मोदी के बाद कौन का नया शिगूफा

Publsihed: 11.Mar.2022, 18:50

अजय सेतिया / जो लोग अभी तक गलतफहमी में थे , उन्होंने भी पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद मान लिया है कि भाजपा अब देश की बड़ी ताकत है | लेकिन उन्हें अब आम आदमी पार्टी से उम्मींद जगने लगी है | उन्होंने यह भी कहना लिखना शुरू कर दिया है कि यह चुनाव भाजपा नहीं , आम आदमी पार्टी ने जीता है | भाजपा ने तो सिर्फ अपनी सरकारें बचाई हैं | भाजपा की सीटें घटी है , लेकिन आम आदमी पार्टी ने पंजाब में दिल्ली की तरह झाडू फेर कर खुद को भविष्य की राजनीति की धुरी बना लिया है | कुछ महीने पहले उन्हें तृणमूल कांग्रेस में उम्मींद दिखने लगी थी | तब वे ममता बेनर्जी को विपक्ष की राजनीति का केंद्र बिन्दु बना रहे थे | ये वही लोग हैं , जिन्हें पांच महीने पहले चरनजीत सिंह चन्नी का पंजाब में मुख्यमंत्री बनना कांग्रेस के तुरुप का पत्ता लगने लगा था | अब उसी कांग्रेस और चरणजीत सिंह चन्नी को हराने वाली आम आदमी पार्टी उन्हें आशा की किरन दिखाई देने लगी है | केजरीवाल विपक्ष की राजनीति के केंद्रबिंदू दिखाई देने लगे हैं | कुछ साल पहले उन्हें प्रियंका गांधी कांग्रेस के तुरुप का पत्ता दिखने लगा था | क्योंकि उन्हें प्रियंका की शक्ल इंदिरा गांधी जैसी दिखती थी | मैं उन लोगों की बात कर रहा हूँ , जिन्हें हिंदुत्व और भारतीय जनता पार्टी से नफरत है | वे हर उस शख्स में उम्मींद देखते हैं , जो भाजपा को हरा सके |

जो लोग एक महीना पहले कहते थे कि पांच राज्यों के चुनाव 2024 सेमीफाईनल हैं | अब वही कहने लगे हैं कि किसी एक चुनाव का दूसरे चुनाव पर कोई असर नहीं होता | अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए वे 2003 की याद दिलाते हैं | जब भाजपा ने राजस्थान , मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव जीते थे | इसी लिए अटल-आडवानी ने 2004 के लोकसभा चुनाव वक्त से पहले करवा दिए थे | लेकिन लोकसभा चुनावों के नतीजे उल्ट निकले | वे तर्क देने लगे हैं कि विधानसभा चुनावों की अपनी तासीर होती है , और लोकसभा चुनाव की अपनी तासीर | दूसरा उदाहरण भी देते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनावों में बुरी तरफ शिकस्त खाने के बाद आम आदमी पार्टी कुछ महीने बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव जीत गई थी | 2019 के बाद भी हुआ | फिर वे 2018 का तीसरा उदाहरण देते हैं , जब कांग्रेस मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान में जीत गई थी , लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी | इन्हीं तीनों तर्कों के बाद वे खुद असहज हो जाते हैं , क्योंकि वे जानते हैं कि 2014 के बाद राजनीति बदल गई है | देश की जनता विधानसभाओं में भाजपा को प्रादेशिक नेतृत्व और नीतियों के कारण नहीं , राष्ट्रीय नेतृत्व और नीतियों के कारण जीता रही है |

अब भाजपा का लोकसभा में पलड़ा भारी है , इस लिए प्रदेशों में पलड़ा भारी है | वे यह भी भूल जाते हैं कि 2004 में भाजपा क्यों हारी थी और यूपीए की सरकार क्यों बनी थी | वह इस लिए हुआ था क्योंकि उस समय कांग्रेस की कुछ हैसियत थी | और उस ने गठबंधन की राजनीति का रास्ता खोला था | आज न उस की कोई राजनीतिक हैसियत बची है , न कोई क्षेत्रीय दल उस से गठबंधन करना चाहता है | सच यह कि भाजपा को हारता हुआ देखने वालों ने  2024 की उम्मींद छोड़ना शुरू कर दिया है | उन्होंने कहना शुरू दिया है कि योगी मोदी के लिए चुनौती बन कर खड़े हो जाएंगे | ये वही लोग हैं , जिन्होंने वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में उन के बाद कौन की मुहीम चलाई थी | वे आडवानी के बजाए जसवंत सिंह को प्रोजेक्ट कर रहे थे | उन का मकसद आडवानी और जसवंत में राजनेतिक उतराधिकारी की लड़ाई शुरू करवाना था | दूसरा मकसद यह था कि वाजपेयी आडवानी में दरार पैदा हो | अब उन्हीं ताकतों ने भाजपा नेतृत्व में एक दूसरे को शक की निगाह से देखने के बीज बौने शुरू कर दिए हैं | योगी आदित्यनाथ की तारीफ़ में कसीदे पढ़ कर उन्हें मोदी का विकल्प बनाने की मुहीम शुरू हो चुकी है | उन्होंने प्रचार करना शुरू कर दिया है कि नरेंद्र मोदी के बाद दूसरे नेता के तौर पर योगी के ईर्दगिर्द गोलबंदी शुरू होगी | वे अमित शाह को आडवानी की जगह रख रहे हैं और योगी को जसवंत सिंह की जगह | लेकिन वे नहीं जानते कि फैसला जनता करती है , मोदी को भी जनता ने नेता बनाया था |

 

 

 

 

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