अजय सेतिया / संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार दफ्तर की तथाकथित “कश्मीर रिपोर्ट” ने भारत में बवाल खडा किया है | यह रिपोर्ट 14 जून 2018 को जारी हुई | कश्मीर पर यह पहली “रिपोर्ट” जारी हुई है | “रिपोर्ट” संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयुक्त जीद-राद-अल-हुसैन ने जारी की | अपन बात शुरू करने से पहले बता दें कि जीद-राद-अल-हुसैन जार्डन के डिप्लोमेट हैं | वह कई देशों में जार्डन के राजदूत रह चुके हैं | मिस्र और जार्डन में इस्लाम के कट्टरवाद ने किस तरह जड़ें जमाई यह अलग कहानी है | इस “रिपोर्ट” को अपन उसी बैकग्राउंड में बेहतर समझ सकते हैं | हालांकि जीद-राद-अल-हुसैन का राजघराने से ताल्लुक रखते है | वह राजकुमार हैं | वह तो जानते होंगे राजपरिवार को कट्टरपंथियों से बचाने के लिए कैसे नियम बनाने पड़े थे | पर अपन मूल मुद्दे पर आएं | रिपोर्ट सिर्फ भारत के जम्मू कश्मीर पर नहीं है | यह भारत के साथ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर भी है | दोनों जगह मानवाधिकार हनन की बात कही गई है | पर रिपोर्ट का ज्यादा जोर भारत के जम्मू कश्मीर पर है | वह भी मोदी राज के बाद के हालात को लेकर | खासकर जुलाई 2016 में जब बुरहान वानी मारा गया , उस के बाद | बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद शुरू हुए प्रदर्शनों पर सुरक्षा बलों ने सख्ती बरती थी | तथाकथित रिपोर्ट में पेलेट गन को लेकर खूब लिखा है | जिस पर भारत के विपक्षी दल भी आग बबूला थे | रिपोर्ट में बुरहान वानी को आतंकी नहीं कहा गया | अलबता आर्म्ड ग्रुप का नेता कहा गया है | यानि एक तरह से आतंकवादियों को आज़ादी के लिए सशत्र विद्रोही बताने की कोशिश है |
यह बात तब और पक्की हुई जब कश्मीर का अलग अस्तित्व बताने की कोशिश की गई | साफ़ साफ़ शब्दों में “आज़ाद जम्मू कश्मीर” लिखा गया है | रिपोर्ट में कहा गया- भारत शासित कश्मीर और पाक शासित कश्मीर | आरोप लगाया गया है सुरक्षा बल लाखों लोगों का मानवाधिकारों का हनन कर रहे हैं | यह अब खत्म होना चाहिए | और जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए | आफ्सपा और पीएसए कानूनों का जिक्र आया है | रिपोर्ट में सिविल सोसायटी को सोर्स बताया गया है | यानि वही भारत तोड़ो गैंग जो नार्थ ईस्ट से लेकर कश्मीर तक इन दोनों कानूनों का आलोचक रहा है | रिपोर्ट में 27 साल पहले वाले उस तथाकथित गैंग रेप का भी जिक्र है | जिस में दावा किया गया था कि 23 महिलाओं के साथ गैंग रेप हुआ | यह रिपोर्ट उसी भारत तोड़ों गैंग के इशारे पर बनी है | क्योंकि रिपोर्ट में ही कहा गया है –“ बार बार कहने के बावजूद दोनों ही देशों ने पिछले दो साल से मानवाधिकार दफ्तर को स्थिति जानने की इजाजत नहीं दी |” यानि फर्स्ट हेंड रिपोर्ट नहीं है | रिपोर्ट जारी करते हुए जीद-राद-अल-हुसैन ने कहा –“ भारत की सुरक्षा एजेंसियां सयंम बरते | ख़ास कर अगले हफ्ते सम्भावित प्रदर्शनों के समय |“ इस से साफ़ है कि अगले हफ्ते ईद के बाद आतंकी वारदातें ज्यादा होंगी | आतंकियों के बचाव में प्रदर्शन भी ज्यादा होंगे | जीद-राद-अल-हुसैन का यह वाक्य अंतर्राष्ट्रीय साजिश का भी इशारा है | मारे गए आतंकियों को आतंकी नहीं , अलबता कश्मीर के सामान्य नागरिक बताया गया है | कहा गया –“ जुलाई 2016 से मार्च 2018 तक सुक्षा बलों के हाथों 145 नागरिक मारे गए | जबकि इसी अवधि में आर्म्ड ग्रुपों के हाथों 20 नागरिक मारे गए |” बुहरान वानियों को वह नागरिक ही बता रहे हैं | आतंकियों को भी रिपोर्ट में आर्म्ड ग्रुप बताया गया है | मोदी के लिए यह तो खुशी की बात है कि सुरक्षा बालों से कहीं ज्यादा आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हो गई |
