हिम में सीएम उम्मीन्द्वार बताने की हालत में नहीं भाजपा 

Publsihed: 12.Oct.2017, 23:55

अजय सेतिया / हिमाचल प्रदेश के चुनावों की डुगडुगी बज गई | नौ नवम्बर को चुनाव होगा | गुजरात की डुगडुगी बजनी अभी बाकी है | गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 20 दिसम्बर तक है | तो उसे ग्रेस मिल गई | वैसे उस ग्रेस की जरुरत नहीं थी | बिना कहने कहलाने के ग्रेस मिली भी नहीं होगी | कहाँ  लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने की बात | और कहाँ दो विधानसभाओं के चुनावों का एलान भी एक साथ नहीं | उस दिन चुनाव आयोग ने क्या सोच कर कह दिया था कि देश में एक साथ चुनाव हो सकते हैं | हिमाचल और गुजरात विधानसभाओं के कार्यकाल में तो एक महीने का भी अंतर नहीं | लोकसभा और कई विधानसभाओं का तो तीन-तीन साल का अंतर है | आप गुजरात विधानसभा के 25-30 दिन भी कम करने को तैयार नहीं | आचार सहिंता भी दस-बारह दिन ज्यादा झेलने को तैयार नहीं | और चाहते हैं कि चुनी हुई विधानसभा अपना कार्यकाल तीन साल कम कर ले | इस लिए अपना शुरू से मत है कि इक्कठे चुनाव सम्भव नहीं | फालतू की दिमागी कसरत और जुमलेबाजी है | खैर बात गुरूवार को हुए हिमाचल विधानसभा चुनाव के एलान की | हिमाचल प्रदेश में पिछली बार 4 नवंबर को चुनाव हुआ था | बीस दिसंबर को नतीजा आया था | उत्तरभारत में हिमाचल प्रदेश सब से छोटा राज्य है | विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं |  कांग्रेस पिछली बार वहां 36 सीटें जीती थीं | बीजेपी को  26 सीटें ही मिली थीं | तब बीजेपी के प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे और भाजपा उन्हीं की रहनुमाई में लड़ी थी | कांग्रेस ने वीर भद्र की रहनुमाई में चुनाव लड़ा था | हालांकि आरोपों के घेरे में वीरभद्र को केंद्र सरकार से हटाना पडा था | पर कांग्रेस के पास उन के सिवा कोई चारा ही नहीं था | उन की लोकप्रियता में अभी भी कोई कमी नहीं है | वह 90 साल से ऊपर के हो चुके हैं | इस बार कान्ग्रस ने नई लीडरशिप देना सोचा हुआ था | पर वीर भद्र सिंह ने पिछले महीने धमकी दे कर आलाकमान की बोलती बंद कर दी | अब फिर बाकायदा वीर भद्र की रहनुमाई का एलान हो गया है | वैसे तो वीरभद्र ने कहा था कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे | न ही विधानसभा चुनाव का प्रचार करेंगे | पर अब उन की रहनुमाई का एलान हो गया है | चुनाव की बागडोर उन के हाथ में आ गई है | टिकटों का बंटवारा भी वीरभद्र सिंह ने अपने हाथ में ले लिया है | तो वह चुनाव लड़ेंगे ही | कांग्रेस आलाकमान को मजबूरी में उन की सारी शर्तें माननी पडी हैं | अब यह तय मान कर चलिए कि वीरभद्र की पत्नी और बेटा दोनों को टिकट मिलेगा | वीरभद्र की पत्नी कुल्लू  से लोकसभा सांसद रह चुकी हैं | बेटा पहली बार चुनाव मैदान में कूदेगा | वीरभद्र चुनावी राजनीति के घाघ हैं | तभी तो वह एक आध नहीं | अलबत्ता छह बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं | इतनी ज्यादा बार मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड शायद ही किसी का हो | बीजेपी ने प्रेम कुमार धूमल की अगुवाई में चुनाव लड़ा था |  कांग्रेस ने वीरभद्र को फिर से नेता मान लिया है, तो वहां दुविधा खत्म | पर भले ही भाजपा का पलड़ा शुरू से ही भारी है | कोई नहीं कहता कि कांग्रेस जीतेगी | पर नेता को लेकर भाजपा की दुविधा इस बार पहले से ज्यादा है | भाजपा  पिछली बार सत्ता में थी | प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे | तो चुनाव उन्हीं की रहनुमाई में हो रहे थे | वही नेता थे | मुख्यमंत्री के नाते टिकटों के बंटवारे में भी उन की चली थी | टिकट बंटवारे के समय मुख्यमंत्री के नाते वह  संसदीय बोर्ड में बैठे थे | पर इस बार भाजपा दुविधा में है | इस बीच उस समय के छोटे कद वाले जेपी नड्डा का कद बढ़ चुका है | तब वह धूमल सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे | अब देश के स्वास्थ्य मंत्री हैं | वह भी केबिनेट स्तर के मंत्री | केंद्र की राजनीति में नड्डा से काफी पहले सक्रिय मंत्रियों को केबिनेट का दर्जा बाद में मिला | पर नड्डा को पहले मिल गया था | नड्डा से कई सीनियर तो अभी भी राज्य मंत्री बने हुए हैं | अंदरुनी जानकारों का कहना है कि रणनीति के तहत नड्डा का कद बढाया गया है | पिछली बार धूमल टिकट बंटवारे के समय संसदीय बोर्ड में बैठे थे | तो नड्डा इस बार संसदीय बोर्ड के बाकायदा सदस्य हैं |  पर भाजपा के सामने दुविधा है | नड्डा ब्राह्मण है और धूमल ठाकुर | हिमाचल में ठाकुर वोट ब्राह्मणों से दुगने हैं | कांग्रेस ने ठाकुर वीरभद्र को इसी रणनीति के तहत नेतृत्व सौंपा है | अब भाजपा के सामने दुविधा है कि किसी का नेतृत्व घोषित करे या न करे | अपन को लगता है भाजपा बिना नेतृत्व ही चुनाव लडेगी | 

 

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