महिला-महिला खेल रहे मोदी और राहुल

Publsihed: 16.Jul.2018, 21:28

अजय सेतिया / चुनावी घमासान शुरू हो चुका है | नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने एक दूसरे पर हमले तेज कर दिए हैं | मोदी जनता से जुड़ने की कोशिशों में जुट गए हैं | हैरानी नहीं होगी, अगर मोदी आख़िरी साल एक प्रेसकांफ्रेंस भी कर लें | दो तीन घटनाओं से इस का अंदाज लग जाता है | सोमवार को मोदी की मिदनापुर में रैली थी | एक तम्बू टूट गया और 22 लोग जख्मी हो गए | मोदी ने तुरंत अपनी एसपीजी को राहत में जुटाया | फिर सारे प्रोग्राम रद्द कर जख्मियों को देखने अस्पताल जा पहुंचे | अभी तक यह आरोप तो नहीं आया कि तम्बू गिराना साजिश थी | पर ममता बेनर्जी और भाजपा में जैसी राजनीति चलती है, उस में यह भी सम्भव है | राहुल गांधी भी जनता में पहुंचने की कोर कसर नहीं छोड़ रहे | एक तरफ  जनेऊ पहन कर मंदिर मंदिर घुम रहे हैं | दूसरी तरफ मुस्लिम बुद्धिजीवियों में जा कर कह दिया कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है | यह खबर उर्दू के इन्कलाब अखबार में छपी | मोदी ने इसे लपका और राहुल गांधी से पूछ लिया कि कांग्रेस मुस्लिम पुरुषों की पार्टी है या मुस्लिम महिलाओं की चिंता करती है | अब कांग्रेस तो छोडी, कांग्रेस के समर्थक बुद्धिजीवी भी तिलमिलाए पड़े हैं | मोदी में यही खासियत है , वह बाल की खाल निकाल लेते हैं | अब कांग्रेस से न राहुल के बयान की पुष्टि हो रही , न खंडन | सिर्फ इतना कह रही है कि मोदी को झूठ बोलने की आदत है | आदत अपनी जगह है, मुद्दा अपनी जगह है | मुस्लिम महिलाओं का मुद्दा गले पड गया है |

लगता है अब राहुल भी होशियार हो गए हैं | या उन की टीम में कुछ होशियार घुस गए हैं | महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता सेन उन में से एक है | उन ने तुरंत राहुल को मुद्दा थमाया | और महिलाओं का मुद्दा जा कर मोदी को चिपक गया | राहुल गांधी ने संसद में महिला आरक्षण का मुदा उठा दिया है | मोदी को चिठ्ठी लिख कर पेशकश की है कि अगर वह मानसून सत्र में बिल लाएं तो कांग्रेस बिना शर्त समर्थन देगी | अपन याद दिला दें , पिछले मानसून सत्र के समय सोनिया गांधी ने भी मोदी को ऐसी ही चिठ्ठी लिखी थी | वैसे  यूपीए ने अपने दूसरे शाषनकाल में 9 मार्च 2010 को राज्यसभा से बिल पास करवाया था | पर चार साल कभी लोकसभा में लाने का जिक्र तक नहीं किया | बिल राज्यसभा में पास हुआ था ,जिस की सूचना महासचिव ने सदन को दे दी थी | इस लिए पन्द्रहवीं लोकसभा भंग होते ही वह बिल खत्म हो गया | अब राज्यसभा से भी दुबारा पास करवाना होगा |

भले ही सोनिया गांधी खुद लोकसभा में बिल पास नहीं करवा पाई थी | पूछा जा सकता है कि सोनिया लोकसभा में बिल क्यों नहीं लाई थी | कभी एक बार प्रयास भी नहीं किया | जबकि जैसे आज राहुल गांधी बिना शर्त समर्थन की बात कह रहे हैं , वैसे तब भाजपा ने समर्थन की पेशकश की थी | राहुल गांधी चिठ्ठी भले लिख रहे हों , पर उन्हें पता है कि उनके साथ खड़े लालू यादव और शरद यादव महिला आरक्षण के खिलाफ हैं | इन्ही की वजह से तो सोनिया लोकसभा में बिल रखवाने की हिम्मत नहीं कर पाई थी | इस बिल के पेंच हैं , वह भी समझ लें | पहला पेंच तो यह है कि ओबीसी के सांसद ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण मांग रहे हैं | जबकि पुरुष सांसदों का ही आरक्षण नहीं है , तो महिलाओं का कैसे होगा | दूसरा पेंच यह है कि एससी और एसटी सांसदों को भी अपनी एक तिहाई सीटें महिला एससी/ एसटी के लिए छोडनी होंगी | न तो जनरल कोटे वाले सांसद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को तैयार हैं , न एससी / एसटी वाले | सवाल उठ रहा है कि क्यों नहीं लोकसभा की 33 फीसदी सीटें बढ़ा कर महिलाओं को दे दी जाएं | लोकसभा की सीटें 733 हो जाएँगी | संसद के सेंट्रल हाल को लोकसभा बना दिया जाए | जिस की क्षमता 800 सीटों की है | बदल बदल कर 33 फीसदी सीटें डबल सांसदों वाली हो जाएं | पर इस का मतलब होगा खानापूर्ति के लिए एक सीट से महिला को एडजेस्ट करना | यह सत्ता में भागीदारी तो नहीं हुई | दूसरा फार्मूला यह है कि लोकसभा 545 सांसदों की ही बनी रहे | सीटें आरक्षित करने की बजाए राजनीतिक दल महिलाओं को 33 फीसदी टिकटें दें | जाते जाते बता दें , पाकिस्तान में महिलाओं को नेशनल एसेम्बली में आरक्षण मिला हुआ है |

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