बगावत कहीं भाजपा का खेल ही न बिगाड़ दें

Publsihed: 15.Nov.2022, 13:16

इंडिया गेट से अजय सेतिया / गुजरात के विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस और भाजपा में बड़ी बगावत देखने को मिल रही है | कांग्रेस के पिछली बार चुने गए 19 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं , इनमें से 17 को भाजपा ने टिकट दे दिया है, जबकि खुद के 38 विधायकों का टिकट काट दिया है, जिनमें चार तो मंत्री भी हैं, इनमें ज्यादातर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी की टिकट पर या निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं|

नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद 2007 के विधानसभा चुनाव के समय भी भाजपा में ऐसी ही बगावत देखने को मिली थी, जब भाजपा के 17 विधायक बागी हो गए थे|गुजरात में भाजपा और कांग्रेस में बगावत का लंबा इतिहास रहा है| 1974 में चिमनभाई पटेल ने इंदिरा गांधी को दो टूक कह दिया था कि वह मुख्यमंत्री तय नहीं कर सकतीं, मुख्यमंत्री विधायक तय करेंगे, उन की इस धमकी के बाद सीक्रेट वोटिंग करवाई गई, वोटों का बक्सा दिल्ली ला कर गिनती की गई थी, जिसमें इंदिरा गांधी का उम्मीदवार कांतिलाल घिया सात वोट से हार गए और चिमनभाई मुख्यमंत्री बने|

गुजरात के नवनिर्माण आन्दोलन के कारण चिमनभाई को इस्तीफा देना पड़ा, इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था| फिर इसी चिमन भाई पटेल ने ही किसान मजदूर लोकपक्ष पार्टी बना कर  कांग्रेस को हराया| हालांकि 1975 के चुनाव में उन्होंने सिर्फ 11 सीटें जीतीं , लेकिन 86 सीटें जितने वाले जनता मोर्चा को समर्थन दे कर बाबू भाई पटेल को मुख्यमंत्री बनवाया था| बाबू भाई पटेल संगठन कांग्रेस के नेता थे|हालांकि इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान ही बाबू भाई पटेल की सरकार गिरा दी थी|कांग्रेस 1976 के बाद फिर से उबर आई थी , माधव सिंह सोलंकी और अम्र सिंह चौधरी कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे , लेकिन 1990 के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला|  चिमन भाई पटेल उस समय जनता दल में थे, जनता दल को 70 और कांग्रेस को 73 सीटें मिली थीं, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल ने साझा सरकार बनाई, जिसमें चिमनभाई पटेल मुख्यमंत्री और केशुभाई पटेल उपमुख्यमंत्री बने| आठ महीने बाद ही भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, लेकिन चिमन भाई पटेल ने इस्तीफा दे कर कांग्रेस के समर्थन से तुरंत दुबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली और बाकी के चार साल तक मुख्यमंत्री रहे|

1995 में पहली बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर थी| शंकर सिंह वाघेला तब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष थे, इस चुनाव में भाजपा ने पहली बार सभी 182 सीटों पर चुनाव लड़ कर 121 सीटें जीतीं| विधायकों का बहुमत शंकर सिंह वाघेला के साथ था, लेकिन भाजपा के संगठन मंत्री नरेंद्र मोदी नहीं चाहते थे कि वाघेला मुख्यमंत्री बनें| पार्टी में उनकी चलती थी और वाघेला मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, उनकी जगह केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया|

शंकर सिंह वाघेला खार खाए बैठे थे , क्योंकि विधायक दल में बहुमत के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया था| सात महीने बाद ही शंकर सिंह वाघेला भाजपा के 121 में से 105 विधायक अपने साथ ले कर खुजराहो जा बैठे थे, भाजपा आलाकमान को झुकना पड़ा और केशुभाई की जगह समझौते में सुरेश भाई मेहता को मुख्यमंत्री बनाया गया| लेकिन जब शंकर सिंह वाघेला 1996 का लोकसभा चुनाव हार गए , तो मोदी पर उन्हें हरवाने का आरोप लगाते हुए 48 विधायकों को साथ ले कर फिर बगावत कर दी| सुरेश भाई मेहता की सरकार गिरा कर कांग्रेस के समर्थन से खुद मुख्यमंत्री बन गए ,लेकिन एक साल के भीतर उन्हें इस्तीफा दे कर दिलीप पारिख को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा|1998 के चुनाव में भाजपा फिर पूर्ण बहुमत से लौटी और केशुभाई पटेल फिर मुख्यमंत्री बने| शंकर सिंह वाघेला ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया , वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष , मनमोहन सरकार में केन्द्रीय मंत्री और प्रदेश कांग्रेस विधायक दल के नेता भी रहे, लेकिन 2017 में कांग्रेस छोड़ दी , अपनी पार्टी फिर बनाई, फिर उसे भंग किया, फिर एनसीपी में शामिल हुए , फिर एनसीपी छोड़ दी, फिर अपनी पार्टी बनाई|

