रोहित वेमूला का सच सामने लाया न्यायिक आयोग 

Publsihed: 16.Aug.2017, 17:21

याद होगा आप को | दादरी में अख़लाक़ की हत्या ने देश भर में आक्रोश पैदा किया था | वामपंथियों ने इस एक घटना को मोदी सरकार के खिलाफ हथियार बना लिया था | देश भर में फैले अपने स्लीपिंग सेलों को इशारा किया और असहिष्णुता का नारा गूँज उठा | वामपंथी बुद्धीजीवियों ने पुरस्कार वापसी का नाटक शुरू कर मोदी के खिलाफ बवाल खडा कर दिया था | बस उन्हीं दिनों हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे रोहित वेमूला ने आत्महत्या कर ली | बिहार के चुनाव सिर पर थे | वामपंथियों को तो एक और मुद्दा मिल गया | तभी सोशल मीडिया पर किसी ने बहुत ही दिलचस्पी टिप्पणीं की थी  - "'यात्रिगण  कृपया ध्यान दें | असहिष्णुता एक्सप्रेस ,जो दादरी से निकली थी | वो मालदा और पूर्णिया में नहीं रुकेगी | उसका अगला स्टाप हैदराबाद होगा | " और वही हुआ | वामपंथियों का एजेंडा मुसलमानों और दलितों को भाजपा के खिलाफ खड़ा करना था | रोहित वास्तव में ओबीसी था | पर उस की मां दलित थी | जिस का अपने ओबीसी पति से तलाक हो गया था | दलितों को मिलने वाले लाभ उठाने के लिए रोहित की मां ने अपने बच्चों के दलित होने का सर्टिफिकेट बनवा लिया था | जो सरासर फर्जीवाड़ा था | अब ज़रा रोहित की आत्महत्या से पहले की घटनाओं पर प्रकाश डाल दें | बात अगस्त 2015 की है, जब मुबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को फांसी दी गई थी |  हैदराबाद यूनिवर्सिटी में वामपंथी प्रभाव वाली अंबेडकर स्टडी एसोसिएशन ने याकूब मेमन के समर्थन में जुलूस निकाला | प्रदर्शनकारी अपने गले में तख्तियां लटकाए हुए थे |  जिन पर लिखा था- 'मैं भी याकूब मेमन हूँ |" याकूब मेमन को फांसी दिए जाने के बाद मुम्बई में जिस तरह उनके जनाजे में मुस्लिम समुदाय उमड़ा था | उससे हिंदू -मुस्लिम के बीच एक खाई उभर कर सामने आई  | अंबेडकर स्टडी एसोसिएशन का यह प्रदर्शन उस खाई को बढ़ाने का काम कर रहा था | आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले का छात्र रोहित चक्रवर्ती वेमुला प्रदर्शनकारियों की रहनुमाई कर रहा था |  उसकी विद्यार्थी परिषद के छात्र नेता नंदम सुशील कुमार से झड़प हो गई | रोहिथ वेमुला और चार अन्य छात्रों ने सुशील कुमार की लात - घूसों से पिटाई कर दी | नतीजन सुशील कुमार को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा | जहां उसका अपेंडिक्स का ऑपरेशन करना पड़ा | सुशील कुमार की मां  श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रे से मिली | और अपने  बेटे के साथ मारपीट करने वालों पर कार्रवाई की मांग की | उसी पर बंडारू दत्तात्रे ने सारी घटना का जिक्र करते हुए मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को चिठ्ठी लिखी थी |  जिस पर मंत्रालय ने यूनिवर्सिटी से जवाब तलब किया था | सुशील कुमार की मां हाईकोर्ट भी गई | हाईकोर्ट ने भी यूनिवर्सिटी से कार्यवाही रिपोर्ट तलब की | दो तरफा दबाव में यूनिवर्सिटी  ने रोहिथ वेमुला, पी. विजय कुमार, शैशना, वेपुला, सुनमन्ना और दोथा प्रशांथ को निलम्बित कर दिया था | रोहित परिवार के कई दबावों में फंसा था | उस ने व्यक्तिगत दबावों के चलते आत्महत्या कर ली | अपने आत्महत्या पत्र में उस ने इन दबावों का जिक्र किया | लिखा कि आत्महत्या के लिए किसी को दोषी न माना जाए | वामपंथियों ने इसे दलित का मुद्दा बना कर राजनीतिक तौर पर भुनाने की साजिश रची | रोहित की आत्महत्या के बाद ही दलित सर्टिफिकेट के फर्जीवाड़े का खुलासा हो गया था | पर वामपंथियों ने इस खुलासे को ही फर्जीवाड़ा बताना शुरू कर दिया | वामपंथी संपादकों ने जमीनी रिपोर्टों को दबा दिया | दलित की आत्महत्या का मामला का मामला तो बनाया , सो बनाया | उस वक्त की मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को आत्महत्या के लिए उकसाने तक का मामला बना कर उछाला | हैदराबाद मूल के केन्द्रीय मंत्री बंडारू दतात्रे पर तो हत्या का मुकद्दमा दायर करवाने तक की कोशिश की | अब करीब दो साल बाद न्यायिक जांच सामने आ गई है | जस्टिस अशोक कुमार ने जांच रिपोर्ट पेश कर दी है | जिस में खुलासा हुआ है कि वह दलित नहीं था | उस की आत्महत्या का कारण भी उस की यूनिवर्सिटी से बर्खास्तगी नहीं था | उस की आत्महत्या का कारण यूनिवर्सिटी में भेदभाव भी नहीं था | याद करो, कैसे समूचा विपक्ष वामपंथियों की ओर से परोसे गए दलित आत्महत्या के फर्जी मुददे पर टूट पडा था | राहुल गांधी और अरविन्द केजरीवाल ने हैदराबाद जा कर तमाशा खडा किया था | 2016 का संसद सत्र इसी झूठ की बुनियाद पर बर्बाद हुआ था | टाईम्स नाऊ तब अंगरेजी का बड़ा न्यूज चेनेल था | उस ने वामपंथियों के झांसे में आ कर पूरे देश की पत्रकारिता को कलंकित किया | देश के एक दो बड़े चैनल जो एक तरफा एजेंडा तय कर देते हैं, फिर उसे ही सभी फालो करने लगते हैं | गुजरात के दंगों के वक्त भी यही हुआ था | दिल्ली के मीडिया ने मोदी के खिलाफ एकतरफा प्रचार किया था | अखलाक और रोहित वेमूला के मुद्दों पर भी मीडिया ने वही हरकत की थी | वामपंथियों के प्रभाव में आ कर बताया कि देश में असहिष्णुता के हालात पैदा हो गए हैं | अपने जैसे विरले ही पत्रकार थे, जिन ने रोहित वेमूला के सच को लिखने की कोशिश की, जिसे ज्यादातर ने नहीं छापा | पर कुछ अखबारों ने छापा भी था | 

 

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