कांट्रेक्ट फार्मिंग कृषि आधारित उद्धोगों की बर्बादी

Publsihed: 12.Sep.2020, 18:36

अजय सेतिया / 23 मार्च 2020 को हुए बजट सत्र के सत्रावसान के बाद केंद्र सरकार ने कृषि से जुड़े तीन अध्यादेश जारी किए थे , इन में एक कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग सम्बन्धी अध्यादेश को लेकर सब से ज्यादा विवाद है | यह अध्यादेश अगर 14 सितम्बर से शुरू हो रहे मानसून सत्र में बाकायदा क़ानून का रूप ले लेता है तो भारत में कृषि और कृषकों की परम्परागत स्थिति बदल जाएगी | इस अध्यादेश पर किसानों और विपक्षी दलों ने कई तरह के सवाल खड़े किए हैं | देश भर में जगह जगह प्रदर्शन भी हुए हैं , जिन्हें मानसून सत्र के दौरान भी बड़े पैमाने पर दोहराया जाएगा | इस अध्यादेश का मकसद बड़ी औद्धोगिक इकाईयों के लिए कृषि के क्षेत्र में प्रवेश करने का रास्ता खोलना है |

किसान बड़ी औद्धोगिक कम्पनियों या व्यापारियों से एक मुश्त पैसा ले कर अन्य कार्यों में संलिप्त हो सकते हैं , वैसे अभी भी जिन कृषक परिवारों के बच्चे पढ़ लिख कर नौकरियों करने शहरों में चले गए हैं , वे परिवार एकमुश्त राशि के बदले अपनी जमीनें अन्य परिवारों को कृषि के लिए दे देते है | यानी यह व्यवस्था गाँवों में पहले से लागू है | लेकिन गाँव के ही भूमि रहित किसान को कमाने के लिए जमीन दे कर उस की रोजी रोटी का भी इंतजाम करना और बड़ी औद्धोगिक इकाईयों को जमीन देने में जमीन आसमान का फर्क है , यह मजबूर भूमि रहित या कम भूमि वाले किसानों के पेट पर लात मारने वाली बात होगी , जो भारतीय संस्कृति के खिलाफ है | इससे कॉरपोरेट खेती को बढ़ावा मिलेगा और उन्हीं को लाभ मिलेगा, किसानों और कृषि मजदूरों को नहीं |

उत्तर भारत में किसानों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन कर के विरोध जताया है , क्योंकि उन्हें अपनी जमीन हमेशा के लिए छीन लिए जाने का खतरा दिखाई दे रहा है | उन की आशंका है कि अध्यादेश उपजाऊ क्षेत्रो के ब्लॉक को हथियाने का माध्यम है  ,जिसमे सिर्फ गेंहू चावल दालें तिलहन ही नहीं है | चाय रबर केसर मसाले सब्जियां फल मछलियां मुर्गियां बतखें भेड़ बकरी सुअर ,गाय भैंस याक मिठूँन,सब समाहित  हैं | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल की ओर से आयोजित कार्यक्रम “बिल्डिंग ए बेटर फ्यूचर” में अमेरिकी कंपनियों को भारत में आने और निवेश करने का न्योता देने से किसानों की आशंका बढ़ गई है कि उन की जमीन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पास चली जाएगी | प्रधानमंत्री ने वहां कहा था कि सरकार के कृषि सुधारों से व्यापार में आसानी होगी और घोषणा की कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग "2025 तक आधा ट्रिलियन डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है"|

कृषि जमीन उद्धोगपतियों और बड़ी कम्पनियों के हाथ में जाते ही देश के छोटे मैकेनिक दुकानदार , व्यापारी ,फ़ूड प्रोसेसिंग इकाइया , जैसे सहकारिता डेयरियां , खाद बीज की दुकान , मांस मछली कीं दुकानें , नावे, पोल्ट्री फार्म , छोटे भेड़ बकरी पालक और उनसे संबंधित सारी एग्रो इकोनॉमी ध्वस्त हो जाएगी | खेती की उत्पादक व मार्केटिंग कम्पनियां एक ही होंगी और देश की इस परम्परागत कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत और आधुनिक बनाने के लिए पिछले 70 वर्षों के प्रयास व्यर्थ हो जाएंगे , क्योंकि कृषि और किसान से जुड़े अन्य उद्धोग धंधे और दूकानदारी बर्बाद हो जाएगी | जैसे अभी किसान फर्टिलाइजर बीज व कीटनाशकों,  ट्रेक्टर डीजल के लिए देश की बड़ी कम्पनियों पर निर्भर है  ,उसी तरह देश की कपास, ऊन , दालें , मसाले , खाध तेल, लकड़ी, चमड़े ,मांस-मुर्गी , अंडे , मछली,  अनाज आटे मैदे सब्जियां फलो के व्यापार पर बहु राष्ट्रीय कम्पनियों का कब्जा हो जाएगा |

लीज के नाम पर किसान को मोटी रकम मिलेगी जिसे वह कुछ समय मे ही अपनी सामाजिक खर्चो में बर्बाद कर इन्ही कम्पनियों का दिहाड़ी मजदूर हो जाएगा | इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह है कि महानगरों और शहरों के आस पास का किसान अपनी जमीन बेचकर आज मजदूरी कर रहा है | यहाँ यह याद दिलाना भी जरूरी है 1990 -95 में जब इसी तरह का डंकल प्रस्ताव आया था तो राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच , भारतीय किसान संघ और जार्ज फर्नाडिस ने देश भर बड़ा आन्दोलन खड़ा किया था | अब 25 साल बाद डंकल प्रस्ताव नए रूप में फिर से हमारे सामने हैं | 

 

 

 

 

 

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