गैर यादव पिछड़े हैं किस के साथ

Publsihed: 18.Jan.2022, 19:51

अजय सेतिया / जब हम उतर प्रदेश के चुनावी समर की बात करते हैं , तो हमें पश्चिम
बंगाल के चुनाव की याद आती है | चुनाव से ठीक पहले वहां बड़े पैमाने
पर दलबदल हुआ था , तृणमूल कांग्रेस के कई मंत्री सांसद विधायक
भाजपा में शामिल हुए थे | हवा ऐसी बनी थी कि भाजपा स्पष्ट बहुमत
ले कर आएगी | लेकिन हुआ क्या | भाजपा 294 सीटों के सदन में सौ
का आंकडा पार नहीं कर पाई , 77 पर अटक गई , जो सदन का एक
चौथाई ही बनता है | अब वैसी ही हवा उतर प्रदेश में भाजपा से बड़े
पैमाने पर दलबदल करवा कर सपा के पक्ष में बन रही है | इस का
मतलब यह नहीं है कि सपा को फायदा नहीं होगा , पर उतना ही होगा
, जितना भाजपा को बंगाल में हुआ था | भाजपा वहां तीन सीटों से 77
पर पहुंच गई , तो सपा भी 47 से बढ़ कर ज्यादा से ज्यादा 100 हो
जाएगी | सपा ने पिछ्ला चुनाव कांग्रेस के साथ मिल कर लडा था ,
प्रशांत किशोर चुनाव के रणनीतिकार थे , सपा को 47 और कांग्रेस को
7 सीटें मिलीं थी | सपा को 21.7 प्रतिशत वोट मिला और कांग्रेस को
6.25 प्रतिशत | जबकि अकेले चुनाव लड़ने वाली बसपा को सपा से
ज्यादा 22. 23 प्रतिशत मिला था , हालांकि सीटें सिर्फ 19 मिली थीं |
जबकि भाजपा को अकेले 39.67 प्रतिशत वोट मिले थे और 312 सीटें |
ये आंकड़े मैं इस लिए बता रहा हूँ , क्योंकि उस समय ओपिनियन पोल
त्रिशंकू विधानसभा की भविश्यवाणी कर रहे थे | इस लिए हवा और
ओपिनियन पोल का कोई मतलब नहीं होता |
मतलब की बात करते हैं , यूपी में पिछली बार भाजपा जीती क्यों थी
और इस बार सीटों में कितना अंतर आ सकता है | पिछली बार भाजपा
इस लिए जीते थी , क्योंकि अगडी जातियों के साथ गैर यादव ओबीसी
अखिलेश यादव के खिलाफ हो गए थे , और गैर जाटव दलितों ने भी

मायावती को वोट नहीं दिया था | गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव
दलित भाजपा के साथ जुड़ गए थे , जो लोगों को उस समय समझ नहीं
आ रहा था | 2019 के लोकसभा चुनाव में तो यह समीकरण और
ज्यादा मजबूत हो गए थे | भाजपा ने उतर प्रदश में 50 प्रतिशत वोट
हासिल कर के सभी पार्टियों का सूपड़ा साफ़ कर दिया था | और यह
इस के बावजूद हुआ था कि सपा और कांग्रेस के साथ बसपा भी आ गई
थी | समाजवादी पार्टी सिर्फ 5 सीटों पर सिमट गई , बसपा 9 सीटें
जीत गई थीं और कांग्रेस सिर्फ सोनिया गांधी की सीट बचा पाई थी ,
राहुल गांधी भी अमेठी से हार गए थे |
मुलायम सिंह यादव परिवार से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल , चचेरे
भाई धमेन्द्र और अक्षय चुनाव हार गए थे , सिर्फ मुलायम और
अखिलेश ही जीत पाए थे | यह इसलिए हुआ था क्योंकि सपा कांग्रेस
और बसपा के एक साथ आने से साम्प्रदायिक ध्रुविकरण हो गया | इन
सभी दलों के अपने अपने जातीय वोटों के साथ सिर्फ मुस्लिम वोट बचा
रह गया था , दूसरी तरफ सारा हिन्दू वोट एकजुट हो गया | जिस में
स्वर्ण हिन्दू , गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित भी शामिल थे |
अब 2022 के विधानसभा चुनाव में फर्क सिर्फ इतना है कि सपा ,
बसपा और कांग्रेस अलग अलग चुनाव लड रहे हैं और योगी आदित्य
नाथ भाजपा का मुख्यमंत्री पद का चेहरा है | मीडिया हवा यह बना
रहा है कि योगी राजपूत जाति से आते हैं और पूरे प्रदेश में राजपूतों
की संख्या सिर्फ साढ़े प्रतिशत है , उस से ज्यादा तो ब्राह्मण हैं , जो
10-11 प्रतिशत हैं | बाकी अगडी जातियां मिला कर भी कुल सिर्फ 21
प्रतिशत हैं | और 21 प्रतिशत में भी ब्राह्मणों क योगी से नाराज बताया
जा रहा है | हालांकि यह नाराजगी कभी सामने नहीं आई | न ही अगदी

