अजय सेतिया / अपन पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान की पक रही भारत विरोधी खिचडी पर लिखते रहे हैं | अपनी आशंका कि पाक और चीन मिल कर तालिबान को कश्मीर की तरफ धकेलना चाहते हैं | वे बारास्ता तालिबान तहरीक-ए-तालिबान-पाकिस्तान और हक्कानी नेटवर्क को भी इस्लाम के नाम पर कश्मीर में धकेलना चाहते हैं | लेह-लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र बना दिए जाने के बाद चीन की बेचैनी अपन पूर्वी लद्दाख में देख चुके हैं | पूर्वी लद्दाख में तनाव भले ही कम हो गया हो, लेकिन चीन भारत से लगने वाली अपनी सीमा के नजदीक आधारभूत ढांचे के विकास की गति तेज किए हुए है | ऐसा बीते अगस्त महीने में सेटेलाइट की तस्वीरों से पता चलता है | देपसांग से चीनी सैनिकों के हटने को लेकर दोनों देशों के बीच वार्ता चल रही है | लेकिन अपन 1962 से ही जानते हैं कि उस की रणनीति बातचीत में उलझा कर युद्ध की तैयारी करने की रही है | अब खबर है कि चीन ने थ्यानवेनडियन हाईवे का विस्तार शुरू कर दिया है | इसे बढ़ाकर देपसांग तक लाया जा रहा है | यहां से भारत की सबसे ऊंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी सिर्फ 24 किलोमीटर दूर है |
इस बीच अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद आज शुक्रवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शीर्ष स्तरीय बैठक ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में होने जा रही है | इसमें भारत के साथ साथ एक ही मंच पर चीन, रूस, पाकिस्तान और कुछ मध्य एशियाई देश होंगे | वैसे तो भारत की तरफ से विदेश मंत्री एस जयशंकर व्यक्तिगत रूप से इसमें भाग लेने दुशान्बे पहुंच चुके हैं | लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल माध्यम से भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी दुशांबे पहुंच गए हैं | चीन के राष्ट्रपति शी भी बैठक में हिस्सा ले रहे हैं |
दूसरी तरफ साफ़ है कि अफगानिस्तान को लेकर चीन और पाकिस्तान एक सुर में बोलेंगे | भारत आर्थिक सहयोग, क्षेत्रीय विकास जैसे मुद्दे तो उठाएगा ही , आतंकवाद पर अपनी आशंका भी जताएगा | भारत चाहता है कि अफगानिस्तान आतंकी पनाहगाह न बने | क्योंकि भारत को आशंका है कि भारत विरोधी आतंकवादी संगठन अफगान भूमि का इस्तेमाल करेंगे | खासकर पाकिस्तानी आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को अफगानिस्तान में पनाह मिलने की आशंका है | इसलिए जून में एससीओ के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में अजीत डोभाल ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ एक कार्य योजना का प्रस्ताव दिया था | लेकिन यह चीन और पाकिस्तान के लिए महत्व का मुद्दा नहीं है | क्योंकि दोनों देश भारत के खिलाफ अफगानिस्तान , तालिबान और आतंकी संगठनों का इस्तेमाल करना चाहते हैं | स्वाभाविक है कि चीन और पाकिस्तान एकसुर में तालिबान सरकार का समर्थन करने का मुद्दा उठाएंगे | वेट एंड वाच की नीति अपना रहा भारत निश्चित ही ऐसी स्थिति में असहज होगा | अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद यह बैठक बेहद अहम है | बैठक में भारतीय कूटनीति की एक अहम परीक्षा साबित होने वाली है |
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