फीफा के शोरगुल में उभर आई “उडन हिमा”

Publsihed: 14.Jul.2018, 00:30

अजय सेतिया / युवाओं में फीफा की धूम मची हुई है | भारत तोड़ो गैंग वाले जेएनयू में तो हर वामपंथी छात्र फीफा की धुन में रंगा है | उन में से शायद किसी को भी इस बात की खबर नहीं थी कि फिनलैंड के टैम्पेयर शहर विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप हो रही है | पर उन में इस बात से उत्साह था कि क्रोएशियाई राष्ट्रपति एक दर्शक बन कर फीफा मैच देखने गई | वह ड्रेसिंग रूम में अपने देश के खिलाड़ियों को मिलने गई और सब को गले लगाया | कोलिंडा ग्रेबर कितारोविक सामान्य फ़ुटबाल फैन की तरफ मैच देखने गई थी | खिलाड़ियों के नंगे बदन से राष्ट्रपति का गले मिलना उन्हें बहुत आकर्षित किए हुए है | उस का वीडियो वे बार बार देख रहे थे |

उधर भारत तोड़ो गैंग की नींद तोड़ते हुए अठारह साल की भारतीय एथलीट हिमा दास ने इतिहास रच दिया है | उडन सिख मिल्खा सिंह के जीवत रहते ही भारत को नई “उडन हिमा” मिल गई | फिनलैंड के टैम्पेयर शहर में आयोजित विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप हो रही है | हिमा ने 51.46 सेकंड में 400 मीटर दौड़ पूरी कर के गोल्ड मेडल जीता है | मिल्खा सिंह ने 1958 के एशियाई खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता था | 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता और  1962 के एशियाई खेलों में भी स्वर्ण पदक | पर मिल्खा सिंह को उडन सिख का खिताब 1960 में मिला था | यह कोई खिताब नहीं था ,अलबत्ता जब मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित को हरा दिया | तब पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने उन्हें उड़न सिख कह कर पुकारा था । तब से उन्हें उडन सिख कहा जाने लगा | मिल्खा सिंह ने ओलंपिक्स खेलो में लगभग 20 पदक अपने नाम किये है । यह अपने आप में ही एक रिकॉर्ड है । कामनवेल्थ खेलो में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले वे पहले भारतीय थे ।

आप पूछेंगे कि अपन ने हिमा की जीत में जेएनयू को क्यों ले आए | वह इस लिए , क्योंकि एक तरफ 18 साल की बच्ची भारत का नाम रौशन कर रही है | तो दूसरी तरफ उस से दुगनी उम्र के वामपंथी छात्र जेएनयू में मुफ्त की रोटियाँ तोड़ रहे हैं | भारत में क्या हो रहा है, भारत के खिलाड़ी क्या कमाल कर रहे हैं | इस में न उन्हें कोई उत्साह है, न दिलचस्पी | वे तो फीफा का फ़ुटबाल मैच देख रहे हैं , जिस में भारत को कुछ मिलना नहीं | जबकि हिमा की जीत का जश्न पूरा देश मना रहा हैं | कुछ मिनटों के भीतर उस की दौड़ का वीडियों वायरल हो गया | वह विश्व स्तर पर ट्रैक स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई है | इससे पहले भारत के किसी महिला या पुरुष खिलाड़ी ने विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड नहीं जीता है | न जूनियर स्टार पर न सीनियर स्तर पर | यह कमाल फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह और पीटी उषा भी नहीं कर पाए थे | इस लिहाज से अंतरराष्ट्रीय ट्रैक पर भारत की यह ऐतिहासिक जीत है | हिमा ने फाईनल 51.46 सेकिंड में जीता |  जबकि सेमीफाइनल 52.10 सेकंड में जीता था | एयरकंडीशन शहरी जीवन जीने वालों से ऐसी अपेक्षा भी नहीं की जा सकती | जब कि सरकारें सारी सुविधाएं शहरी खिलाड़ियों को मुहैया करवाती है | बड़े बड़े स्टेडियम और ट्रेक शहरों में बनते हैं | जबकि 18 साल की हिना  ने बिना किसी शहरी स्टेडियम का लाभ उठाए ही भारत को स्वर्ण पदक दे दिया |
 

हिमा दास असम के नौगाँव जिले के धिंग गांव की रहने वाली हैं | वह एक साधारण किसान परिवार की बेटी है | उस के पिता चावल की खेती करते हैं और वह परिवार के 6 बच्चों में सबसे छोटी हैं | हिमा पहले लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं और एक स्ट्राइकर के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहती थीं | दो साल पहले हिमा का इरादा बदला और उस ने रेसिंग ट्रैक पर कदम रखा |  एथलीट बनने के लिए हिमा को घर से 140 किलोमीटर दूर जा कर रहना पड़ा | हिमा दास ने अप्रैल में हुए कॉमनवेल्थ खेलों की 400 मीटर की स्पर्धा में छठा स्थान हासिल किया था | तब 400 मीटर की दौड़ को पूरा करने के लिए उसे  51.32 सेकंड लगे थे | ठीक इसी तरह मिल्खा सिंह 1956 के मेर्लबोन्न ओलिंपिक खेलों में सफल नहीं हो पाए थे |

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