सांसद बेचारे क्या सदन चलाएंगे

Publsihed: 11.Jul.2018, 16:27

अजय सेतिया / संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई से शुरू हो रहा है | यह इस लोकसभा का आख़िरी मानसून सत्र होगा | कुछ लोग तो यह भी मानकर चल रहे हैं कि इस लोकसभा का आख़िरी सत्र होगा | ऐसा मानने वालों की थ्योरी है कि दिसम्बर में चार राज्यों के साथ ही लोकसभा के चुनाव हो जाएंगे | वे लोग मोदी के राजस्थान दौरे के बाद साथ चुनाव की संभावनाए देख रहे हैं | मोदी ने अपने विदेश दौरे बंद कर के देश में दौरे बढ़ा दिए हैं | चुनाव आयोग और विधि आयोग साथ साथ चुनाव की सम्भावनाएं भी टटोल रहे हैं | हालांकि बैठक बुला कर विधि आयोग ने अपनी किरकिरी कराई | विधि आयोग को इस से क्या लेना देना | उस का काम सरकार को सिफारिशें देना है कि कौन कौन से कानूनों में बदलाव करना होगा | किस किस क़ानून में कहाँ कहाँ बदलाव करना होगा | बाकी काम सरकार और संसद का है | चुनाव आयोग को भी संसद के बनाए क़ानून के मुताबिक़ चुनाव करवाने होंगे | वह अपने आप कुछ नहीं कर सकता |

अपन को न पहले इस थ्योरी में दम लगता था, न कर्नाटक के बाद लगता है | न साथ साथ चुनाव की कोई सम्भावना है, न समय पूर्व लोकसभा चुनाव की कोई सम्भावना है | अपनी थ्योरी दूसरी है | अपना मानना है कि मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ , राजस्थान विधानसभाएं नवम्बर के आखिर में भंग हो जाएँगी | मिजोरम का कार्यकाल भी दिसम्बर में खत्म हो जाएगा ,जहां कांग्रेस की सरकार है | इन चारों विधानसभाओं का चुनाव अप्रेल में लोकसभा चुनावों के साथ होगा | अरुणांचल, सिक्किम, उड़ीसा, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश का चुनाव वैसे भी लोकसभा के साथ ही होता है | भाजपा चाहे तो हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं को भी भंग करवा कर अप्रेल में चुनाव करवा ले | जम्मू कश्मीर विधानसभा इस समय निलम्बित है | इस लिए यह तो हो सकता है कि अपेल में इन 12 विधानसभाओं का चुनाव लोकसभा के साथ हो | ऐसा हो, या वैसा हो मोदी सरकार का यह आख़िरी मानसून सत्र है |

हाँ , इसी बीच मानसून सत्र के बाद सुप्रीमकोर्ट ने अयोध्या में मंदिर के हक में फैसला दे दिया | या जम्मू कश्मीर के अलग अस्तित्व वाली 35 ए को निरस्त कर दिया | तो मोदी “मंदिर” और “370” के नाम पर दिसम्बर में चार राज्यों के साथ लोकसभा चुनाव करवा सकते हैं | दिसम्बर में लोकसभा चुनाव होते हैं , तो यह वैसे ही आख़िरी सत्र है | यह आख़िरी सत्र हो या इस के बाद शीत कालीन आख़िरी सत्र हो , संसद में अब हंगामों के सिवा कुछ नहीं होना | विपक्ष अब किसी न किसी बहाने संसद चलने नहीं देगा | यह बात सुमित्रा महाजन भी जानती हैं और वेंकैया नायडू भी जानते हैं | अब सरकार कुछ बिल पास करवाना चाहती है, तो जिम्मेदारी इन दोनों पर आती है | वैसे संसद चले या न चले, यह सांसद तय नहीं करते | इसे तय करते हैं राजनीतिक दलों के बड़े नेता । जैसे हैदराबाद में बैठे चंद्रबाबू नायडू तय करेंगे या कोलकाता में बैठी ममता बनर्जी तय करेंगी, या मुम्बई में बैठे उद्धव ठाकरे या फिर 10 जनपथ में बैठी सोनिया गांधी।

दलबदल विरोधी कानून के कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी है। दलबदल विरोधी कानून से सांसदों विधायकों की खरीद फरोख्त रूक गई है | पर सांसद पंगु हो गए हैं |  संसद की प्रक्रिया और सांसदों की लोकतांत्रिक भूमिका बहुत सिकुड़ गई है। सांसद कितने ही महत्व के मुद्दे उठाना चाहे | भले ही वह अपने चुनावी हल्के की कोई ख़ास समस्या उठाना चाहता हो |  वह तब तक नहीं उठा सकता, जब तक उस का नेता संसद चलने देने की हरी झंडी न दे । यह बात स्पीकर सुमित्रा महाजन को भी पता है और वेंकैया नायडू को भी | फिर भी लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा के सभापति अपने प्रयासों में लगे रहते हैं। वे हर सत्र से पहले सदन में दलों के नेताओ की बैठक बुलाते हैं। पर इस बार लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने लोकसभा के सभी सांसदों को व्यक्तिगत चिठ्ठी लिखी है | चिठ्ठी में स्पीकर ने सांसदों से सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने में सहयोग मांगा है। हालांकि उन बेचारों के हाथ में कुछ होता नहीं | अपन ने संसद की कार्यवाही हंगामें में स्थगित होने पर की सांसदों को अपने ही नेताओं पर कुढ़ते देखा है | पर वे कुढने के सिवा कुछ कर नहीं सकते |

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