हिंदुत्व और विकास की जीत

Publsihed: 11.Mar.2022, 07:37

अजय सेतिया / उतर प्रदेश , उतराखंड , मणिपुर और गोवा में भाजपा की फिर से सरकार बन गई | थोड़ा बहुत सीटों का नुक्सान हुआ , लेकिन भारतीय राजनीति में स्थिरता का एक मेसेज मिल गया है | यूपी ने 37 साल बाद किसी एक पार्टी को दुवारा जनादेश दिया है | इसी तरह जब से उत्तराखंड बना है , तब से पहली बार जनता ने सत्ताधारी पार्टी को दुसरी बार चुना है | मेसेज में यह भी साफ़ है कि कांग्रेस को देश की जनता ने पूरी तरह अस्वीकार कर दिया | पंजाब में वह बुरी तरह चुनाव हारी है और यूपी, गोवा और मणिपुर में उस की सीटें घट गई हैं | पंजाब में काग्रेस की हार से एक मेसेज यह भी है कि जनता को जहां जहां कांग्रेस का विकल्प मिलेगा , वहां वहां कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो जाएगा | देश की आज़ादी के 20  साल बाद तक कांग्रेस लगातार हर राज्य में बिना बाधा चुनाव जीतती रही | अब वह जगह भारतीय जनता पार्टी ने ले ली है | राजस्थान , छतीसगढ़ , हिमाचल के अपवादों को छोड़ कर भाजपा उन राज्यों में वापिस आ रही है , जहां उस की सरकारें थी या 2014 के बाद बनी थीं | महाराष्ट्र को मैं इस में इस लिए शामिल नहीं कर रहा , क्योंकि वहां भाजपा का गठबंधन जीता था |

पांच राज्यों का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता मापने का चुनाव था | नतीजों ने बता दिया कि देश में अभी भी प्रधानमंत्री मोदी का जादू चल रहा है | विपक्षी दलों ने इन पांच राज्यों को 2024 का सेमीफाईनल मान कर पूरी ताकत से चुनाव लडे थे | भले ही अब वे इन चुनाव नतीजों को सेमीफाईनल मानने से इनकार करें , लेकिन इन चुनाव नतीजों ने 2024 का मेसेज भी दे दिया है | आप चाहें , तो यह मेसेज भी निकाल सकते हैं , कि जैसे इन चुनाव परिणामों में भले ही भाजपा अपने चारों राज्यों में दुबारा सरकार बनाने में कामयाब हो गए हैं , लेकिन सीटें घटी हैं , तो 2024 में कुछ सीटें घट सकती हैं , लेकिन राजनीति में दो ओर दो हमेशा 4 नहीं होते | इन चुनावों में अगर भाजपा की कुछ सीटें घटी हैं , तो उस के स्थानीय कारण रहे होंगे | विधायकों की एंटी इन्केम्बेन्सी भी एक कारण होती है | इसी तरह लोकसभा सदस्यों की भी एंटी इन्केम्बेन्सी हो सकती है | लेकिन भाजपा के पक्ष में सब से बड़ा फेक्टर यह है कि नरेंद्र मोदी के प्रति आस्था बनी हुई है |

वह आस्था कोरोना की पहली लहर में महानगरों से यूपी वासियों की बड़े पैमाने पर पलायन और उस पलायन में सैंकड़ों मील तक पैदल चलने की कष्टदायक मजबूरी के बावजूद बनी हुई है | कोरोना की दूसरी लहर में मेडिकल बद इंतजामी के बावजूद बनी हुई है | भारत का आम आदमी इस बात को समझ चुका है कि प्रशासन में इतना गंद फ़ैल चुका है कि मोदी एक दो टर्म में खत्म नहीं कर सकते | उन का आस्था का आधार यह है कि अगर सुधार होगा , तो मोदी ही कर सकते हैं | यह आस्था वोट की राजनीति से बहुत ऊपर है | इस आस्था का एक आधार बाकी सभी दलों का समस्याओं को वोट बैंक की राजनीति के चलते लंबे समय तक लटकाए रखना भी है | जिन में राम मन्दिर और अनुच्छेद 370 प्रमुख थे | ये दोनों मुद्दे आज़ादी के बाद से लटक रहे थे , इन दोनों मुद्दों को हल कर के मोदी ने जनता में आस्था कायम की | ये दोनों मुद्दे हिंदुत्व से भी जुड़े थे | खासकर यूपी में भाजपा ने यह चुनाव हिंदुत्व और विकास कम्बीनेशन बना कर लडा |

यूपी के चुनाव को एक बार फिर मंडल कमंडल का चुनाव भी कहा गया था | विपक्ष ने यह कह कर फिर वही भूल की , जो वह 1990 से करता आ रहा था | असल में भारत के वामपंथी सेक्यूलर बुद्धीजीवी ये समझते हैं कि मंडल कमंडल चुनाव बना देने से हिन्दुओं के पिछड़े समुदाय को भाजपा के खिलाफ किया जा सकता है , लेकिन उन का यह प्रयास इस बार फिर विफल हो गया , क्योंकि पिछड़ा वर्ग इस नारे के भुलावे में नहीं आया | नरेंद्र मोदी अगर ब्राह्मण या ठाकुर होते तो मंडल कमंडल की राजनीति  शायद चल भी जाती , लेकिन खुद पिछड़ी जाति से होने के कारण मोदी मंडल और कमंडल राजनीति के केंद्र बिदु बन गया हैं | पिछड़ों में मोदी के प्रति आकर्षण ने विपक्ष के हिन्दुओं को जातीय आधार पर बांटने के प्रयासों को विफल बना दिया | उतर प्रदेश की पिछड़ी जातियों के वोटों के सारे ठेकेदार अखिलेश यादव के साथ जा कर ध्वस्त हो गए | सिर्फ वही अपनी जातियों में खड़े रहे , जो मोदी योगी के साथ थे |

समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम वोटों का ध्रुविकरण कर के भी हिन्दुओं को एकजुट करने में मदद की | मुस्लिम यादव और जाटों का गठबन्धन एक तरह से जातिवाद की राजनीति को दोहराना था , लेकिन देश की जनता अब उस से काफी ऊपर उठ चुकी है | खासकर यूपी की जनता अब उसे स्वीकार नहीं करेगी , जो मुस्लिमों को सामने रख कर अपनी राजनीति करना चाहेगा | जिन्नाह विवाद से लेकर हिजाब विवाद तक ने हिन्दुओं को फिर से भाजपा के पीछे गोलबंद होने के मदद की |

 

 

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