अशांति फैलाते शांति के दूत

Publsihed: 10.Feb.2022, 22:49

अजय सेतिया / शांति के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई का भारत के हिजाब आन्दोलन में कूदना आन्दोलन के पीछे अंतर्राष्ट्रीय साजिश की ओर इशारा करती है | वह इस लिए क्योंकि पिछले तीन सालों से अचानक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हस्तियाँ भारत के विभिन्न आंदोलनों का समर्थन कर रही हैं | 370 हटाए जाने के मुद्दे पर , नागरिकता संशोधन क़ानून बनाए जाने के मुद्दे पर , कृषि कानूनों के मुद्दे पर ., और अब यूनिफार्म बनाम हिजाब के मुद्दे पर | कृषि कानूनों के खिलाफ पॉप स्टार रिहाना,पोर्न स्टार मियाँ खलीफा , पर्यावरण स्टार ग्रेटा थनबर्ग और अब हिजाब के मुद्दे पर मलाला युसूफ | यह टूलकिट से टूल बनने का सफर है | तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि इन हस्तियों की भारत में इतनी दिलचस्पी का कारण क्या है | इस के पीछे की अंतर्राष्ट्रीय साजिश यह है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय जगत में सम्मानजनक जगह बना रहा है , जो सभी शक्तिशाली देशों को हजम नहीं हो रहा | भारत में काम कर रहे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने इन सभी मुद्दों को अतंर्राष्ट्रीय मीडिया में भारत की छवि खराब करने के लिए इस्तेमाल किया | जबकि भारतीय मीडिया के एक वर्ग ने इन अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों को आधार बना कर भारत सरकार की छवि खराब करने की कोशिश की है |

तालिबानियों की गोली का शिकार होने पर नोबेल पुरस्कार पाने वाली मलाला युसुफजई ने हिजाब के समर्थन में ट्विट ट्विट लिखा –“ कॉलेज हम पर दबाव डाल रहे हैं कि हम हिजाब या शिक्षा में से किसी एक चीज को चुन लें। हिजाब के साथ लड़कियों को स्कूल में एंट्री देना भयानक है। महिलाओं पर कम या ज्यादा कपड़े पहनने को लेकर दबाव डाला जा रहा है। भारतीय नेताओं को मुस्लिम महिलाओं को किनारे लगाने की कोशिश पर रोक लगानी चाहिए।'' पहला सवाल तो यह है , कि “हम” का क्या मतलब है , हम का मतलब है –मुस्लिम | और वह खुद मुस्लिम कट्टरपंथियों के डर से अब ब्रिटेन में रहती हैं | तो निश्चित ही वह भारत के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय साजिश का “टूल” बनी है | क्योंकि भारत के स्कूलों में हिजाब का समर्थन उनके अपने मिजाज से मेल नहीं खाता | खुद उन्होंने अपनी किताब “ आई एम मलाला” में मुसलमानों की पर्दा प्रथा के खिलाफ लिखा था | जेएनयू के लेक्चरार और मशहूर डिबेटर आनन्द रंगनाथन ने मलाला की पोल खोलते हुए उसी की पुस्तक का वह पेज ट्विट कर दिया , जिस में उसने लिखा था कि 'बुर्का पहनना ठीक वैसे ही है कि कपड़े की शटलकॉक के अंदर चला जाए । जिसमें सिर्फ एक ग्रिल है, जिसके जरिए वह बाहर देख सके | वहीं गर्मी के दिनों में तो यह एक ओवन की तरह हो जाता है |” अब ट्विटर पर मलाला की पोल पट्टी खुल रही है | शान्ति का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली मलाला भारत में अशांति को हवा देने की कोशिश कर रही हैं | इसलिए वह ट्विटर पर खूब ट्रोल हो रही हैं |

ट्विटर पर लोगों ने यह सवाल भी उठाया है कि आखिर जिस नॉर्वे की ओर से उन्हें नोबेल सम्मान दिया गया है, उसने ही 2017 में स्कूल और यूनिवर्सिटीज में हिजाब पहनने पर रोक लगाने का कानून बनाया था | नॉर्वे के कानून के खिलाफ वह अब तक क्यों नहीं बोली | मलाला ने हिजाब को महिलाओं की शिक्षा के साथ जोड़ा था तो  “द स्किन डॉक्टर” नाम के एक ट्विटर हैंडल पर मलाला को मुंह तोड़ जवाब दिया गया है | उसने लिखा - 'जहां तक कॉलेज के फैसले की बात है तो वह सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं है | यदि पुरुष भी हिजाब पहनकर आएंगे तो उन्हें भी परमिशन नहीं मिलेगी | महिलाओं को ऑब्जेक्ट समझने की बात तो आपके मजहब में कही गई है, जहां सिर्फ महिलाओं के हिजाब पहनने की बात है | कॉलेजों की ओर से लड़कों को भी भगवा शॉल ओढ़कर आने की परमिशन नहीं दी जा रही है | इसलिए इसे लैंगिक मामला बनाए |' ट्विट से मलाला युसूफ ने अपने सामान्य ज्ञान की भी पोल खोल दी | एक ट्विट पर उन्हें लिखा गया –“  जब मुद्दे पर दो कौड़ी का ज्ञान ना हो ना , तो जबरदस्ती कूदना नही चाहिए.... अफगानिस्तान के समय मुंह में क्या जम गई थी..? “ एक अन्य प्रतिक्रिया में लिखा गया है –“पहले हिजाब और ऐसी चीजों के ख़िलाफ़ बोलकर गोली खा लो फिर नोबल प्राइज़ लेकर उन्हीं सब चीजों का समर्थन कर दो लगता है गोली पीतल की नहीं क्रोसिन की थी, असर कर गई |”

 

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