी , जो खबर प्रायोजित करवाने में मददगार रही होगी | तो फेसबुक ने भी उन्हें मुहं तोड़ जवाब देते हुए वाल स्ट्रीट जर्नल और राहुल गांधी के आरोपों को नकारा है |

अपन ने सोमवार सत्रह अगस्त को खुलासा किया था कि टी.राजा देश के एकमात्र हिन्दू नेता हैं जो असादुद्दीन ओवैसी और अकबरुद्दीन ओवैसी को उन्हीं की भाषा में मुहं तोड़ जवाब देते हैं | अब जब वाल स्ट्रीट जर्नल ने उन के राजनीतिक दुश्मन टी. राजा की पोस्टों को आधार बना कर फेसबुक पर प्रायोजित हमला किया है तो सोमवार को ओवैसी ने भी फेसबुक पर हमला करते हुए कहा कि फेसबुक के अलग-अलग देशों के लिए अलग अलग मानक क्यों है , यह किस तरह का निष्पक्ष मंच है |” यानी राहुल गांधी के बाद असादुद्दीन ओवैसी के निशाने पर भी फेसबुक है , दोनों की साम्प्रदायिक राजनीति को क्योंकि फेसबुक जैसे मंचों का इस्तेमाल कर भारत का युवा खुले मन से नकार रहा है , इसलिए खिसियानी बिल्ली खम्भा नोच रही है |

 

 

आपकी प्रतिक्रिया