जाति का कोई नेता भाजपा छोड़ कर गया है | अगडी जातियों की सब
से बड़ा मुद्दा अमन शान्ति होता है , जिस में योगी सरकार का यू.एस.पी
सब से अच्छा रहा है , इसलिए अपना मानना है कि अगडी जातियों के
वोट भाजपा को उतने ही मिलेंगे , जितने 2017 में मिले थे |
तो धारणा यह बनाई जा रही है कि ब्राह्मण भाजपा को वोट नहीं देंगे |
स्वामी प्रसाद मौर्य , दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह आदि के साथ गैर
यादव ओबीसी समाजवादी पार्टी के साथ चले गए हैं , इसलिए
अखिलेश यादव का पलड़ा भारी हो गया है | लेकिन अब जरा जातियों
की बारीकी को समझ लीजिए , पहली बात तो यह है कि मौर्य जाति
का सब से बड़ा नेता केशव प्रसाद मौर्य है , न कि स्वामी प्रसाद मौर्य |
अगर स्वामी प्रसाद मौर्य बड़ा नेता होता , तो उस का अपना बेटा
लगातार दो बार चुनाव कैसे हार जाता | उस की बेटी भी बदाऊँ से
लोकसभा चुनाव जीती तो सिर्फ भाजपा की टिकट की वजह से | इसी
तरह दारा सिंह तो खुद 2014 का लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार गए
थे , जब उन्हें लगा कि बसपा में रह कर अब कुछ नहीं हो सकता तो वह
भाजपा में गए | स्वामी प्रसाद मौर्य भी अपनी खुद की सीट बचाने के
लिए बसपा छोड़ कर भाजपा में गए थे | इस लिए स्वामी प्रसाद मौर्य ,
दारा सिंह या धर्म सिंह सैनी प्रदेश में गैर यादव ओबीसी वोट बैंक के
ठेकेदार नहीं हैं |
अब आप को ओबीसी की हकीकत बता दें , कुल ओबीसी 52 प्रतिशत है
, इन में यादव तो सिर्फ 10 प्रतिशत ही हैं , दूसरी बड़ी पिछड़ी जाति
कुर्मी है , जिस के 7 प्रतिशत वोट हैं , अनुप्रिय पटेल का अपना दल इसी
जाति का प्रतिनिधित्व करता है और अपना दल भाजपा के साथ
गठबंधन में है | भाजपा ने उसे गठबंधन में 14 सीटें दी हैं | इस के बाद

कुशवाह, मौर्य और शाक्य हैं , जो 6 प्रतिशत हैं , मौर्य के बारे में मैंने
आप को बता ही दिया है कि उस के सब से बड़े नेता केशव प्रसाद मौर्य
हैं , न कि स्वामी प्रसाद मौर्य | इस के बाद लोध 4 फीसदी है , पूर्व
मुख्यमंत्री कल्याण सिंह लोध जाति से थे , लोध हमेशा से भाजपा के
साथ ही रहे हैं | इस के बाद निषाद –मल्लाह -कश्यप-केवट 4 फीसदी है
| इन जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली निषाद पार्टी का भाजपा से
गठबंधन हो चुका है , भाजपा ने उसे समझौते में 15 सीटें दी हैं | अब
आप खुद सोच लो कि जातीय समीकरणों में भी सपा भाजपा से
कितना आगे है

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