इंडस्ट्री के लिए है स्क्रेप पालिसी

Publsihed: 18.Mar.2021, 20:47

अजय सेतिया / अपन सडक परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के प्रसंशकों में से हैं | किसी राजनीतिक दल के किसी सांसद से पूछ लीजिए , मोदी के घोर विरोधियों से पूछ लीजिए , गडकरी का नाम आते ही बोलती बंद हो जाती है | वह नए नए आईडिया ले कर आते हैं , देश को ऐसे नेताओं की जरूरत है | वह व्यावहारिक भी हैं , मुहं फट भी , काम नहीं होना होगा , तो मुहं पर कह देंगे | अपन जब ईटीवी में हिन्दी चेनलों के सम्पादक थे , तो वह दो बार इंटरव्यू देने स्टूडियो में आए थे | भाजपा अध्यक्ष के नाते उन्होंने मिलनसार की फचा बनाई | सडक परिवहन मंत्री के नाते उन्होंने अपनी काबलियत का झंडा गाडा , सांसद उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं |

पिछले कई महीनों से खबर आ रही थी कि नितिन गडकरी व्हीकल स्क्रेप नीति लाने वाले हैं | गुरूवार को उन्होंने लोकसभा में पालिसी की घोषणा कर दी , तो उस में करीब करीब वही बातें हैं, जो पहले ही टुकड़ों टुकड़ों में खबरों के रूप में छप चुका था | इस से पहले कि अपन पालिसी की भारतीय संदर्भ में चर्चा करें , पहले स्क्रेप पालिसी का इतिहास देख लेते हैं | पालिसी को अलग अलग विकसित देशों में अलग अलग नाम से पुकारा जाता है , ज्यादातर देशों में स्क्रेपगेट के नाम से है | सब से पहले यह पालिसी रोमानिया में वालंटरी लागू हुई थी , कम्पलसरी नहीं | सन 1999 में रोमानिया की सरकारी कार बनाने वाली दासिया को सरकार ने फ्रेंच कम्पनी रोनाल्ट को बेच दिया था , रोनाल्ट ने कारों की बिक्री बढाने के लिए “राबिया” नाम से स्क्रेप पालिसी शुरू की थी | 2008 में अंतर्राष्ट्रीय मंदी के दौरान यूरोपियन देशों ने आटोमोबाईल इंडस्ट्री को बढावा देने के लिए “राबिया” की तर्ज पर स्क्रेपगेट प्रोग्राम शुरू किया | जनता में विरोध न हो , इस लिए इसे पर्यावरण से जोड़ दिया गया | हालांकि असली मकसद यूरोप और अमेरिका में भी आटोमोबाईल इंडस्ट्री को फायदा पहुंचाना था और भारत में भी वही है , लेकिन लबादा पर्यावरण , फ्यूल एफिशेंसी का औढाया जाता है | इंडस्ट्री के साथ सरकार को भी फायदा होगा क्योंकि सरकार की टेक्स उगाही बढ़ेगी | 

नितिन गडकरी जी ने लोकसभा में कहा यह पालिसी गरीब विरोधी नहीं है और सब को फायदा होगा | लेकिन माफ़ करना इस में गरीबों का कोई फायदा नहीं , गरीब अभी भी भारत में राशन कार्ड पर मिले सब्सिडी के भोजन पर ज़िंदा हैं और लाकडाउन में सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर हैं , कार उन के नसीब में कहाँ | स्क्रेप मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के भी हित में नहीं | क्योंकि 50-60 हजार रुपए महीने कमाने वाला भी मध्यम वर्ग में आता है , जो जिंदगी भर या तो पुरानी कारों को खरीदता बेचता रहता है या पूरी जिंदगी में एक ही कार खरीद पाता है | अगर उस ने 40 साल में कार खरीद भी ली तो 20 साल बाद जब वह रिटायर होगा तो आप उसकी कार स्क्रेप कह देंगे और वह सडक पर आ जाएगा क्योंकि दूसरी कार खरीदने की उस की हिम्मत नहीं होगी | इस लिए आप इसे वालंटरी विह्क्ल फ्लीट मोडरनाईजेशन प्रोग्राम ( वीवीएमपी ) मत कहिए ,इसे कम्पलसरी विह्क्ल फ्लीट मोडरनाईजेशन प्रोग्राम ( सीवीएमपी ) कहिए | सच यह है कि भारत जैसे गरीब और विकासशील देश के लिए फिलहाल आने वाले 20 साल तक इस की जरूरत नहीं , यह यूरोपियन देशों और अमेरिका की नकल है |

गडकरी जी ने लम्बे चौड़े फायदे गिनाए हैं , उन में से सडकों के रखरखाव, दुर्घटनाओं की रोकथाम, पेट्रोल-डीजल की खपत घटाना , पर्यावरण जैसे ज्यादातर तर्कों से अपन सहमत भी हैं , लेकिन यह पालिसी है कार इंडस्ट्री के फायदे के लिए | कुछ दिन पहले जब एनजीटी ने एनसीआर में निजी पेट्रोल कारों की मियाद 15 साल और डीजल कारों की मियाद 10 साल की थी , मकसद तब भी इंडस्ट्री को फायदा पहुंचाना था | वह एनजीटी के अफसरान की इंडस्ट्री से मिलीभगत के रहते हुआ था , जबकि 70 फीसदी सिंगल हेंडीड निजी कारों का 15 साल में कुछ नही बिगड़ता | गडकरी जी ने कृपा कर के उसे 20 साल करवाया , लेकिन इसे साल से जोड़ने की बजाए किलोमीटर से जोड़ा जाना चाहिए | माना कि सरकार का काम इंडस्ट्री को बढावा देने की पालिसी बनाना है , लेकिन सरकार का काम मध्यम वर्ग के हितों की रक्षा करना भी है | अब उन से उम्मींद यह की जाती है कि वह नई स्क्रेप पालिसी को वास्तव में  वीवीएमपी बनाएं , उस में फेरबदल कर के पेट्रोल व्हीकल सालों से नहीं , किलोमीटर से जोड़ें | निजी इस्तेमाल वाली पेट्रोल गाडी को बीस साल में नहीं , ढाई लाख किलोमीटर चलने पर स्क्रेप घोषित किया जाए , ताकि मध्यम वर्ग बुढापे में भी कार का इस्तेमाल कर सके

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