कांग्रेस फिर शाहबानों मानसिकता से ग्रस्त

Publsihed: 10.Aug.2018, 20:12

अजय सेतिया / अपन हमेशा से कहते रहे हैं कि संसद बहुमत से नहीं चलती | यह बात मानसून सत्र के आख़िरी दिन 10 अगस्त को फिर साबित हुई | एक दिन पहले ही राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव जीत कर भाजपा उत्साहित थी | चौबीस घंटे बाद ही विपक्ष ने उसी राज्यसभा में सरकार को दिन में तारे दिखा दिए | सरकार शुक्रवार को भी कई बिल पास करवाना चाहती थी | शुक्रवार के दिन सरकारी कामकाज की परम्परा नहीं | लोकसभा में प्राईवेट मेंबर बिल और राज्यसभा में प्राईवेट मेंबर प्रस्तावों पर बहस होती है | सत्र के आख़िरी दिन का जरुर कभी कभी अपवाद रहता है | पर यह तभी सम्भव होता है जब विपक्ष सहमत हो | सरकार मनमानी से सदन की कार्यवाही नहीं चला सकती | यह पता होने बावजूद सरकार ने आख़िरी दिन के एजेंडे में ट्रिपल तलाक का बिल रख दिया | हालांकि 2017 के शीत सत्र में यह बिल लोकसभा में पास हो गया था | प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की सहमति से पास हुआ था | कांग्रेस का इरादा राज्यसभा में अडंगा डालने का था | यह बात शुकवार सुबह संसद भवन में प्रदर्शन के दौरान सोनिया गांधी ने साफ़ कर दी थी |

सरकार ने भी दिसम्बर 2017 के बाद मुसलमानों की कुछ बातें मानीं थी | लोकसभा में पास बिल में तीन संशोधन कर दिए थे | गुरूवार को ही केबिनेट ने तीन संशोधनों को मंजूरी दी थी | जिसमें सब से महत्वपूर्ण गैर-जमानती प्रावधान को कुछ लचीला किया है | यही विपक्ष की सब से बड़ी आपत्ति वाला मामला था | ऍफ़आईआर दर्ज करवाने की कुछ शर्तें भी रखी गई हैं | अब खुद औरत या उस के रिश्तेदार ही ऍफ़आईआर दर्ज करवा सकते हैं | तीसरा संशोधन यह है कि केस दर्ज होने के बाद भी पति-पत्नी में समझौता हो जाए , तो केस वापस हो जाएगा | पर बात बदलावों की नहीं | बात राजनीति की है | विपक्ष को लगता है कि ट्रिपल तलाक बिल पास हो गया , तो उसे दोहरी मार पड़ेगी | एक तरफ तो अब तक एकमुश्त भाजपा के खिलाफ पड़ने वाला मुस्लिम वोट बंट जाएगा | मुस्लिम औरतें सदियों की गुलामी से मुक्त हो कर भाजपा के पक्ष में वोट कर सकती हैं | तो दूसरी तरफ बिल रोकने में नाकाम रहने पर मुस्लिम मर्द भी कांग्रेस से खफा हो जाएगा | कांग्रेस की स्थिति फिर से शाहबानों के वक्त जैसी हो गई है | और 1985 की तरह उस की बुद्धि फिर मारी गई है | विपक्ष के बारे में अपन कह सकते हैं , विनाश काले विपरीत बुद्धी |

मोदी के मनेजरों ने सोमवार तक संसद चलाने का प्रस्ताव रखा | ताकि राज्यसभा से बिल पास करवा कर सोमवार को लोकसभा से दुबारा पास हो जाए | बिल क्योंकि संशोधित है, इस लिए लोकसभा से भी दुबारा पास होना है | पर कांग्रेस की रहनुमाई में विपक्ष अड़ गया | वह  शुक्रवार के बावजूद बाकी बिल भले पास करवाने को तैयार था | पर ट्रिपल तलाक पास नहीं होगा | न ही विपक्ष संसद सत्र का एक दिन बढाने को राजी हुआ | विपक्ष ने मांग रख दी कि बिल सलेक्ट कमेटी को भेजा जाए | आखिर दोपहर ढाई बजे सरकार ने घुटने टेक दिए | जब वेंकैया नायडू ने एलान किया कि ट्रिपल तलाक बिल नहीं आ रहा | सवाल उठ रहा है कि सरकार अगर गम्भीर थी तो बिल आखिरी दिन ही क्यों लाई | सरकार को बिल पास करवाना था, तो संशोधित बिल केबिनेट से एक हफ्ता पहले पास करवाते | पर अपन जानते हैं कि सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया | सरकार का लक्ष्य पहले उपसभापति का चुनाव जीतना था | चुनाव जीतने के लिए क्षेत्रीय दलों में सेंध मारनी थी | जो ट्रिपल तलाक बिल पर बिदक सकते थे | जैसे ही एनडीए उपसभापति का चुनाव जीती , ट्रिपल तलाक एजेंडे पर आ गया |

विपक्ष ट्रिपल तलाक का बिल रुकवाकर शुक्रवार शाम को बहुत कूद रहा था | उन का मानना  है कि भाजपा अब तीन राज्यों के चुनाव में ट्रिपल तलाक का फायदा नहीं उठा पाएगी | पर यह भी अधूरी सोच है | अपना मानना है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, मिजोरम के चुनाव भी फरवरी से अप्रेल के बीच लोकसभा के साथ ही होंगे | शुक्रवार को भी संसद परिसर में एक साथ चुनाव करवाने पर एक गोष्ठी चल रही थी | अपन को भाजपा का एक नेता बता रहा था ,विपक्ष जहां सोचना बंद करता है | मोदी और अमित शाह वहां से सोचना शुरू करते हैं | अगर विधानसभाओं के चुनाव दिसम्बर 2018 में होते भी हैं | तो उस का तर्क था कि सरकार के पास आर्डिनेंस लाने का विकल्प तो खुला है | सरकार अब ट्रिपल तलाक पर आर्डिनेंस लाएगी |

 

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