केरल ने बना दी केंद्र-राज्य की संवैधानिक लड़ाई

Publsihed: 14.Jan.2020, 14:29

अजय सेतिया / भारत की नागरिकता केंद्र का विषय है , राज्य का नहीं | इसलिए जो राज्य सरकारें या विधानसभाएं नागरिकता संशोधन क़ानून को न मानने के प्रस्ताव पास कर रही हैं , वे क़ानून को नहीं संविधान को चुनौती दे रही हैं | संविधान का अनुच्छेद 256 इस सम्बन्ध में स्पष्ट व्याख्या करता है | इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य सरकारों को संसद से पारित क़ानून का अनुपालन सुनिश्चित करवाना होगा | केंद्र सरकार इस सम्बन्ध में राज्यों को निर्देश भी जारी कर सकती है | इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आर एस सिंह का कहना है कि संसद के अधिकार क्षेत्र वाले क़ानून को न मानना राज्य में संवैधानिक तंत्र का फेल होना है | इसलिए संसद से पारित क़ानून को न मानने वाली राज्य सरकारों को भंग किया जा सकता है | सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ वकील एनकेपी साल्वे का मत है कि क़ानून में संशोधन संविधान सम्मत है |

विधानसभा में प्रस्ताव पास करने के बाद केरल सरकार की ओर से सुप्रीमकोर्ट में दायर याचिका ने घटनाक्रम में नया मोड़ ला दिया है | केरल सरकार ने सोमवार को संविधान के अनुच्छेद 131 के अंतर्गत याचिका दाखिल की है | संविधान के अनुच्छेद 131 में यह प्रावधान है कि अगर केंद्र और राज्यों में किसी विधिक मामले में विवाद होता है तो याचिका सीधे सुप्रीमकोर्ट में दाखिल की जाएगी | वैसे तो गैर एनडीए छह राज्य सरकारें क़ानून को लागू न करने की बात कह चुकी हैं और सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हुई 20 दलों की बैठक में इन सभी राज्यों से अपील की गई है कि वे जनसंख्या रजिस्टर बनाने में भी केंद्र को सहयोग न दें , लेकिन केरल पहला राज्य है जिसने नागरिकता संशोधन क़ानून को चुनौती दी है | केरल सरकार ने केद्र सरकार के विधि एंव न्याय सचिव को पार्टी बनाया है |

सवाल पैदा होगा कि जब सुनवाई शुरू होगी तो उस में केंद्र सरकार की 1950 के नेहरु लियाकत समझौते की दलील कितना काम करेगी | सातवें संविधान संशोधन में कहा गया था कि अगर कोई ऐसा विवाद है जो संविधान लागू होने से पहले की किसी संधि से सम्बन्धित है तो सुप्रीमकोर्ट को सुनवाई का अधिकार नहीं होगा | एक दूसरे के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा से सम्बन्धित नेहरु लियाकत संधि छह दिन की बातचीत के बाद 8 अप्रेल 1950 में हुई थी | जबकि उस से ढाई महीने पहले 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हो चुका था | बिल पर बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अगर पाकिस्तान समझौते का पालन करता और अपने अल्पसंख्यकों को संरक्षण देता तो इस बिल को लाने की जरूरत ही न पडती |

यहाँ उचित रहेगा कि संधि के चार बिन्दुओं को समझ लें , जिस पर खुद नेहरु और पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने दस्तखत किए थे | ये चार प्रावधान थे 1. प्रवासियों को ट्रांजिट के दौरान सुरक्षा दी जाएगी | वे अपनी बची हुई संपत्ति को बेचने के लिए सुरक्षित वापस आ-जा सकते हैं | 2. जिन औरतों का अपहरण किया गया है, उन्हें वापस परिवार के पास भेजा जाएगा | अवैध तरीके से कब्जाई गई अल्पसंख्यकों की संपत्ति उन्हें लौटाई जाएगी | 3. जबरदस्ती धर्म परिवर्तन अवैध होगा, अल्पसंख्यकों को बराबरी और सुरक्षा के अधिकार दिए जाएंगे | दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ किसी भी तरह का कुप्रचार नहीं चलने दिया जाएगा | 4. दोनों देश युद्ध को भड़ाकाने वाले और किसी देश की अखंडता पर सवाल खड़ा करने वाले प्रचार को बढ़ावा नहीं देंगे |

केरल सरकार को विधि विभाग ने अनुच्छेद 256 की सविस्तार लिखित जानकारी दे दी थी , इस के बावजूद केरल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 256 का उलंघन करते हुए विधानसभा से केन्द्रीय क़ानून को लागू न करने का प्रस्ताव पास करवाया | केरल के अलावा उन सभी राज्यों को भी 256 के उल्लंघन पर 356 का डॉ तो सता ही रहा है , इसलिए सुप्रीमकोर्ट में दाखिल याचिका में केरल सरकार ने 256 का जिक्र करते हुए कहा है कि राज्य सरकार को यह क़ानून लागू करने के लिए बाध्य किया जाएगा, जोकि एकतरफा हैं | केरल सरकार ने क़ानून को अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उलंघन भी बताया है | उल्लेखनीय है कि बाकी सारी पांच दर्जन के करीब याचिकाओं में इन तीनों अनुच्छेदों का उलंघन बताया गया है | क्योंकि यह अनुछेदों को लागू करने का विवाद है इसलिए केरल ने इसे राज्य और केंद्र के अधिकार क्षेत्र के साथ जोड़ कर कानूनी विवाद को नया मोड़ दे दिया है |

 

 

 

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