साम्प्रदायिक रंग में रंगी पशुवध याचिका पहुँची सुप्रीमकोर्ट 

Publsihed: 15.Jun.2017, 23:00

पहली जून को अपन ने लिखा था -गाय के दूध से रोज़ा छोड़ने की मिसाल | मुद्दा सरकार की पशु बिक्री नीति से उठे बवाल का था | यह अधिसूचना 23 मई को जारी हुई थी | अधिसूचना यह थी कि पशु मेलों में बूचडखानों के लिए पशुओं की बिक्री नहीं होगी | विवाद खडा करने की बात जोह रहे सनकियों ने अधिसूचना को गाय के साथ जोड़ दिया | हिन्दू और मुसलमान का सवाल खडा कर दिया | साम्प्रदायिक माहौल बना दिया गया | जबकि अधिसूचना में गाय के अलावा बैल, सांड,बछिया,बछड़े, भैंस और ऊंट भी लिस्ट में शामिल है | सरकार पशुओं के व्यापार को कानूनी दायरे में लाना चाहती है  | इसी साम्प्रदायिक माहौल में अपन ने मुरादाबाद के मेहंदी हसन  का जिक्र किया था | जिन ने गंगा-जमुनी मिसाल पेश की है | मेहंदी हसन अंसारी ने अपने परिवार के साथ रमजान के पहले रोजे का इफ्तार गाय के दूध के साथ किया था | मेहंदी हसन से इस मौके पर कहा था -" हम हिंदू-मुस्लिम बेवजह की लड़ाई में फंसकर अपने मुल्क को बर्बाद कर रहे है | " मेहंदी हसन की शुरू हुई रिवायत ने काफी गुल खिलाया है | सोमवार को लखनऊ में भी यही दोहराया गया | जहां सैंकड़ों मुस्लिम औरतों और मर्दों ने गाय के दूध से रोजा छोड़ा | तब अपन ने मद्रास हाई कोर्ट के अधिसूचना पर स्टे का जिक्र भी किया था | अब यह मामला पुरी तरह साम्प्रदायिक हो कर सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा है | एक याचिका हैदराबाद के मोहम्मद अब्दुल फहीम कुरैशी की है | उन्होंने पशु वध को धार्मिक स्वतंत्रता के साथ जोड़ दिया | दावा किया गया है कि अधिसूचना के प्रावधान असंवैधानिक हैं | तर्क दिया गया है कि -"अधिसूचना धर्म और आजीविका की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं | अधिसूचना मवेशियों की कुर्बानी देने की धार्मिक आजादी के खिलाफ है | अधिसूचना भोजन के लिए मवेशियों की हत्या पर प्रतिबंध भोजन के अधिकार का उलंघन है | अधिसूचना  निजता एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है |" आप देख सकते हैं कि याचिकाकर्ता के तर्क क्या हैं | उन का कहना है कि पशुओं की बलि उनका धार्मिक अधिकार है  | पशुओं का क़त्ल करना उनकी रोजी-रोटी है | याचिका पूरी तरह साम्प्रदायिक रंग में रंगी है | याचिकाकर्ता ने अदालत के सामने कुछ मांगे राखी है | पहली मांग-  वह तय किया जाए  कि भोजन के लिए मवेशियों का वध उन का अधिकार है | दूसरी मांग- तय किया जाए कि पशुओं की कुर्बानी देना उन की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है | यानि भोजन और सांस्कृतिक आज़ादी के लिए पशु वध | और इन दोनों बातों की गारंटी उन्हें संविधान के अनुच्छेद 29 में मिली है | केरल, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और कर्नाटक ने केंद्र सरकार की  अधिसूचना लागू न करने का एलान किया था | याचिकाकर्ता ने कोर्ट को यह भी जानकारी दी  | यानि केंद्र और राज्यों में टकराव का मुद्दा भी  बनाया | कोर्ट में केंद्र की तरफ से अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल पीएस नरसिम्हा | उनने कोर्ट को बताया कि यह अधिसूचना क्यों जारी की गई | मंशा मवेशी बाजारों का सिस्टम बनाने की है | कोर्ट को यह भी बताया कि मद्रास हाईकोर्ट ने स्टे लगाया हुआ है | पर कोर्ट जैसा करती है , कोर्ट ने वैसा ही किया | केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने को कह दिया | पन्द्रह दिन में जवाब माँगा है | सुनवाई की अगली तारीख 11 जुलाई तय की है | पर मूल सवाल दूसरा | पशु वध नियमावली को सिर्फ गाय के साथ ही क्यों जोड़ा जा रहा है | यह किस की साजिश है | फिर दूसरा अहम सवाल कि गौमांस का सेवन किसी धर्म का हिसा कैसे हो सकता है | इस्लाम का गौ-हत्या कोई सम्बन्ध नहीं है | अंग्रेजों के आगमन तक भारत में गौहत्या नहीं होती थी | मुसलमान गौ मांस नहीं खाते थे  | जबकि अंग्रेज पहले से गौमांस खाते थे  | उन्हें अपनी फ़ौज के लिए गाय और सूअर दोनों चाहिए थे | अंग्रेजों ने मुसलमानों को यह कह कर गौहत्या के लिए उकसाया कि इस्लाम में कहीं भी गाय की बलि पर रोक नहीं है | अंग्रेजों ने गौ मांस की आपूर्ति के लिए मुसलमानों का इस्तेमाल किया | इस से उन्हें हिन्दुओं और मुसलमानों में नफरत पैदा करने का हथियार भी मिल गया था | आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह जफर अंग्रेजों की चाल समझ गए थे | उनने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए गौहत्या पर मौत की सजा सूना दी थी | उन ने  28 जुलाई 1857 को बकरीद के मौके पर गाय की कुरबानी नहीं करने का फरमान जारी किया था | 

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