केदारनाथ आपदा राहत घोटाले की सीबीआई जांच क्यों नहीं

Publsihed: 10.Sep.2017, 19:28

उत्तराखंड के केदारनाथ आपदा घोटाले की परतें लगातार खुल रहीं हैं ,लेकिन कोई भी सरकार सीबीआई जांच करवाने को तैयार नहीं हो रही | 2013 में आई भयानक आपदा से गढ़वाल के रुद्रप्रयाग,चमोली, उत्तरकाशी जिलों और कुमाऊँ के पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में काफी बड़ा नुकसान हुआ था। केंद्र सरकार ने 9171.70 करोड़ रूपए की राहत भेजी थी , दुनिया भर की संस्थाओं से भी हजारों करोड़ की राहत आई , जिन में एशियन डिवेलपमेंट बैंक और वर्ल्ड बैंक ने भी राहत भेजी थी | इस राहत कोष में से हजारों करोड़ रूपए के घोटाले सामने आ चुके हैं |

अब 300 करोड़ रूपए का नया घोटाला सामने आया है,तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सख्त कार्रवाई करते हुए विजिलेंस जांच करने के आदेश जारी कर दिए हैं | ऐसा माना जा रहा है कि जांच अगर सही ढंग से चलती रही तो इसमें कई और बड़े खुलासे भी हो सकते हैं | इस दौरान कई अधिकारियों के नाम सामने आने के भी कयास लगाये जा रहे हैं |

इस से पहले जब दिसम्बर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी उत्तराखंड रैली में केदारनाथ यात्रा के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था , तो 2015 में अफसरों के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने में सफल रहे मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एम्.एस चौहान की अध्यक्षता में न्यायिक जांच के आदेश दिए थे | लेकिन उस जांच का क्या हुआ,किसी को जानकारी नहीं | अब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विजिलेंस जांच करने के आदेश दी हैं | जब कि केदारनाथ आपदा वक्त के ज्यादातर अफसर रिटायर हो चुके हैं | जो अभी भी सेवा में हैं, वे काफी जुगाडू माने जाते हैं, जो कि जांचों की आँखों में धुल झोंकने में एक्सपर्ट हैं |

2014 में आरटीआई के जरिये खुलासा हुआ था कि केंद्र से भेजे गए 9171.70 करोड़ रूपए में से 1509 करोड़ रूपए का कुछ अपा पता नहीं चल रहा | इस का आज तक खुलासा नहीं हुआ है कि वह उस समय की सत्ताधारी पार्टी ने खा लिए या अधिकारियों ने रास्ते से गायब कर दिए या दोनों ने मिल कर खा लिए थे |

2015 में ही आरटीआई की एक अन्य याचिका में सामने आया कि आपदा के दौरान उफनती नदियों के दौरान मिली राहत की गंगा में जम कर डुबकियां मारीं | तब एक सूचना आयुक्त ने राज्य सरकार सिफारिश की थी कि घोटाले की सीबीआई से जांच करवाई जाए, लेकिन तब के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अफसरों के घोटाले पर पर्दा डालने के लिए 31 मई 2015 को तत्कालीन मुख्यसचिव एन. रविशंकर को जांच सौंप दी थी , वह 31 जुलाई 2015 को रिटायर होने वाले थे |

एन.रविशंकर ने हरीश रावत और भ्रष्ट अफसरों के साथ सौदा कर लिया था , जिस के अंतर्गत एन.रविशंकर को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया जाना था | एन रविशंकर ने बिना गहराई से जांच किए तुरत फुरुत सब अफसरों को पाक-साफ़ करार दे दिया, एन.रविशंकर ने आधा लीटर दूध के 194 रूपए के बिल को भी जायज ठहरा दिया | जब 3000 यात्री मारे गए थे, हजारों तीर्थ यात्री एक-एक बूँद पानी के लिए तरस रहे थे, तब उत्तराखंड के आईएएस अफसर रुद्रप्रयाग में मिनरल वाटर की बोतलों से नहा रहे थे | वे पता नहीं कहाँ 7000 रूपए के कमरे में ठहर रहे थे, उन्होंने प्रतिदिन के हिसाब से 7000 रूपए कमरे का बिल वसूल किया है, जब कि आपदा प्रभावित किसी भी जिले में फाईव स्टार होटल ही नहीं है | दूस्र्ता सवाल यह है कि इन अफसरों को इतने महंगे होटल में ठहरने की इजाजत दी थी |