उधर केशुभाई पटेल की जगह जब भाजपा ने 2002 में नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया, तो केशुभाई पटेल ने भी भाजपा छोड़ कर अपनी पार्टी बनाई, लेकिन विफल हो कर घर लौट आए| इसलिए गुजरात में पार्टियों में बगावत नई बात नहीं है|

कांग्रेस को 2017 में अच्छा मौक़ा मिला था, जब भाजपा को कड़ी टक्कर देते हुए उसे 77 सीटें मिलीं| कांग्रेस को तब नार्थ गुजरात में शंकर सिंह वाघेला की बगावत महंगी पड़ी थी|नॉर्थ गुजरात क्षेत्र में 53 विधानसभा सीटें हैं| इनमें से भाजपा 35 सीटें जीतने कामयाब रही तो कांग्रेस के खाते में सिर्फ 17 सीटें आई थी| जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को 32 और कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं| चुनावों के दौरान ही कांग्रेस पिछली गलती सुधारने के लिए शंकर सिंह वाघेला को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है| शंकर सिंह वाघेला का बेटा भाजपा से कांग्रेस में लौट आया है|

इस बार दोनों ही राजनीतिक दल बागियों की समस्या से जूझ रहे हैं| भाजपा अपने 38 विधायकों का टिकट काटने को चुनाव जीतने की रणनीति बता रही है, लेकिन इतनी बड़ी तादाद में बागियों का चुनाव लड़ना उसे भारी भी पड सकता है| वाघोडिया से छह बार के विधायक मधु श्रीवास्तव का टिकट पार्टी ने काट लिया| नाराज मधु श्रीवास्तव नेभाजपा छोड़ दी है, वह अपने इलाके में प्रभावशाली नेता है, पहली बार वह निर्दलीय चुनाव जीते थे और बाद में नरेंद्र मोदी के कहने पर भाजपा में शामिल हुए थे| इस बार वह भाजपा के बागी के तौर पर चुनाव मैदान में होंगे| इसी तरह भाजपा ने केसरी सिंह का टिकट काटा , तो वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए|

कांग्रेस में भी भारी विद्रोह देखने को मिल रहा है| चुनाव की घोषणा के बाद भी कांग्रेस के विधायक पार्टी छोड़ रहे हैं| कांग्रेस के अब तक 19 विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं, उनमें से  17 बागियों को भाजपा ने टिकट दिया है| जमालपुर-खड़िया सीट से मौजूदा विधायक इमरान खेड़ावाला को टिकट देने को लेकर पार्टी के नाराज कार्यकर्ताओं ने सोमवार को अहमदाबाद में कांग्रेस मुख्यालय पर धावा बोल दिया|वरिष्ठ नेता भरत सिंह सोलंकी के पोस्टर जलाए गए नेम प्लेट तोड़ दी गयी| कार्यकर्ता उन्हें दुबारा टिकट देने के के खिलाफ हैं, जबकि कांग्रेस का कहना है कि इमरान ने कोरोना काल में समाज सेवा का बेहतरीन काम किया था| आम आदमी पार्टी में बागी देखने को मिल रहे हैं| मुख्यमंत्री पद के नाम का ऐलान होने के साथ ही इंद्रनील राजगुरु वापस कांग्रेस में शामिल हो गए, राजगुरु के जाने से आम आदमी पार्टी को एक बड़ा झटका लगा है| ऐसे में सवाल यह है कि क्या कांग्रेस और बीजेपी के लिए बागी सिरदर्द बनेंगे?

 

 

आपकी प्रतिक्रिया