लोकतंत्र में अंगद का पाँव किसी का नहीं होता

Publsihed: 11.Sep.2018, 21:23

अजय सेतिया भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी में बड़ी हुंकार भरी है कि भाजपा 50 साल राज करेगी | यह उन का आत्मविश्वास है, इसलिए अपन इसे डींग मारना नहीं कह सकते | आत्मविश्वास का कारण अमित शाह ने मंगलवार को जयपुर में जा कर बताया | उन ने कहा-“अखलाख कांड और अवॉर्ड वापसी के बाद भी हम जीते थे | कुछ भी हो जाए हम ही जीतेंगे |” कुछ भी हो जाए हम जीतेंगे वाली भाषा विपक्ष के मन में संशय पैदा करती है | तभी वोटिंग मशीनों पर सवाल खडा होता है | लोकतंत्र में कोई यह कैसे कह सकता है कि कुछ भी हो जाए, हम जीतेंगे | लोकतंत्र में जीत हार राजनीतिक दल तय नहीं करते, न उस के अध्यक्ष तय करते हैं | लोकतंत्र में शासन व्यवस्था चलाने की जिम्मेदारी जनता खुद तय करती है | इस लिए जनता को यह बताना कि कुछ भी हो जाए, हम जीतेंगे, यह जनता को चुनौती देना है | पर अमित शाह को आत्मविश्वास में रहने का पूरा हक है |

अपन अमित शाह के आत्मविश्वास पर कोई संशय पैदा करते हैं | न अपन को किसी के आत्मविश्वास को चुनौती देने का कोई हक है | जनता समझेगी तो चुनौती देगी | पर सावधान करना जरूरी है कि ऐसा ही आत्मविश्वाश 2004 में वाजपेयी की टीम को भी था | अपन ऐसे आत्मविश्वास की कोई वजह नहीं समझ पा रहे | जो पार्टी यह तक समझाने में कामयाब नहीं हुई हो कि राफेल डील में एचएएल की जगह अनिल अम्बानी को एयरक्राफ्ट बनाने का कांट्रेक्ट नहीं मिला है | अलबत्ता 36 एयरक्राफ्ट सीधे लिए जाने है, भारत में बनने ही नहीं | एचएएल तो तब बीच में थी जब भारत 126 एयरक्राफ्ट का सौदा कर रहा था | जिस में 18 फ्रांस से बने बनाए आने थे और बाकी 108 एचएएल से बनवाने का प्रस्ताव था | जब फ्रांस की कम्पनी एचएएल से बनाने वाले एयरक्राफ्ट की कोई गारंटी देने को तैयार नहीं हुई , तो सौदा ही नहीं हुआ | जब डील हुई ही नहीं , वह सिर्फ प्रस्ताव था , अब जब भारत में एयरक्राफ्ट बनने ही नहीं , तो बवाल किस बात का |

पर बड़े बड़े दिमागों वाली पार्टी इस छोटी सी बात पर मात खा रही है | राहुल गांधी के बारे में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कई लोगों की उम्र बढ़ती है , लेकिन उस अनुपात में मानसिक विकास नहीं होता | मानसिक विकास हो न हो , राहुल गांधी ने करोड़ों भारत वासियों के दिमाग में राफेल डील पर संशय खडा कर दिया है | इस में कोई शक नहीं कि भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा अभी भी भारी है | राहुल गांधी की कांग्रेस अभी कहीं नहीं ठहरती | वह राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक , महाराष्ट्र के भरोसे ज्यादा से ज्यादा अपनी सीटें डबल करने की सोच सकती है | यानि 44 से बढ़ कर 88 हो जाएँगी | पर मोदी सरकार की कितनी भी साख गिर जाए भाजपा कांग्रेस से ढाई गुना तो रहेगी ही | कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा कोई देवेगौडा ढूंढ कर देश पर लाद सकती है | जिस का खामियाजा 1996 से 1998 की तरह देश को भुगतना पडेगा | इस लिए देश तीसरे मोर्चे के लिए कतई तैयार नहीं | अपन को लगता है कि कांग्रेस की बुरी हालत को देख कर देश की जनता बदलाव के बारे में सोचेगी ही नहीं |

क्या यही अमित शाह के आत्मविश्वास की वजह है | तो अपन को यह बताने में कोई गुनाह नहीं लगता कि 2004 में भी वाजपेयी का कोई विकल्प नहीं दिखता था | वाजपेयी की टीम उस समय शाईनिंग इंडिया ने घोड़े पर सवार थी | वाजपेयी के सारथी प्रमोद महाजन इतने ही आत्मविश्वास में थे, जितने आज मोदी के सारथी अमित शाह हैं | पर अपन को अमित शाह की राजनीतिक टीम की रणनीति पर शक है | जो टीम जनता को यह नहीं समझा पाई कि पेट्रोलियम पदार्थों पर 11 बार टेक्स क्यों बढाया गया | वह चुनाव में मोदी सरकार की उपलब्धियां क्या बताएगी | यह समझाना कितनी आसान सी बात थी कि बढी हुई कीमतें पेट्रोलियम पदार्थों का पुराना कर्ज उतारने के लिए है | जो कांग्रेस सरकार अपने समय में खरीदे गए कच्चे तेल का बिल क्रेडिट बांड के रूप में छोड़ गई थी | जो टीम जनता को यह नहीं बता पाई कि पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी में लाने का विरोध किस किस मुख्यमंत्री ने किया था , वह चुनाव की वैतरणी कैसे पार करवाएगी | विपक्ष ने जनता के मन में झूठी-सच्ची कई संशाएं पैदा की हैं | वाजपेयी की लोकप्रियता 2004 में भी उतनी ही थी | पर जैसी झूठी-सच्ची संशाएं अब पैदा हो रही हैं, वैसी ही 2004 में भी पैदा की गई थी | लोकतंत्र में किसी का पाँव अगंद का पाँव नहीं होता | जनता जब अपने पर आती है, तो बड़े बड़े उखड़ जाते हैं |

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