देश के टुकडे करने वालों के हाथ में राष्ट्र ध्वज 

Publsihed: 01.Mar.2017, 11:20

मंगलवार को वामपंथियों का प्रदर्शन भी हो गया | वामपंथी पत्रकार भी प्रदर्शन का समर्थन करने पहुंचे | विजुअल मीडिया वाले वामपंथियों का बार बार एक बात पर ही जोर था | उन का कहना था कि सोमवार की तिरगा यात्रा से बड़ा प्रदर्शन है | यानि ताकत का इज़हार हो रहा है | प्रदर्शन में सभी वामपंथी छात्र संगठन मौजूद थे | एसऍफ़आई से ले कर आईसा तक | केजरीवाल से अलग हो चुके योगेन्द्र यादव के चेले चांटे भी | दिल्ली यूनिवर्सिटी में बुरी तरह पिट चुका केजरीवाल का छात्र संगठन भी | जेएनयूं,जामिया और अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के सारे वामपंथी छात्र | पर कुल मिला कर संख्या रही आठ सौ | पर वह लडकी गायब थी, जिस ने दो दिन से आसमान सर पर उठा रखा था | उस की मान ने सोमवार की रात खूब डांट पिलाई थी | उसे बताया गया कि तुम्हें पढने भेजा था,नेतागिरी करने नहीं | मां ने उसे तुरंत जालंधर वापस बुला लिया | पजांब के चुनाव में वह आप पार्टी के साथ सक्रिय थी | तो मां को ज्यादा एतराज नहीं था | पर दिल्ली तो उसे पढने भेजा था | दिल्ली में गुरमेहर कौर ने वामपंथियों के बहकावे में अपने पिता का नाम घसीटा | तो मां को बर्दाश्त नहीं हुआ | अब वह यह  भी कहे कि उस के पिता कारगिल में शहीद हुए | और यह भी कहे कि उस के पिटा कपो पाकिस्तान ने नहीं मारा ,तो किसे हज़म होगा | वैसे तो अपन ने वीरेंद्र सहवाग और सलमान खान के उदाहरण दी थे | जो सोशल मीडिया पर छे रहे | पर जिस ट्विटर का गुरामेहर ने इस्तेमाल किया | उसी का इस्तेमाल एक जुबिना अहमद ने भी किया | उस ने ट्विटर पर ही लिखा-" मैं लखनऊ में हूँ | पारूल की शादी में शामिल होने जा रही हूँ | पारूल कारगिल के शहीद पिता की बेटी है | वह अब एक डाक्टर है .....और उस के पिता को पाकिस्तान ने मारा था |" इस लिए गुरमेहर की बात किसी को भी नहीं जंच रही | पर गुरमेहर ने खुद को कारगिल के शहीद की बेटी बता कर खुद को ही कटघरे में खडा कर लिया था | लोगों ने छानबीन शुरू की ,तो पता चला कि गुरमेहर के पिता कैप्टन मंदीप सिंह शहीद जरूर हुए थे | पर कारगिल युद्ध में नहीं | अलबत्ता युध्द ख़त्म होने के बाद कुपवाड़ा में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए | अब यह विडम्बना ही है जो आतंकियों के हाथों शहीद की बेटी आतंकियों का समर्थन करने वालों के खेमे में खडी हो | देश के टुकडे करने की साजिश रचने वालों के साथ खडी हो | तो सब से पहले उस के घर से ही विरोध हुआ | और वह प्रदर्शन से पहले ही मैदान छोड़ गयी | गुरमेहर की मां ने उसे वापस जालंधर बुला लिया | गुरमेहर ने मंगलवार सुबह 7.20 से  ट्विट करने शुरू किए | पहला ट्विट -" “मैं यह अभियान वापस ले रही हूं। सभी को बधाई। मैं आपसे मुझे अकेला छोड़ देने का आग्रह करती हूं। मुझे जो कुछ भी कहना था, मैंने कह दिया है..।” अगला ट्विट -" एक बात साफ़ है , अगली बार हिंसा  और धमकियों का विरोध करते हुए दो बार सोचेंगे |" वह फिर एक ट्विट में कहती हैं-  “मैंने बहुत कुछ सहा है और मेरी 20 साल उम्र के लिहाज से यह बहुत है।” फिर उस ने प्रदर्शन में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जाने की अपील की |  गुरमेहर ने कहा , “मेरी बहादुरी और साहस पर सवाल उठाने वालों से सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूं कि मैंने बहुत कुछ कर दिखाया है।” गुरमेहर की मां ने कहा कि वह दिल्ली छोड़कर जालंधर वापस लौट रही है। जैसी उम्मींद थी, वैसे ही हुआ | राहुल गांधी, केजरीवाल, सीता राम येचुरी में कूड़े | बिलकुल वैसे ही जैसे जेएनयूं में कूड़े थे | रामजस कालेज को राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया | रामजस कालेज के प्रिंसीपल ने प्रदर्शन रद्द करने की अपील की | पर वामपंथियों ने न ऐसा होने देना था | न होने दिया | गुरमेहर ने कहा था-मुझे बलात्कार की धमकी दी गयी | अब ऍफ़आईआर दर्ज हो गयी है | किस ने धमकी दी, दी या नहीं दी | सब साफ़ हो जाएगा | राजनीतिक अखाड़ा बन गया ,तो बीजेपी क्यों पीछे रहती | बीजेपी के  एबीवीपी वाले पुराने नेता अरुण जेटली ने कहा-" देश तोड़ने वालों का गठबंधन है |" रविशंकर प्रशाद ने कहा-" बोलने की आज़ादी का मतलब भारत को तोड़ने की आज़ादी नहीं हो सकता | बस्तर की आज़ादी की मांग करने वाले देशभक्त कैसे हो सकते हैं |"  किरिण रिजीजू केंद्र में मंत्री हैं | वह नार्थ-ईस्ट से आते हैं | नार्थ-ईस्ट में बीजेपी का कभी आधार नहीं रहा | रिजीजू पहले भी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे | फिर वह कांग्रेस में भी रहे | अब फिर बीजेपी में हैं और मंत्री भी हैं | पर बहुत कम लोग जानते हैं कि रिजीजू दिल्ली यूनिवर्सिटी के ग्रेजूएट हैं | वह भी एबीवीपी में रहे हैं | उन का स्टेंड जेटली और रविशंकर से भी स्ट्रोंग रहा | उन ने कहा-" वे देश के खिलाफ नारे लगाते हैं | कोइ आतंकी मारा जाता है,तो वे प्रदर्शन करते हैं | उन्होंने 1962 में चीन का समर्थन किया | यह जंग वामपंथियों और राष्ट्रवादियों के बीच है | देश की जनता तय करेगी,उसे क्या चुनना है |"  पर देश के टुकडे करने वालों के हाथ में भी मंगलवार को राष्ट्र ध्वज था | ताकि किसी को राष्ट्रविरोधी कहने का मौक़ा न मिले | यह राजनीति है और राजनीति में छल कपट तो होता ही है | मंगलवार को राष्ट्रीय ध्वज ही छल-कपट का शिकार हुआ  |  यह जंग सचमुच राजनीतिक है | तभी तो दिन में पीछे रह गयी एनएसयूंआई ने शाम को मशाल मार्च किया | 

आपकी प्रतिक्रिया