सुरक्षित सीट के बावजूद यादव को पसीना

Publsihed: 23.Feb.2022, 07:03

अजय सेतिया यूपी की 113 सीटों पर चुनाव हो चुका , जिस में भाजपा को 40 से 50 सीटों के नुक्सान का आकलन बन रहा है | तीसरा दौर भी भाजपा के लिए आसान नहीं | तीसरे दौर की 59 सीटें तीन क्षेत्रों में बिखरी हैं | पश्चिमी यूपी की 19  सीटें , अवध रीजन की 27 सीटें और बुंदेलखंड की 13 की सीटें | इन तीनों क्षेत्रों में ओबीसी वोटर सब से ज्यादा मायने रखते हैं , लेकिन ओबीसी में भी यादव ज्यादा हैं | अगर पहले दो दौर के क्षेत्र को जाट लैंड कहा जाता है, तो इस तीसरे दौर के क्षेत्र को यादव लैंड कहा जाता है | पहले दो दौर की 113 सीटों पर जाट और मुस्लिम मायने रखते हैं | तो तीसरे दौर की 59 सीटों पर ओबीसी और दलित मायने रखते हैं | दलितों की सभी 59 सीटों पर मौजूदगी है, लेकिन 32 सीटों पर मायने रखते हैं | यादवों की 55 सीटों पर मौजूदगी है, लेकिन 24 सीटों पर ज्यादा मायने रखते हैं | ब्राह्मण 13 सीटों पर, मुस्लिम 11 सीटों पर , ठाकुर भी सात सीटों पर मायने रखते हैं , लेकिन पिछली बार भाजपा ने सारे जातीय समीकरण तोड़ कर 59 में से 49 सीटें जीत ली थीं | जबकि यादवों के प्रभाव वाली 24 सीटों में से सपा सिर्फ  आठ सीटें जीत पाई थी , दलित प्रभाव वाली 32 सीटों के बावजूद बसपा सिर्फ एक सीट जीती थी | इस की बड़ी वजह यह थी कि गैर यादव ओबीसी , ब्राह्मण , ठाकुर और दलित भाजपा के साथ थे | इस बार भी गैर यादव ओबीसी , ब्राह्मण , ठाकुर और दलित भाजपा के साथ हैं | लेकिन भाजपा की 2017 वाली हवा नहीं बन पा रही |

मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट इस समय सब से ज्यादा चर्चा में है | क्योंकि सपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीन्द्वार अखिलेश यादव वहीं से चुनाव लड रहे हैं | भाजपा ने अखिलेश यादव को हराने के लिए पूरा जोर लगा दिया है | अमित शाह और योगी आदित्य नाथ ने अपने उम्मीन्द्वार केन्द्रीय मंत्री एस.पी.सिंह बघेल के लिए करहल जा कर वोट मांगे | करहल में 38 प्रतिशत यादव वोटर हैं , इस सीट पर जनता ने हमेशा ही लीक से हटकर वोट किया है | देश में जब कांग्रेस पार्टी की लहर थी, तो यहां प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, भारतीय क्रांति दल और जनता पार्टी का सिक्का चलता रहा | करहल में कांग्रेस सिर्फ एक बार 1980 में चुनाव जीती और यही हाल बीजेपी का रहा है | बीजेपी भी सिर्फ एक बार साल 2002 में यहां से चुनाव जीती और जिस सोबरन सिंह यादव ने यहां से बीजेपी का खाता खोला था , वह भी कुछ महीने बाद सपा में शामिल हो गए | सोबरन सिंह ही चार बार से सपा के विधायक हैं | उन्होंने ही अब यह सीट अखिलेश यादव के लिए छोडी है | प्रदेश में राज बसपा का हो , सपा का हो या भाजपा का , यंहा से जीतता यादव ही है |

अखिलेश यादव के लिए इस से सुरक्षित सीट हो ही नहीं सकती थी | भारतीय जनता पार्टी ने एस पी सिंह बघेल को उम्मीन्द्वार बनाया हैं , एक लाख 41 हजार यादव वोटरों के मुकाबले बघेल वोटर सिर्फ 18 हजार हैं | पिछली बार 35 हजार शाक्य जाति के वोटरों वाली रमा शाक्य भाजपा टिकट पर सोबरन सिंह यादव से 38 हजार वोटों से हारी थीं | उसे सिर्फ 65 हजार 816 वोट मिले , जबकि सपा के यादव उम्मीन्द्वार को 1 लाख 4 हजार 221 वोट मिले | भाजपा अगर कोई कद्दावर यादव ढूंढ कर लाती तो मुकाबला भी मानते | लेकिन भाजपा इस के बावजूद करहल में अखिलेश यादव को चक्रव्यूह में कह रही है | गृह मंत्री अमित शाह से लेकर मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य यहां रैलियाँ कर रहे हैं | 18 फरवरी को योगी और मौर्य दोनों ही करहल में थे , इस से पहले योगी 14 फरवरी को बगल की किशनी सीट पर जनसभा को संबोधित  किया था | इस से निश्चित ही सपा में बेचैनी बढी है , योगी आदित्य नाथ की ओर से श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा उठाने की वजह से सपा को यादव वोटों में सेंध की आशंका है |  इसी आशंका की वजह से मुलायम सिंह यादव और खुद अखिलेश यादव को करहल में वोट मांगने पड़े , जबकि पहले उन्होंने एलान किया था कि पर्चा भरने के बाद वह करहल नहीं आएँगे | मुलायम सिंह का चुनाव प्रचार तो बहुत दिलचस्प रहा , उन्होंने एक बार भी अखिलेश यादव का नाम ले कर वोट नहीं माँगा , उन्होंने सिर्फ यह कहा की अपना विधायक चुनें |

 

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