स्थाई न हों , तो संसद में पाबंदियों जायज

Publsihed: 14.Sep.2020, 21:41

अजय सेतिया / अपन 1992 से संसद की कार्यवाही को कवर करना शुरू किया था | उन दिनों इतनी सुरक्षा नहीं होती थी | संसद परिसर के भीतर जिस जगह इस समय गांधी की मूर्ति लगी है , वहां अपन स्कूटर खड़ा किया करते थे , फिर जब वहां गांधी की मूर्ति के लिए जगह बनाई गई , तो मूर्ति के पीछे जो दीवार दिखाई देती है , उस के पीछे स्कूटर खड़ा करने लगे | उन दिनों पत्रकार भी उसी गेट से आते थे , जिस गेट से सांसद आते थे , मोटे तौर पर पत्रकार उस गेट से आते थे , जिसे संसद पर हमले के बाद से बंद कर दिया गया था , क्योंकि आतंकवादी संसद मार्ग वाले उसी गेट से अंदर घुसे थे | उस के बाद से तो संसद की सुरक्षा का रूप रंग काफी बदला | संसद भवन और संसदीय सौंध के बीच के बीच की सडक बंद कर के संसद परिसर में मिला ली गई | पत्रकारों को कई तरह की पाबंदियों का सामना करना पड़ा |

पर जैसी पाबंदियों का सामना अब कोरोनावायारस काल में भुगतना पड रहा है , वैसी पाबंदियों की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी | बीस साल तक संसद की कार्यवाही को कवर करने वाले पत्रकारों को लांग एंड डीस्टिंगविश केटागिरी का पास मिल जाता है और उन्हें कभी भी सेंट्रल हाल तक जाने की इजाजत होती है | यह व्यवस्था जवाहर लाल नेहरु के समय संसद की जनरल परपस कमेटी ने तय की थी , क्योंकि उस समय के स्वतन्त्रता सेनानी सांसदों का मानना था कि मीडिया लोकतंत्र का सब से बड़ा हिस्सा है और लोकतंत्र में पारदर्शिता के लिए उस की भूमिका को नकारना नहीं चाहिए | कोरोनावायरस काल में पहली बार न सिर्फ लांग एंड डीस्टिंगविश केटागिरी के वरिष्ट पत्रकारों को सेंट्रल हाल में जाने से रोका गया है , बल्कि संसद भवन परिसर में प्रवेश भी प्रतिबंधित कर दिया गया है | इतना ही नहीं इस बार कोरोना के कारण पूर्व सांसदों का प्रवेश भी प्रतिबंधित कर दिया गया है |

कोरोनावायरस की बढती महामारी के चलते इतना प्रतिबंध लगना ही चाहिए था , लेकिन कांग्रेस की आशंका है कि कोरोनावायरस के कारण लगाई गई पाबंदियां कहीं स्थाई न हो जाएं , इस लिए विपक्ष इन पाबंदियों पर आशंकित है | उन की आशंका जायज हो सकती है , लेकिन यह मोदी सरकार की नियत पर बिना वजह का शक पैदा करना भी हो सकता है | अगर मोदी सरकार ऐसा करती है तो उस पर लगाया जाने वाला यह आरोप भी सही साबित हो जाएगा कि सरकार मीडिया की स्वतन्त्रता को कुचलना चाहती है | फिलहाल कोरोनावायारस की भयंकर महामारी में पाबंदियों पर आपत्ति उठाना तो कतई जायज नहीं लगता | खासकर तब जब संसद का सत्र चलाना भी भारी पड रहा हो , सांसदों की सुरक्षा के लिए संसदीय इतिहास में पहली बार एक सदन की बैठक दोनों सदनों के कक्ष में हो रही है | इस लिए सुबह चार घंटे राज्य सभा और शाम को चार घंटे लोकसभा चलनी शुरू हुई है | सदन चलाने के नियम कायदे भी बदलने पड़े हैं |

संसद सत्र से पहले सभी सांसदों , कर्मचारियों और जिन चुनिन्दा पत्रकारों को लाटरी निकाल कर पास दिए गए हैं , उन सभी का कोरोना टेस्ट किया गया , तो 56 लोग कोविड पोजिटिव पाए गए | इन में 25 तो सांसद ही हैं , 17 लोकसभा के और 8 राज्यसभा के | कोरोना पॉजिटिव पाई गईं लोकसभा से बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने ट्वीट किया, 'टेस्‍ट में मुझे कोरोना संक्रमित पाया गया है | मैं हाल ही में संपर्क में आए सभी लोगों से टेस्‍ट कराने की अपील करती हूं | हम कोरोना से लड़ेंगे और जीतेंगे |'

 

मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले दोनों सदनों के कई उम्रदराज सांसदों ने इसपर चिंता जताई थी | उनका कहना था कि सत्र शुरू होने पर गाइडलाइंस के बीच भी हर वक्त परिसर में कम से कम 2,000 लोग मौजूद रहेंगे | आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, राज्यसभा के 240 सांसदों में से 97 सांसद 65 साल से ज्यादा उम्र के है, वहीं 20 ऐसे सांसद हैं, जिनकी उम्र 80 साल के ऊपर है, जिसमें 87 साल के मनमोहन सिंह और 82 साल के एके एंटनी का नाम शामिल है | देश में कोविड महामारी शुरू होने से लेकर मॉनसून सत्र शुरू होने के पहले तक सात केंद्रीय मंत्री और दोनों सदनों को मिलाकर लगभग दो दर्जन सांसद अब तक कोरोनावायरस से संक्रमित हो चुके हैं | यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मंत्री और क्रिकेटर चेतन चौहान और कमला राणा वरुण और लोकसभा में तमिलनाडु से सांसद एच वसंतकुमार की कोरोना से मौत भी हो चुकी है | इस लिए एहतियात में पाबंदियां जायज हैं |

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