श्रीराम अयोध्या लौटे तो पटाखे नहीं चले थे 

Publsihed: 09.Oct.2017, 20:49

अजय सेतिया / सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है | यह रोक दीपावली को ध्यान में रख कर लगाई गई है | इस अच्छी पहल का स्वागत होना चाहिए | पर हिन्दू कट्टरपंथी इस का विरोध कर रहे हैं | जब कि आतिशबाज़ी का रामायण में कहीं   नहीं | न ही भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने पर आतिशबाज़ी हुई थी | आतिशबाज़ी का भारतीय संस्कृति से भी कोई लेना देना नहीं है | न ही आतिशबाज़ी का संस्कृत या हिंदी में कोई जिक्र है | आतिशबाज़ी संस्कृत या हिंदी का शब्द भी नहीं है | न ही पाली भाषा में कहीं आतिशबाजी जैसे किसी शब्द का जिक्र आया है |  यह फारसी शब्द है | आतिश का मतलब होता है आग और बाज़ी का अर्थ होता है खेल या तमाशा | यानि आग का खेल या आग का तमाशा | रामायण काल में आतिशबाज़ी का आविष्कार नहीं हुआ था | आतिशबाजी का आविष्कार करीब दो हजार साल पहले ही चीन में हुआ था | आतिशबाजी का सब से पुराना जिक्र चीन के ग्रन्थों में है | प्रोफेसर कैरिग्टन गुद्रीच की पुस्तक "शाट हिस्ट्री आफ दी चाइनीज पीपुल में बारूद का जिक्र है | लिखा है कि सन 960 से 1275 के युद्धों में बारूद का इस्तेमाल हुआ | भारत में आतिशबाजी की शुरुआत कब हुई ,इस का कुछ पता नहीं | पर संन 1400 से पहले पटाखों या आतिशबाजी का जिक्र नहीं मिलता | दक्षिण भारत के एक वैज्ञानिक संत हुए हैं बोगर | उन ने वाणशास्त्र और बोगमसूत्रम दो ग्रन्थ लिखे | इन पुस्तकों में अग्निचूर्ण बनाने की विधि का जिक्र है | पहले विजयनगर से आतिशबाजी का प्रचार दक्षिण भारत में हुआ | मुगलकालीन ग्रन्थों में आतिशबाजी का जिक्र ज्यादा है | हैदरअली और टीपू सुलतान ने सब से पहले तोपों का इस्तेमाल किया | जिनमें सब से पहले बारूद का इस्तेमाल किया गया | आतिशबाजी में भी बारूद का ही इस्तेमाल किया जाता है | जो कोयला ,गंधक और शुरा के मिश्रण से बनता है | पोटाशियम क्लोरेट का आविष्कार 1788 में हुआ | मैग्नीशियम का आविष्कार 1865 में हुआ | एल्म्यूनिय्म का आविष्कार 1894 में हुआ | इन तीनों के आविष्कार से आतिशबाजी की दुनिया में क्रान्ति आई | यानि मैजूदा आतिशबाजी सवा सौ साल पुराणी ही तो है | फिर इसे दीपावली से क्यों जोड़ना चाहिए | हिन्दुओं को इसे धार्मिक आस्था का सवाल क्यों बनाना चाहिए | यह पक्का है कि भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने पर दीपक जलाए गए थे | पटाखे नहीं चलाए गए थे | तब पटाखे होते ही नहीं थे | इस लिए पटाखों को न तो दीपावली से जोड़ा जाना चाहिए , न हिन्दू अस्मिता से | पटाखों की बिक्री पर रोक का स्वागत अपन दूसरी वजह से भी करते हैं | क्योंकि पटाखे नहीं चलेंगे तो पर्यावरण की रक्षा होगी | अस्थमा के मरीजों को राहत मिलेगी | हर साल दिल्ली में ही दीपावली के समय अस्थमा के न जाने कितने मरीज दम तोड़ते हैं | उन के प्राणों की रक्षा हो सकेगी | पटाखे नहीं चलेंगे तो अपन दीपावली के असली प्राचीन रूप की ओर वापस लौटेंगे | जब भगवान राम के अयोध्या लौटने पर थालियाँ बजाई गई थी | शंख और ढोल बजाए गए थे | गीत संगीत हुआ था | यह मत सोचिए कि सिर्फ दिल्ली में पटाखों के बैन लगने से क्या होगा | दिल्ली सारे देश को रास्ता दिखाएगी | पटाखों की बिक्री का अपन एक और कारण से भी विरोध करते हैं | पटाखों की फैक्ट्रियों में बच्चों से पटाखे बनवाए जाते है | और हर साल पटाखा फेक्ट्रियों में आग लगती है | हर साल लगने वाली आग में सैकड़ों बच्चे विकलांग होते हैं |  कुछ बच्चे मारे भी जाते हैं | वैसे तो बाल मजदूरी पर पहले से रोक थी | 18 साल तक के बच्चों से जोखिम भरे काम करवाने पर रोक थी | पर मोदी सरकार ने बाल मजदूरी पर रोक का क़ानून कडा किया है | पर कोई क़ानून अपने आप में बुराई नहीं रोकता | चोरी छिपे अभी भी शिवाकाशी की पटाखा फेक्टरियों में बाल मजदूरों से काम करवाया जाता है | अपन सब को उस क़ानून का सम्मान करना और करवाना चाहिए | पटाखों की बिक्री पर रोक का सभी को समर्थन करना चाहिए | ताकि अपन शिवकाशी के गरीब बच्चों का जीवन सुरक्षित बना सकें | हमारी संस्कृति में कहीं आतिशबाज़ी का जिक्र नहीं मिलता | अपन को इस लिए भी पटाखों का बहिष्कार करना चाहिए | दीपावली दीपों का त्योहार है, आतिशबाज़ी का नहीं | घी के दीपक जलाईए , खुशियाँ मनाइए | अगर पटाखे चलाने ही हैं तो इस बार मार्केट में इलेक्ट्रानिक पटाखे आएँगे | 

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