पर यह संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद की रिपोर्ट नहीं है | यह परिषद के आयुक्त की रिपोर्ट है | जिस में मानवाधिकार परिषद से सिफारिश की गई है कि जांच आयोग गठित होना चाहिए | जो कश्मीर में मानवाधिकार हनन की स्वतंत्र जांच करे | यह इस रिपोर्ट से भी ज्यादा बड़े खतरे की घंटी है | अब पता चलेगा कि नरेंद्र मोदी ने चार साल में विदेश दौरे कर के क्या कमाया है | वह दावा करते रहते हैं कि चार साल में भारत का डंका बजा है | दुनिया भारत की मुरीद हो गई है | वह डोनाल्ड ट्रम्प और व्लादमीर पुतिन के कद के हो गए हैं | अब पता चलेगा कि मानवाधिकार के मुस्लिम माईंड सेट वाले कमीश्नर जीद-राद-अल-हुसैन की सिफारिश को खारिज करवा पाते हैं या नहीं | अगर सिफारिश खारिज न हुई | और जांच आयोग गठित हो गया तो मोदी भारत के कटघरे में होंगे | बिलकुल वैसे ही जैसे कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र में ले जा कर नेहरु अब तक कटघरे में हैं | कट्टरपंथी ओवेसी का बयान काबिल-ए-गौर है | उन ने इस रिपोर्ट को मोदी की कूटनीतिक विफलता बताया है | वह इस रिपोर्ट से खुश हैं, पर अभी खुशी का इजहार नहीं किया | ओवेसी ही क्यों भारत के सारे कट्टरपंथी मुसलमान इस रिपोर्ट से खुश हैं | वे फूले नहीं समा रहे | इस से उन की भारत विरोधी जहनियत उजागर हो रही है | जहां सारा भारत कश्मीर के आतंकवाद को कुचलने का हिमायती है | मोदी की इस बात के लिए तारीफ़ होती है कि उन के राज में आतंकी ज्यादा मारे गए | पाकिस्तान से आए आतंकी कश्मीर की सीमा पार नहीं कर पाए | कश्मीर में भले ही मुठभेड़ें ज्यादा हुई , पर भारत के बाकी हिस्सों में शान्ति रही | कहीं एक भी वारदात नहीं हुई | जैसी मनमोहन सिंह के राज में होती थी | यह पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय है | पाकिस्तान का जिक्र चला तो बता दें एक जगह पाक के बारे में जरुर कहा गया –“ पाक के खंडन के बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि वह सीमा पार से आर्म्ड फ़ोर्स को मदद करता है |”
इस तथाकथित रिपोर्ट में पाकिस्तान के बारे में ज्यादा नहीं | पर उस का आज़ाद जम्मू कश्मीर पर एतिहासिक कंट्रोल बताया गया है | गिलगित और बाल्टिस्तान पर भी | और कहा गया है कि पाकिस्तान की फेडरेल अथारटी का गिलगित और बाल्टिस्तान पर पूरा कंट्रोल है | पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी क़ानून के दुरूपयोग का खुलासा है | जिस का इस्तेमाल करते हुए गिलगित और बाल्टिस्तान के सैंकड़ों बाशिंदे जेलों में पड़े हैं | जो भी मानवाधिकारों का सवाल उठाता है उस पर आतंकवाद विरोधी क़ानून लगा दिया जाता है | पर अपनी ज्यादा चिंता पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की नहीं | अपनी चिंता दुनिया भर के मुसलमानों की कश्मीर में दिलचस्पी को लेकर है | वह भले संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार की कमेटी में बैठा हो | या पाकिस्तान में या कश्मीर में या हेदराबाद में | क्या मोदी अपने अंतर्राष्ट्रीय रुतबे के चलते इस गठबंधन का मुकाबला कर पाएंगे | क्या वह जीद-राद-अल-हुसैन की सिफारिश रद्द करवा पाएंगे | क्या भारत के विदेश मंत्रालय का रिपोर्ट को खारिज करना काफी होगा | नहीं, मोदी को लाबिंग करनी पड़ेगी | नहीं तो मानवाधिकार जांच के बहाने कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप महंगा पडेगा | नेहरु वाली गलती फिर हो जाएगी |
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