हेग की अदालत में मिमियाता रहा पाकिस्तान 

Publsihed: 15.May.2017, 20:15

नीदरलैंड में एक जगह है हेग | संयुक्त राष्ट्र की अतर्राष्ट्रीय अदालत है वहां | हेग अंतर्राष्ट्रीय अदालत के कारण ही मशहूर हुआ | वरना वहां ऐसा कुछ नहीं ,हेग इतना मशहूर होता | पाकिस्तान को लेकर अपन कभी हेग की अदालत में नहीं गए | हमेशा एक डर सताता रहा कि नेहरू ने जो गलती कश्मीर मसला यूएन में ले जा कर की थी | उस का दोहराव न हो जाए | यूएन ने जनमत संग्रह का सांप नेहरू के गले में डाल दिया था | जो अब तक भारत के गले में फंसा हुआ है | 1999 में जब अपन ने पाकिस्तान का हवाई जहाज रण-आफ-कच्छ में गिराया था | तब पाकिस्तान भागा भागा हेग गया था | तब सोली सोराबजी अपने अटार्नी जनरल थे | उन ने हेग की अदालत में दो तर्क रखे | पहला तर्क - गिराया गया पाकिस्तान नेवी का लड़ाकू विमान था | जो 1991 के भारत-पाक समझौते का उलंघन था | जिस के मुताबिक़ लड़ाकू विमान सीमा के 10 किलोमीटर के दायरे में नहीं आ सकते | सोली सोराबजी की दूसरी दलील कामनवेल्थ समझौते की थी | जिस के मुताबिक़ आपसी विवाद आपस में हल होंगे | सो दलील यह थी हेग की अदालत को दखल का हक नहीं |  फैसले में हेग अदालत ने माना अंतर्राष्ट्रीय अदालत की जुरीडिक्शन का मामला नहीं | अब जब पाकिस्तान की फ़ौजी अदालत ने कुलभूषण जाधव को सजा-ए-मौत सुनाई | तो अपन खुद पहली बार हेग की अदालत में पाकिस्तान के खिलाफ गए | | हेग की कोर्ट में जाना मोदी सरकार की बदली हुई नीति का सबूत है | अपन उस डर से बाहर निकले हैं | पाकिस्तान कश्मीर पर अन्तर्राष्ट्रीय दखल की कोशिश करता रहा | अपन इसे ठुकराते रहे | इस बार भी अपने विदेश मंत्रालय के अफसर मोदी को वही डर दिखा रहे थे | सौरभ कालिया के मामले में वाजपेयी,मनमोहन ,मोदी को डराते रहे | मोदी का यह फैसला सरबजीत से सबक लेकर था | जिसे अपन कूटनीति से बचा नहीं पाए | मोदी यह कदम नहीं उठाते | तो मोदी के समर्थक ही खिलाफ हो जाते | मोदी की विश्वसनीयता का सवाल था | मोदी के इस फैसले ने पाकिस्तान में खलबली मचा दी | पाक सेना में भी खलबली मची | पाकिस्तान पूरी तरह कन्फ्यूज हो गया | सोमवार को हेग की अदालत में सुनवाई हुई | अपनी तरफ से मशहूर वकील हरीश साल्वे पेश हुए | जिन ने मौटे तौर पर दो दलीलें दी | पहली- कुलभूषण भारतीय सेनिक नहीं , नागरिक है | पाकिस्तान ने बार बार कहने के बाद भी काउंसलर एक्सेस नहीं दी | जो विएना कन्वेंशन के मुताबिक़ जरुरी थी | यह मानवाधिकार का मामला है | हेग की अदालत को दखल देने का पूरा हक है , वह दखल दे और फांसी पर रोक लगाए |  दूसरी-पाकिस्तान झूठ बोल रहा है | कुलभूषण को ईरान से लाया गया | उसे बलूचिस्तान में पकड़ा दिखाया गया | पाकिस्तान की तरफ से खावर कुरैशी प्रमुख वकील के तौर पर पेश हुए | हालांकि पाकिस्तान कन्फ्यूज था | उस ने कहा पाकिस्तान को थोड़ा समय मिला | यानि पाकिस्तान ने उम्मींद नहीं की थी कि मोदी ऐसा कदम उठा सकते हैं | पर खावर कुरैशी बचाव मुद्रा में नहीं | अलबत्ता हमलावर थे | उन ने दो नए खुलासे किए | पहला -पाकिस्तान ने भारत को एक बंद लिफाफा सौंपा था | जिस में कुलभूषण के बताए 13 नाम थे | दूसरा- कुलभूषण जाधव का पासपोर्ट हुसैन मुबारक के नाम से था | जाधव के फोटो वाला हुसैन मुबारक के नाम का भारतीय पासपोर्ट अदालत में दिखाया गया | पहले पाकिस्तान उस के नाम से पासपोर्ट की बात बताता रहा था | अचानक यह नया पासपोर्ट कहा से आया | वह कुलभूषण के कबूलनामें की वीडियो भी दिखाना चाहते थे | जिस को देख को साफ़ लगता है कि वह जोड़-तोड़ कर बनाई गयी | पर अदालत ने उतना समय नहीं दिया | अपने साल्वे की दलीलें मानवाधिकार के इर्द-गिर्द थीं | कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को ले कर थी | तो पाकिस्तान पूरी तरह कन्फ्यूज्ड था | पहले तैयारी का समय कम मिलने की बात कही | फिर कहा कि संयुक्त राष्ट्र की बात मानने को बाध्य नहीं | फिर कहा अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का अधिकार क्षेत्र ही नहीं | अब सवाल खडा होता है कि अगर हेग की अदालत का अधिकार नहीं मानते | तो पाकिस्तान को पेश होने की जरुरत क्या थी | फिर काउंसलर एक्सेस के अधिकार को नकारा | यानी पूरी तरह कन्फ्यूज्ड | अपन कांउन्सलर एक्सेस पर पाक की दलील का कारण बताते जाएं | आपसी  काउंसलर एक्सेस पर 2008 में भारत-पाक समझौता हुआ था | प्रणव मुखर्जी तब अपने विदेश मंत्री थे | उन ने समझौते पर दस्तखत किए थे | पाकिस्तान ने उसी को आधार बनाया | उस में लिखा है मामला सुरक्षा का हो ,तो जानकारी देना या काउंसलर एक्सेस जरुरी नहीं | हरीश साल्वे पहले ही बता चुके थे - 2008 का समझौता यहाँ लागू नहीं होता | काउंसलर एक्सेस के विएना समझौते में एक शर्त है | यह शर्त आर्टिकल 102 में लिखी है | जिस के मुताबिक़ आपसी समझौते यूएन में रजिस्टर्ड होना चाहिए | तभी लागू होंगे | पर खुदा का शुकर है कि यह समझौता यूएन में अभी तक रजिस्टर्ड नहीं | | हालांकि बहरीन और कुवैत के मामले में हेग अदालत ने रजिस्टर की बात नहीं मानी थी | अब अपन को कोर्ट के फैसले का इन्तजार करना होगा | मामला सजा-ए-मौत का है | मामला मानवाधिकार का है | 

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