एन.रविशंकर रिटायर होने के बाद मुख्य सूचना अधिकारी बनाना चाहते थे, इस लिए उन्होंने सूचना के अधिकार के जरिए मिली भ्रष्टाचार की जानकारी पर पर्दा दाल कर भ्रष्टाचार को उचित ठहराने का फतवा जारी कर दिया, यह ब्यूरोक्रेसी के गिरोह को अजागर करने का उदाहरण है, जिस में हर ब्यूरोक्रेट दुसरे ब्यूरोक्रेट का बचाव करता है | यह नेता और अफसरों की मिलीभ्क्त को भी उजागर करता है , जो हरीश रावत अफसरों को बछाने में लगे हुए थे | लेकिन विपक्ष के तत्कालीन नेता अजय भट्ट ने मुख्यमंत्री हरीश रावत को दो टूक कह दिया था कि एन. रविशंकर को मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर किसी भी हालत में कबूल नहीं किया जा सकता | तब हरीश रावत ने एन.रविशंकर को इस्तेमाल कर के भुला देना ही उचित समझा , नतीजतन करीब एक साल तक उत्तराखंड को मुख्य सूचना आयुक्त नहीं मिला था |

बाद में हरीश रावत ने भ्रष्टाचार के लिए प्रदेश में नाम कमाने वाले एक अन्य मुख्यसचिव को मुख्य सूचना आयुक्त बनाने की जिद्द की, लेकिन अजय भट्ट ने उसे भी नाकाम बना दिया | हरीश रावत सूचना आयोग को पंगु संस्था बनाने की आखिर तक कोशिश करते रहे, उन की इसी जिद्द के कारण दिसम्बर 2014 से राज्य में एक भी सूचना आयुक्त नियुक्त नहीं किया जा सका | जबकि इस दौरान तीन पद खाली हो चुके हैं | जहां सारे देश में सूचना आयोग अफसरों के भ्रष्टाचार को उजागर करने में कामयाब रहा है, वहीं उत्तराखंड की भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी अपने राजनीतिक आकाओं के माध्यम से सूचना आयोग को रिटायर्ड आईएएस अफसरों का अड्डा बनाने में लगी हुई है | ज्ञातव्य है कि जिन दो सूचना आयुक्तों ने राज्य के अफसरों का भष्टाचार उजागर किया, वे दोनों गैर आईएएस थे |

जहां केदारनाथ आपदा कोष के भ्रष्टाचार का मामला है , वह राज्य के अधिकारियों का सर्वाधिक अमानवीय चेहरा है , जो बेनकाब हो चुका है, लेकिन सरकार में अपने जुगाड़ और फाईलों पर काबिज होने के कारण निष्पक्ष जांच से बचे हुए हैं | वे मंत्रियों तक पर नियम कायदों की ब्लैकमेलिंग कर के दबाव बनाते हैं और लोकतंत्र को अपनी मुठ्ठी में कैद करने में अब तक कामयाब रहे हैं | अब सोशल मीडिया पर भी सीबीआई जांच की मांग को लेकर कवायद तेज हो चुकी है | जनता ही नहीं विपक्ष भी केदारनाथ जांच के मुद्दे पर सरकार के साथ एकजुट नजर आ रही है। विपक्ष की तरफ से भी केदारनाथ पुनर्निमाण के तहत हुए घोटालों की जांच कराने के फैसले का स्वागत किया गया है।

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